राजेश सिंह क्षत्री
नवा बच्छर के पहिली दिन तलाव ले असनांद के निकलत बैशाखू मिल गे। अउ बैशाखू, आज के का परोगराम हे, मय हर पूछेंव त बैशाखू हर झट कहिस, तहीं बता ठाकुर कोनो तीर पारटी-सारटी के जुगाड़ हे का।
पारटी के जुगाड़, मय हर अकचकाय बैशाखू तीर पूछेंव, भय पारटी के घलो काहीं जुगाड़ होथे ग। पइसा खरचा कर अउ दू-चार झन संगी ल जोर के पारटी मना ले।
मोर गोठ ल सुन बैशाखू हर कहिथे, तहूं का जुन्ना बच्छर म अटके हावस ठाकुर, नवा बच्छर आ गे हावय त कछु नवा सोच। वो जमाना गय जब बैशाखू हर अपन पाकिट ले खरचा कर कछु काम करत रहिस हे। आज तो जमाना हर जुगाड़ के हावय। इहां चुनाइ म पइसा खरचा करइया रहय त टिकिट के जुगाड़ हो जाथे, बोट डारे के बेरा दारू के जुगाड़ हो जाथे, मुख्यमंत्री बने बर बिधायक के जुगाड़ हो जाथे अऊ देस चलाय बर सांसद मन के जुगाड़ हो जाथे। टूरा हर गर्लफ्रंेड के जुगाड़ कर लेथे, टूरी हर मिस काल मार के टूरा तीर अपन मोबाइल बर बैलेंस के जुगाड़ कर लेथे। अब देख न कालि रतिहा मय हर घर ले मुंह मीठा करे बर निकलेंव त तीन-चार जघा खीर के जुगाड़ हो गिस। पइसा खरचा के पारटी मनातेंव त एकेच जघा खीर खाय पातेंव। बिहनिहा तलाव आएंव त गुड़ाखू के जुगाड़ हो गिस। ए जुगाड़ म बड़ मजा हावय। माचिस धरे हस का, अभी तोला ए जुगाड़ के गुन सिखावत हावंव। बैशाखू हर मोर तीर पूछिस।
मय हर तरिया पार के संकर भगवान म अगरबत्ती बारे बर माचिस धरे रहेंव, मोला लगिस के तलाव ले असनांद के निकलत बैशाखू हर घलो अगरबत्ती बारे बर माचिस मांगत हावय त मय हर ओला बैशाखू ल दे देहेंव। बैशाखू मोर तीर माचिस ल लिस अउ तरिया पार म एती-ओती ल देखे लागिस। दुनिहा म बनेच देर के समारू हर ठाढ़े रहिस। बैशाखू हर ओला अपन तीर बला के पूछिस, जोड़, माचिस धरे हाववं, बीड़ी के जुगाड़ हे का। बैशाखू के हाथ म माचिस देख समारू के चेहरा चमके लागिस। ओ हर बैशाखू के आघू म बीड़ी के कट्टा बढ़ात कहिस मोरो बर एक ठन सुलगा देबे संगी। मय हर माचिस के एके ठन काड़ी लाय रहेंव फेर हवा आइस त बीड़ी सुलगे ले पहिली ओ हर बुता गिस। अब बिना बीड़ी पेट साफ नइ होय। कतेक देर ले बिचारत रहेंव के तुंहर तीर माचिस मांगव के नही फेर माचिस ल तुमन भगवान के पूजा पाठ बर धरे हावा कहिके हिम्मत नइ करत रहे हावंव। समारू के अतका कहत ले बैशाखू हर कट्टा ले दू ठन बीड़ी सुलगा के एक ठन ल समारू डहर बढ़ा दिस अउ दूसर ल अपन फूंके लागिस। बीड़ी पीयत लोटा म पानी ले समारू हर मैदान डहर चल दिस त बैशाखू हर मोर डहर ल देखत फेर पूछिस, देखे ठाकुर एक ठन आऊ जुगाड़।
चहेड़ी तो तय हर रहिबेच करे रहे अब कब ले बीड़ी पीयइया घलो होगे ? नवा बच्छर म जमो झन नसा ले छोड़े के कसम खाथे त एक ठन नसा शुरू कर देहे। बैशाखू के ऊपर गुस्सात मय हर कहेंव त बैशाखू हर मोला मनात कहिस, गुस्सा मत ठाकुर बीड़ी ल शुरू नइ करत हाववं, ओ तो संगी जंहुरिया मन संग कभू कभार पी लेथंव फेर कालि डीजे म जब ले बीड़ी जलइ ले गाना म थिरके हाववं बीड़ी पिये के भारी मन करत रहिस हे, अउ तहूं ल जुगाड़ दिखाना रहिस हे। चल बता, नवा बच्छर म कहां जाए के जुगाड़ हे।
