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श्रद्धांजलि: पं. शिवकुमार शर्मा - लगी आज सावन की फिर वो झड़ी है, मेरे संग बरसात भी रो पड़ी है ...!

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राजेश सिंह क्षत्री प्रधान संपादक छत्तीसगढ़ एक्सप्रेस
जम्मू कश्मीर में प्रचलित वाद्य यंंत्र संतूर को दुनिया भर में मशहूर बना देने वाले मशहूर शास्त्रीय संगीतकार और संतूर वादक पं. शिवकुमार शर्मा का कार्डिएक अरेस्ट के चलते आज निधन हो गया। 14 अगस्त 1981 को तब के सुपर स्टार अमिताभ बच्चन, उनकी पत्नी जया भादुड़ी, प्रेमिका रेखा और साथ में संजीव कुमार तथा शशि कपूर स्टारर यश चोपड़ा की एक बड़ी फिल्म रिलीज हुई, उस फिल्म का नाम था सिलसिला। फिल्म तो पीट गई लेकिन उसके मधुर गीत आज भी उतने ही लोकप्रिय बने हुए है, बांसुरी वादक पंडित हरि प्रसाद चौरसिया के साथ जोड़ी बनाकर किंग आफ रोमांस कहे जाने वाले यश चोपड़ा की फिल्म में शिव-हरि के नाम से तब पहली बार इस जोड़ी ने फिल्मों में संगीत दिया था। हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत को नई पहचान देने वाले इस जोड़ी में शिवकुमार की खुद की पहचान संतूर वादक के रूप में बनी रही तो वहीं हरि प्रसाद चौरसिया बांसुरी दिग्गज माने जाते हैं यही वजह है कि वो खुद के काम में इतने बिजी रहे कि गिनती के आठ फिल्मों में ही उन्होंने संगीत दिया उसमें से भी सिलसिला, फासले, विजय, चांदनी, डर, लम्हे और परंपरा ये सात फिल्मे यश चोपड़ा की थी तो वहीं साहिबां ही उनकी एकमात्र ऐसी फिल्म रही जो यश चोपड़ा की नहीं थी। शिव हरी के संगीत की महत्ता इसी बात से समझी जा सकती है कि सिर्फ आठ फिल्मों में संगीत देने के बाद भी उन्हें 1981 में फिल्म सिलसिला, 1989 में चांदनी और 1991 में फिल्म लम्हे के लिए तीन बार फिल्मफेअर अवार्ड प्रदान किया गया। फिल्म सिलसिला में पहली बार अमिताभ बच्चन ने एक साथ तीन-तीन गानों में अपनी आवाज दी, रंग बरसे भीगे चुनर वाली रंग बरसे.. गीत आज भी होली के अवसर पर उसी तरह से बजते हैं जैसे फिल्म की रिलीज के समय बजते थे तो वहीं ये कहां आ गए हम.. अमिताभ बच्चन की आवाज के साथ-साथ इसके फिल्मांकन के लिए भी याद किया जाता रहेगा। अमिताभ के गाए हुए फिल्मी गानों में सबसे मधुर गीत इस फिल्म के एक और गीत नीला आसमां सो गया ... को माना जा सकता है। इस गाने के दो वर्जन है एक अमिताभ बच्चन की आवाज में तो दूसरा सुर साम्राज्ञी लता मंगेशकर की आवाज में। फिल्म में लड़की है या शोला.. और सर से सरके .. जैसे गीत भी थे तो वहीं फिल्म का टाईटल गीत देखा एक ख्वाब तो ये सिलसिले हुए दूर तक निगाह में है गुल खिले हुए ... सबसे ज्यादा पसंद किया जाने वाला गीत साबित हुआ। कुल मिलाकर फिल्म सिलसिला तब भले न चल पाई हो लेकिन अपनी पहली ही फिल्म में दिए गए संगीत में संगीतकार शिव हरी की जोड़ी ने सिक्सर लगा दिया था। फिल्म सिलसिला की तरह की शिव-हरी की जोड़ी ने फिल्म डर में एक बार फिर एक होली गीत दिया था जिसके बोल थे अंग से अंग लगा ले सजन ...., फिल्म डर शाहरूख खान के कैरियर में मील का पत्थर साबित हुई थी तो वहीं उसके गीत काफी लोकप्रिय हुए थे। खासकर जादू तेरी नजर, खुशबू तेरा बदन, तूं हां कर या ना कर तूं है मेरी किरण ... गीत कॉलेज के युवाओं के लिए प्यार का इजहार करने का माध्यम बन गया था। लता मंगेशकर और उदित नारायण की आवाज में फिल्म के एक अन्य गाने तू मेरे सामने मैं तेरे सामने तुझको देखूं की प्यार करूं ... को भी तब काफी सराहा गया। लता मंगेशकर के साथ शिव हरी ने फिल्म के सभी गानों में तब अलग-अलग