त्वरित टिप्पणी
राजेश सिंह क्षत्री,
संपादक छत्तीसगढ़ एक्सप्रेस
फिलीपिंस के राष्ट्रपति रॉड्रिगो दुतेर्ते ने बोहॉल के सेंट्रल रिजार्ट में हमले के बाद आतंकियों को चेतावनी देते हुए कहा कि वह लोगों के सिर काटने वाले मुस्लिम आतंकियों से 50 गुना ज्यादा क्रूर हो सकते हैं। अगर ऐसे कट्टरपंथी जिंदा पकड़े गए तो वह उन्हें खा भी सकते हैं, उन्होंने आतंकियों से कहा कि आप चाहते हैं कि मैं जानवर बन जाऊं तो मैं उसका भी आदी हूं। मैं तुम्हें खाने के लिए परोस सकता हूं और तुमसे 50 गुना ज्यादा गिर सकता हूं। सुकमा के बुरकापाल में माओवादी हमले के बाद कुछ इसी तरह की इच्छाशक्ति हमें भी दिखाने की आवश्यकता है क्योंकि हमले की कड़ी निंदा बहुत हो चुका, बहुत हो चुका निर्दोष ग्रामीणों तथा वीर पुलिसकर्मियों, जवानों की मौत के बाद रोने का सिलसिला। अब आरोप-प्रत्यारोप, बैठक, निंदा, प्रदर्शन से आगे की भी बात होनी चाहिए। हम पाकिस्तान द्वारा हमारे एक सैनिक का सिर काटने पर उनके पांच सैनिकों के सिर काटकर लाने की बातें करते हैं, आतंकियों के हमारी सीमा में घुसने पर उनकी सीमा के भीतर घुसकर सर्जिकल स्ट्राइक कर दुश्मनों को मार गिराते हैं तो फिर देश के भीतर किसी को इस तरह से नंगा नाचने की इजाजत आखिर क्यों? माना नक्सली भी हमारे अपने हैं, हममें से ही भटके हुए हमारे भाई बंधु है तो कानून की किस किताब में कहा गया है कि एक भाई को अपने ही भाई बंधु को मारने की, उनकी जान लेने की इजाजत है। क्या एक भाई दूसरे भाईकी जान ले ले तो मारने वाले भाई पर कत्ल का मुकदमा नहीं चलता है? अगर ये हमारे अपने हैं तो पाकिस्तान अथवा बांग्लादेश से आने वाले आतंकी कौन से गैर हैं, वो भी तो कल तक हमारे शरीर का हिस्सा रहे हैं। हममे इच्छाशक्ति की भी कमी नहीं है, सर्जिकल स्ट्राइक से लेकर नोटबंदी और एक ही झटके में वीआईपी कल्चर खत्म करने के लिए लालबत्ती हटाने से लेकर यूपी में योगी की ताजपोशी तक केन्द्र की नरेन्द्र मोदी सरकार ने अपनी इच्छाशक्ति का प्रदर्शन हर जगह किया है तो वहीं तमाम विराधों के बाद भी सरकार के शराब बेचने के फैसले को जिस तरीके से राज्य की रमन सरकार ने लागू किया है उससे अपने निर्णयों को मैदान में कार्यान्वित कराने की उनकी इच्छाशक्ति भी साफ नजर आती है। ऐसे में नक्सलियों के द्वारा चुन-चुनकर लाशों के ढेर खड़े करते जाना हमारी इच्छाशक्ति पर संदेह प्रकट करता है। जब हम पंजाब से आतंकियों का सफाया कर सकते हैं, हमारे ही राज्य में अंबिकापुर से नक्सलियों को खदेड़ सकते हैं तो फिर नक्सली समस्या को पूरी तरह से जड़ से समाप्त क्यों नही किया जा सकता। हर बार, हर बार नक्सलियों के हमले के बाद आर-पार की लड़ाई के वादे, कड़ी कार्यवाही किए जाने का भरोसा, नक्सलियों के कमजोर होने के दावे और इन्हीं दावों की पोल खोलते हुए एक और नक्सली हमला, हर बार हम अपनी मातृभूमि को खून स रंगते हुए देखते हैं, गिनती लगाते हैं आज तीन ग्रामीण मरे, कल दो नक्सली मारे गए, आज हमारे 12 जवान शहीद, आज कांग्रेस के पूरे नेतृत्व की हत्या तो आज नक्सलियों ने पांच सैनिकों को मारा। हर बार, हर बार हम सिर्फ लाशे गिनते हैं, याद करते हैं कि और कब-कब नक्सलियों ने हम पर हमला किया, कितनों को शिकार बनाया। दुनिया में जब हर समस्या का समाधान है तो फिर नक्सली समस्या का समाधान कैसे नहीं होगा, नक्सली अगर पीडि़त है, प्रताडि़त है तो उन्हें न्याय मिले और कातिल है तो सजा। सही हमेशा सही और गलत हमेशा गलत होता है, उसे अपने पराए के नजरिए से नहीं देखा जाना चाहिए वर्ना हममें और औरों में क्या अंतर रह जाएगा। चाहे जो हो, जैसे हो इस समस्या का समाधान तो हमें ढूंढना ही होगा।
राजेश सिंह क्षत्री,