मय हर बैशाखू ल कहेंव के जुगाड़-उगाड़ कछु नइ हे, मय हर मोर सुवारी ल कोटमीसोनार के मगरा देखाय ल ले जाहूं कहे हावंव, तहूं ल चलना हे त लइका मन ल लेके गाड़ी के आघू स्टेसन हबर जाबे। अतका कहिके मय हर घर आ गेंव। मोर आत ले घर म रानी हर मुस्कान अउ हर्ष ल तियार कर मोर रद्दा देखत रहिस हे। ओला ले के मय हर टेसन हबर गेंव। गाड़ी के टिकिट लेहे बर लाइन लगे रहेंव के बैशाखू हर दिखगे। ओ हर मोर हाथ ले पइसा ल लेत अउ मोला हटा के लाइन म खड़े होत कहिस दे ठाकुर, टिकिस मय हर कटा देथंव। टिकिट कटा के आइस त मय हर बैशाखू ल पूछंेव, भउजी ल नइ लाए त ओ हर कहिथे तय भउजी तीर घुम मय जुगाड़ देखत हाववं ना। अतका म अपन फेमिली ल मगरा देखाय लेगत महराज दिख गे। महराज ल देख बैशाखू हर खुश होत कहिस, ओदे आ गे मोर जुगाड़। महराज इंहा के भउजी के संगे संग महराजिन के बहिनी घलो दिखत हावय। मय हर बैशाखू ल टोंकत कहेंव के महराज के आघू म ओखर सारी ल कछु कहिबे त महराज हर पुरो दिही। बैशाखू हर बताइस के महराज हर महराजिन तीर भारी डेराथे। अइसे म ओहर अपन घरवाली ल देखही अउ मय हर ओखर सारी ल। अतका कहत बैशाखू हर पांव परत हंव महराज कहत महराज तीर चल दिस। कोटमीसोनार नानचुक टेसन। हमन हर मगरा देखे बर एके संग हो गेन। मय हर अउ महराज हर अपन-अपन घर ले खाय-पीए के घलो धर लेहे रहेन जेला उहां गारडन म मिल बांट के खाएन। बैशाखू हर घलो हमर संग म डट केे पेलिस। हर्ष अउ मुस्कान मगरा ले जादा लइका मन ल देख के खुश रहिस। बैशाखू अउ महराज के सारी मुस्कान अउ हर्ष ल गोदी म उठा लय त मय अउ रानी दुनो खुश रहेन। मगरा देख के वापिस टेसन पंहुचेन त मय हर बैशाखू ल कहेंव तोरो टिकिट कटाना हे का त बैशाखू हर मोला कहिस के अपनो झन कटा, जुगाड़ हे ना अतका कहत ओ हर गाड़ी के पांच झन के लहुटे के टिकिट देखा दिस। बैशाखू हर कतका बेर टिकिट बिसाइस मय हर नइ जान सकेंव। वापसी म बैशाखू हर अपन जुगाड़ के किस्सा ल आघू बढ़ात कहिस के ठाकुर, इन्दर हर बतात रहिस के एक झन ओखर इस्कूल के लइका हर जगमहंत ले तुलसी लिफ्ट के जुगाड़ कर पढ़त हावय। ओ हर आवत-जात रोज गाड़ी के जुगाड़ जमा लेथे। महूं हर कालि जुहर ले अपन गाड़ी ल छोड़ जुगाड़ म आफिस जाहूं।
बैशाखू के जुगाड़ पुरान ल सुन मय हर ओखर तीर पूछ पारेंव, फेर आज तो बच्छर के पहिली दिन ए, पहिली दिन तो तय हर अपन जुगाड़ म फेल होगे। जुगाड़ के जघा म तोला आय-जाय के टिकिट बिसाय बर पर गिस। तोर मगरा देखे के मन नइ रहिस होही तभो ले पचीस-पचास रूपिया खरचा हो गिस होही। मोर गोठ ल सुन बैशाखू हर बताइस के कहां लगे हस ठाकुर, मोर काहे के खरचा। मोर तो टोटल जुगाड़ चलिस। अब देख न, बिहनिहा स्टेसन हबरेंव ओतकेच जुअर एक ठन गाड़ी एती ले लहुटत रहिस, गेट म खड़ा होके टिकिट-टिकिट कहेंव त कइ झन अपन टिकिट ल दे दिस त लहुटे के टिकिट के जुगाड़ होगिस। अउ रहिस आय के टिकिट के त, अपन पाकिट ले टिकिट ल निकालत बैशाखू हर देखाइस, आय के बेरा तो मय हर तुंहरे बर दू टिकिट लेहे रहेंव। टिकिट चेकर आतिस त तय तीर म रहिते त कहि देतेंव के तोर-मोर टिकिट ए, अउ भउजी तीर म रहितीस त कहि देतेंव के मोर अउ भउजी के टिकिट ए। तभे तो मय हर गाड़ी म बइठते ही महराज डहर चल देहे रहेंव। तोर कती ले टिकिट चेकर आतिस त तय हर कहि देते के मय हर टिकिट ल धरे हावंव अउ महूं हर हां कहि के मोर तीर टीसी आतिस त देखा देतेंव। मोर डहर आतिस त बता देतेंव के ओती एक झन आउ हे जेखर ए टिकिट ए। अब चेकर भउजी ल थोड़े कहितिस के बिना टिकिट के हावस त फाइन भर। मय हर बैशाखू के दिमाक सुन अवाक रहि गेंव। मय हर ओला कहेंव के यार, ओ तो बने होइस के टिकिट चेकर नइ आइस, तय हर तो नवा बछर के पहिली दिन ही हमन के लड़ाइ करवा देते। गाड़ी स्टेशन हबरिच त हमन हर बैशाखू ले पीछा छोड़ा के अपन फटफटिया म बईठ के घर आ गेन। घर म हबरते ही दाइ हर पूछिस, लइका मन खुश तो रहिस न, जादा पदोइस तो नही। घूमे ल पाया के नइ पाया त मय हर दाइ ल समझात कहेंव, लइका धरे के जुगाड़ रहिस न बैशाखू अउ महराज के सारी। दाइ अउ रानी मोर मुंह ले जुगाड़ शब्द सुन मोर मुंह ल ताके लागिस अउ मय हर मने मन कहेंव, जय जुगाड़।