विशेष टिप्पणी
राजेश सिंह क्षत्री
और जैसा की अंदेशा था पुलिस पिटाई से नरियरा के युवक सतीश नोरगे की मौत के मामले में राजनीति अपने पूरे शबाब पर है। सतीश की मौत भ्रष्ट तंत्र की बलि चढ़े एक आम आदमी की मौत न होकर दलित युवक की मौत हो गई। पूरे मामले में जिस प्रकार की राजनीति हावी हो रही है उससे तो ऐसा जान पड़ता है कि यदि सतीश दलित युवक न होकर एक सामान्य अथवा पिछड़ा वर्ग का युवा होता तो यह लोगों के लिए एक सामान्य घटना होती जबकि शुरूआत से ही सतीश के जख्म देखकर आक्रोशित होने वाले आम जनता से लेकर मीडियाकर्मियों ने उनकी जाति देखकर आवाज बुलंद नहीं किया था बल्कि एक आम युवक सतीश के साथ गलत हुआ था इसलिए वो सारे एकजुट थे। देर से ही सही लेकिन शासन ने सतीश के परिजनों के मरहम पर जख्म लगाने की कोशिश की है। पूरे मामले की जांच न्यायिक दण्डाधिकारी पामगढ़ सतीश खाखा ने प्रारंभ कर दी है तो वहीं मुलमुला थाना प्रभारी जितेन्द्र सिंह राजपूत, आरक्षक सुनील ध्रुव, दिलहरण मिरी सहित नगर सैनिक राजेश कुमार के ऊपर हत्या सहित एट्रोसिटी एक्ट के तहत अपराध दर्ज किए जाने की जानकारी शासन की ओर से दी गई है। सतीश के परिजनों के लिए शुरूआत में घोषित एक लाख रूपए के अतिरिक्त पांच लाख की मुआवजा राशि सहित उसकी पत्नी को नौकरी तथा बच्चों के निःशुल्क शिक्षा की व्यवस्था की जा रही है। सतीश की मौत पर चल रही राजनीति के बीच मूल प्रश्न जो कहीं दबता सा दिखाई दे रहा है वह यह कि आखिरकार सतीश का कसूर क्या था ? सतीश ने ऐसा क्या किया जो उन्हें अपनी जान से हाथ धोना पड़ा ? विगत कई वर्षो से राज्य शासन छत्तीसगढ़ में सरप्लस बिजली होने तथा जीरो पॉवर कट का ढिंढोरा पिटते रही है। अकेले जांजगीर चांपा जिले में ही प्रदेश के मुखिया ने पचास हजार मेगावाट से ज्यादा की बिजली पैदा करने के लिए एमओयू पर हस्ताक्षर किए हैं। जिस नरियरा गांव का रहने वाला सतीश था वहां ही छत्तीस सौ मेगावाट का केएसके महानदी वर्धा पावर प्लांट जैसे सतीश की कुटिया में चुगली करते हुए चिढ़ाता हुआ जान पड़ता है। सिर्फ नरियरा ही क्यों जांजगीर-चांपा जिले के अधिकांश जिलों में बिजली की यही स्थिति है। रात में तहसील मुख्यालय चांपा की जगमगाती बिजली उससे लगे अंधकार में डूबे कुरदा के ग्रामीणों को चिढ़ाती हुई सी जान पड़ती है जहां सरपंच के नेतृत्व में ग्रामीण कई बार आंदोलन की चेतावनी दे चुके हैं लेकिन उन्हें किसी तरह आश्वासन देकर शांत करा दिया जाता है। पावर हब की ओर अग्रसर जिले के गांव में रोजाना अघोषित बिजली कटौती तो की ही जाती है, जरा सा आंधी तूफान के बाद दगा देते ट्रांसफार्मर से पूरा गांव अंधेरे में डूबा हुआ जान पड़ता है। गांव के कई मोहल्लों में दिन, सप्ताह तो छोड़िए महीनों बिजली नहीं आती। जहां बिजली आती है वहां अनाप-शनाप बिल दिए जाने की शिकायतें आती है। ग्रामीण जब बिजली की शिकायतें लेकर अधिकारियों के पास पंहुचते हैं तो अधिकारी या तो एसी कूलर की हवा में आराम फरमाते नजर आते हैं अथवा दफ्तर से ही नदारद मिलते हैं। दोनों ही स्थिति में आम आदमी का आक्रोश और भी बढ़ जाता है। ऐसी स्थिति में शिकायत लेकर पंहुचे आम आदमी को संतुष्ट करने का जिम्मा भी उन अधिकारियों का है लेकिन अधिकारी जनता को संतुष्ट करने की बजाय अपने पद का धौंस देते हुए उल्टा जनता को ही गलत ठहराने की कोशिश करता है जिसकी परिणिति सतीश जैसे युवक की मौत के रूप में सामने आती है। जांजगीर चांपा जिले में नौकरशाही के बेलगाम होने की शिकायत भाजपा के एक आम कार्यकर्ताओं से लेकर विधायक और सांसद तक मुखिया के समक्ष करते रहे हैं, ऐसी स्थिति में समय रहते ही यदि अधिकारियों को जनता और जनप्रतिनिधियों के प्रति जवाबदेह बनाने की कवायद की गई होती तो शायद आज सतीश का यह हश्र नहीं हुआ होता। सतीश के परिवार के लिए घोषित कोई भी घोषणा, दोषियों को दी गई कोई भी सजा सतीश को वापस तो नहीं ला सकती लेकिन इस घटना से लिया गया सबक जरूर बहुंत सारे सतीशों की असमय मौत को रोक सकती है।
राजेश सिंह क्षत्री
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सतीश नोरगे ke sharir par chot ke nishan |