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Naxali Hamla |
फिलीपिंस के राष्ट्रपति रॉड्रिगो दुतेर्ते ने बोहॉल के सेंट्रल रिजार्ट में हमले के बाद आतंकियों को चेतावनी देते हुए कहा कि वह लोगों के सिर काटने वाले मुस्लिम आतंकियों से 50 गुना ज्यादा क्रूर हो सकते हैं। अगर ऐसे कट्टरपंथी जिंदा पकड़े गए तो वह उन्हें खा भी सकते हैं, उन्होंने आतंकियों से कहा कि आप चाहते हैं कि मैं जानवर बन जाऊं तो मैं उसका भी आदी हूं। मैं तुम्हें खाने के लिए परोस सकता हूं और तुमसे 50 गुना ज्यादा गिर सकता हूं। सुकमा के बुरकापाल में माओवादी हमले के बाद कुछ इसी तरह की इच्छाशक्ति हमें भी दिखाने की आवश्यकता है क्योंकि हमले की कड़ी निंदा बहुत हो चुका, बहुत हो चुका निर्दोष ग्रामीणों तथा वीर पुलिसकर्मियों, जवानों की मौत के बाद रोने का सिलसिला। अब आरोप-प्रत्यारोप, बैठक, निंदा, प्रदर्शन से आगे की भी बात होनी चाहिए। हम पाकिस्तान द्वारा हमारे एक सैनिक का सिर काटने पर उनके पांच सैनिकों के सिर काटकर लाने की बातें करते हैं, आतंकियों के हमारी सीमा में घुसने पर उनकी सीमा के भीतर घुसकर सर्जिकल स्ट्राइक कर दुश्मनों को मार गिराते हैं तो फिर देश के भीतर किसी को इस तरह से नंगा नाचने की इजाजत आखिर क्यों? माना नक्सली भी हमारे अपने हैं, हममें से ही भटके हुए हमारे भाई बंधु है तो कानून की किस किताब में कहा गया है कि एक भाई को अपने ही भाई बंधु को मारने की, उनकी जान लेने की इजाजत है। क्या एक भाई दूसरे भाईकी जान ले ले तो मारने वाले भाई पर कत्ल का मुकदमा नहीं चलता है? अगर ये हमारे अपने हैं तो पाकिस्तान अथवा बांग्लादेश से आने वाले आतंकी कौन से गैर हैं, वो भी तो कल तक हमारे शरीर का हिस्सा रहे हैं। हममे इच्छाशक्ति की भी कमी नहीं है, सर्जिकल स्ट्राइक से लेकर नोटबंदी और एक ही झटके में वीआईपी कल्चर खत्म करने के लिए लालबत्ती हटाने से लेकर यूपी में योगी की ताजपोशी तक केन्द्र की नरेन्द्र मोदी सरकार ने अपनी इच्छाशक्ति का प्रदर्शन हर जगह किया है तो वहीं तमाम विराधों के बाद भी सरकार के शराब बेचने के फैसले को जिस तरीके से राज्य की रमन सरकार ने लागू किया है उससे अपने निर्णयों को मैदान में कार्यान्वित कराने की उनकी इच्छाशक्ति भी साफ नजर आती है। ऐसे में नक्सलियों के द्वारा चुन-चुनकर लाशों के ढेर खड़े करते जाना हमारी इच्छाशक्ति पर संदेह प्रकट करता है। जब हम पंजाब से आतंकियों का सफाया कर सकते हैं, हमारे ही राज्य में अंबिकापुर से नक्सलियों को खदेड़ सकते हैं तो फिर नक्सली समस्या को पूरी तरह से जड़ से समाप्त क्यों नही किया जा सकता। हर बार, हर बार नक्सलियों के हमले के बाद आर-पार की लड़ाई के वादे, कड़ी कार्यवाही किए जाने का भरोसा, नक्सलियों के कमजोर होने के दावे और इन्हीं दावों की पोल खोलते हुए एक और नक्सली हमला, हर बार हम अपनी मातृभूमि को खून स रंगते हुए देखते हैं, गिनती लगाते हैं आज तीन ग्रामीण मरे, कल दो नक्सली मारे गए, आज हमारे 12 जवान शहीद, आज कांग्रेस के पूरे नेतृत्व की हत्या तो आज नक्सलियों ने पांच सैनिकों को मारा। हर बार, हर बार हम सिर्फ लाशे गिनते हैं, याद करते हैं कि और कब-कब नक्सलियों ने हम पर हमला किया, कितनों को शिकार बनाया। दुनिया में जब हर समस्या का समाधान है तो फिर नक्सली समस्या का समाधान कैसे नहीं होगा, नक्सली अगर पीडि़त है, प्रताडि़त है तो उन्हें न्याय मिले और कातिल है तो सजा। सही हमेशा सही और गलत हमेशा गलत होता है, उसे अपने पराए के नजरिए से नहीं देखा जाना चाहिए वर्ना हममें और औरों में क्या अंतर रह जाएगा। चाहे जो हो, जैसे हो इस समस्या का समाधान तो हमें ढूंढना ही होगा।