पुरूष आवाजों को मौका दिया था। हरिहरण की आवाज में लिखा है ये इन हवाओं में ... तो अभिजीत भट्टाचार्य की आवाज में छोटा सा घर है ये मगर तुम इसको पसंद कर लो दरवाजा बंद कर लो ... और विनोद राठौड़ की आवाज में इश्क दा रोग बुरा ... भी इस फिल्म के हिस्सा थे। यश चोपड़ा की एक और रोमांटिक फिल्म थी लम्हें, इस फिल्म में पहली बार अनिल कपूर बिना मूंछों के थे तो वहीं फिल्म के इस हीरो को एक ही शक्ल की मां और बेटी दोनों से प्यार हो जाता है। फिल्म में मां-बेटी दोनों की भूमिका में श्रीदेवी थी। यश चोपड़ा इसे अपनी सर्वश्रेष्ठ फिल्म मानते हैं तो वहीं दर्शकों ने इस फिल्म को समय से आगे की फिल्म मानते हुए सिलसिला की तरह नकार दिया था, इस फिल्म में शिव-हरी ने लता मंगेशकर की आवाज में मेरी बिंदिया तेरी निंदिया चुरा ले न तो कहना..., हरिहरण के संग कभी मैं कहूं ... और चूडिय़ां खनक गई ... जैसे यादगार गीत दिए तो वहीं लता मंगेशकर की ही आवाज में फिल्म में याद नहीं भूल गया..., मोहे छेड़ो न..., गुडिय़ा रानी ... और मेधा रे मेधा ... जैसे गीत भी शामिल रहे। राजेश खन्ना, हेमा मालिनी, रिषी कपूर, अनिल कपूर स्टारर विजय फिल्म की चर्चा भले ही न होती हो लेकिन इस फिल्म में लता मंगेशकर और सुरेश वाडेकर की आवाज में बादल पे चलके आ, सावन में ढलके आ ... गीत की गिनती मधुर गीतों में होती है। वैसे ही फिल्म परंपरा के गीत फूलों के इस शहर में ... और फिल्म फासले के जनम जनम मेरे सनम ..., चांदनी तूं है कहां और फासले का सबसे लोकप्रिय गीत हम चुप हैं रहा। लगातार फ्लाफ होती फिल्मों के बाद यशराज फिल्मस को बंद होने से बचाने के लिए यश चोपड़ा ने चांदनी फिल्म का निर्माण किया तो उसमें भी संगीत का मौका शिव-हरी को ही दिया गया तब शिव-हरी ने फिल्म के टाइटल गीत चांदनी ओ मेरी चांदनी जॉली मुखर्जी के साथ अभिनेत्री श्रीदेवी की चुलबुली आवाज का भी इस्तेमाल किया था। लता मंगेशकर की आवाज में मेरे हाथों में नौ नौ चुडिय़ां है फिल्म का सबसे लोकप्रिय गीत साबित हुआ था बाबला मेहता और लता की आवाज में तेरे मेरे होंठों पे मीठे मीठे गीत मितवा ..., परवत से काली घटा टकराई ..., मैं ससुराल नहीं जाऊंगी डोली रख दो कहारो ...., तू मुझे सुना मैं तुझे सुनाऊं अपनी प्रेम कहानी ... जैसे गीत भी पसंद किए गए थे। इन सबके बीच सुरेश वाडेकर और अनुपमा देशपांडे के स्वर में लगी आज सावन की फिर वो झड़ी है ... गीत की गिनती भी बेहतरीन गानों में होती है। यश चोपड़ा से परे शिव हरी के संगीत की एकमात्र फिल्म साहेबां में इस मेले में लोग आते हैं के साथ इस फिल्म के टाईटल गीत कैसे जियूंगा मैं अगर तू न बनी मेरी साहिबां ... को भी काफी पसंद किया गया। 13 जनवरी 1938 को जम्मू में जन्में शिव कुमार शर्मा के पिता गायक थे और उन्होंने ही शिव को गायन और तबला सिखाया। 13 साल की छोटी उम्र में शिवकुमार शर्मा ने संतूर सीखना शुरू किया और 1955 में मुंबई में पहली बार लोगों के सामने परफार्म करते ही उन्हें मंत्रमुग्ध कर दिया। 1967 में शिव हरी ने अपना पहला अलबम कॉल आफ द वैली रिकार्ड किया। उन्हें 1991 में पद्मश्री और 2001 में पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया था। शिव हरी की जोड़ी में हरी प्रसाद चौरसिया पहले ही इस दुनिया से विदा हो गए थे ऐसे में आज शिवकुमार शर्मा के निधन से शास्त्रीय संगीत की दुनिया का एक युग समाप्त हो गया। संगीत के प्रति शिवकुमार शर्मा के अमूल्य योगदान को याद करते हुए दैनिक छत्तीसगढ़ एक्सप्रेस परिवार उनको हृदय से नमन करता है।

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