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सम्हर पखर के फागुन आगे ...

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जीवन सोनी ‘‘तरूण’’

पिंवरा-पिंवरा लूगरा पहिरे, रचाए महावुर पांव म।
सम्हर पखर के फागुन आगे, हरू-हरू मोर गांव म।।

मांघ महीना लगिन धराए, गवनाही लजकुरहिन,
मन ल मधुरस के रस म डुबकी लगवाइस गिन-गिन।
ढेंकी कुरिया ले सुरता चढ़़ जाथे उपर पटाव म।
सम्हर पखर के फागुन आगे, हरू-हरू मोर गांव मा।।

झुलझुलहा ले मउहा टप-टप टपके रस बरसावय,
कुहू-कुहू के सुर म कोयलिया अमरइया म बलावय।
पानी फरी लगे दरपन कस नदिया-सरि तलाव म।
सम्हर पखर के फागुन आगे, हरू-हरू मोर गांव मा।।

तिंवरा, बटुरा, चना किसान के घर अंगना जुरियागे,
हरदी रंग म रंगे दिखय सरसो के लगिर धरागे।
बर-बरात आए के तियारी हे अमरइया के छांव म।
सम्हर पखर के फागुन आगे, हरू-हरू मोर गांव मा।।

झांझ मंजिरा संग गुड़ी मेर मनखे मन जुर जाथें,
ताल नंगारा म दे-दे के, गीत फगुनवा गाथें।
मन ल गदगद करै लाल टेसू परसा के थांव मं।
सम्हर पखर के फागुन आगे, हरू-हरू मोर गांव मा।।

पिंवरा-पिंवरा लूगरा पहिरे, रचाए महावुर पांव म।
सम्हर पखर के फागुन आगे, हरू-हरू मोर गांव म।।

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