विशेष टिप्पणी :
राजेश सिंह क्षत्री, संपादक छत्तीसगढ़ एक्सप्रेस
शुक्रवार को छत्तीसगढ़ बोर्ड द्वारा कक्षा दसवीं का परीक्षा परिणाम घोषित किया गया। 61 प्रतिशत से ज्यादा छात्र-छात्राएं इस परीक्षा में सफल रहे। परीक्षा परिणाम आते ही सफल छात्रों के चेहरे खिल उठे, उन्हें बधाई देने का सिलसिला चल पड़ा वहीं असफल छात्रों के चेहरे पर मायूसी छा गई। शनिवार के आते-आते जांजगीर-चांपा जिले के मालखरौदा क्षेत्र के ग्राम मुक्ता से एक बुरी खबर आ गई। एक नीजि स्कूल में पढऩे वाले सागर महंत को फेल होने का सदमा बर्दास्त नहीं हुआ और उन्होंने अपनी इहलीला समाप्त कर दी। सागर के गरीब माता-पिता जम्मू कश्मीर में मेहनत मजदूरी करते हैं, बहन अपने इकलौते भाई को अच्छी शिक्षा दिलाने के लिए स्वयं दुकान में काम करते हुए उसे नीजि स्कूल में तालीम दिलवाती है इन सबके बाद भी असफलता प्राप्त होने को सागर सह नहीं पाता और उसे इससे बचने का सिर्फ एक ही रास्ता नजर आता है जो कि जीवन से बहुत दूरी ले जाता है। असफलता है ही ऐसी चीज जो आदमी को भीतर से झकझोर कर रख देती है, खोखला कर देती है। सफलता और असफलता परस्पर पर्यायवाची है, जिस तरह से सफलता उत्साह से भर देती है उसी तरह असफलता निराशा संचार करती है। असफलता को प्राप्त करने वाले आप पहले व्यक्ति नहीं हो। जब तक जीवन में असफलता प्राप्त नहीं हुआ हो सफलता का सही अर्थो में महत्व ही पता नहीं चल पाता है। जीवन में कभी न कभी किसी न किसी मोड़ पर जब असफलता हम सब को मिलनी है तो फिर उसपर इतनी मायूसी क्यों ? दरअसल अपने परिवार को खोने के लिए कहीं न कहीं हम ही दोषी हैं। हम ही अपने बच्चों के दिमाग में सिर्फ जीतने और जीतने की बातें ही भरते हैं। हमारी अपेक्षा ज्यादा, और ज्यादा, और ज्यादा की रहती है। हमारी बातें हमारे बच्चों के दिलों पर चुभती है, उसे चोट पंहुचाती है। हम दूसरो से तुलना कर अपने बच्चों को उलाहना देते हैं। बच्चा फेल हो गया तो थर्ड ही आ जाता पर पास तो होता, थर्ड आ गया तो सेकंड नहीं आ सकता था क्या, सेकंड आ गया तो थोड़ा और पढ़ लेता तो क्या होता तू भी फस्र्ट आ जाता, फस्र्ट आ जाता तो उसका कैसे तुमसे दो परसेंट ज्यादा आया, तुम्हारा क्यों कम आया आदि आदि आदि ...। रिजल्ट निकलने की चर्चाएं शुरू हो कि ताना शुरू इससे कम आया तो देख लेना, घर में कदम भी नहीं रखना। हम ये बातें अपनी ओर से बच्चे के मनोबल को बढ़ाने, उसे और अच्छा करने को प्रेरित करने के लिए कहते हैं लेकिन इससे कहीं न कहीं बच्चे के मासूम मन पर विपरीत प्रभाव ही पड़ता है। थोड़े से कम नंबर आने अथवा फेल होने पर बच्चे के दिमाग में उसके परिजन हाथों में छड़ी लिए उसकी पिटाई करते हुए नजर आते हैं। बच्चों को बार-बार इस बात का अहसास दिलाना कि कितनी मुश्किलों से हम उसे पढ़ाई करवा रहे हैं भी कई बार ऐसी स्थिति के लिए उत्तरदायी रहता है जब बच्चों को लगने लगता है कि अपने परिजनों की सारी तकलीफों के लिए बस वो ही उत्तरदायी है, वो नही रहेगा तो उनके माता-पिता की सारी तकलीफों का अन्त हो जाएगा। आपके माता-पिता, आपके परिजनों की खुशियां भी आपसे है। जब आप ही नहीं होगे तो आपके बिना कैसी खुशियां। माता-पिता को अपने बच्चों के पालन-पोषण में कोई तकलीफ नहीं होती, वो आपको चाहते हैं, आपसे प्यार करते हैं इसलिए आपका भला सोचते हैं, आपके लिए अपने परिवार के लिए थोड़ी ज्यादा मेहनत करते हैं। फिर परीक्षा में फेल होने, आपके असफल होने पर होने वाली तकलीफ उस तकलीफ के आगे कुछ भी नहीं है जो आपके गलत कदम उठाने, आपके इस दुनिया को छोड़कर यंू ही असमय जाने से होता है। कालेज के दिनों में मेरे एक दोस्त कहा करते थे ये कोई कुंभ का मेला तो नहीं जो बारह वर्षो के बाद लौटकर आए, परीक्षा ही तो है ना अगले साल फिर आएगा। इस साल नहीं अगले साल सही, अगले साल नहीं उसके अगले साल सही लेकिन सफल तो आप होकर रहेंगे। क्या पता भगवान ने आपको किसी और काम के लिए बनाया हो, आपकी असफलता में ही आपकी सफलता का राज छिपा हो। आप पास होते तो अगली कक्षा में प्रवेश ले लेते, फिर अगले कक्षा में और अंत में कोई छोटी-मोटी नौकरी मिल जाती। फेल होने पर आप खेल के क्षेत्र में जा सकते हो, गायन, एक्टिंग, ठेकेदारी और भी कई एक से बढ़कर एक क्षेत्र है हो सकता है आपकी किस्मत आपको वहां ले जाना चाह रही हो और उसके लिए फेल होना जरूरी हो जिससे आप उस फिल्ड में ज्यादा अच्छी पोजीशन बना सको। फेल होने पर गलत कदम उठाए भी तो क्यों ? आपके घरवाले क्या कहेंगे, आपके दोस्त क्या कहेंगे, आपके रिश्तेदार क्या कहेंगे, आपके पड़ोसी क्या कहेंगे ? जिसको जो चाहे कहना है कहने दो, कहने वालों ने तो भगवान श्री राम को भी नहीं छोड़ा था, सीता माता पर भी आरोप जड़े थे तो आप और हम तो इंसान हैं। ये हमारी जान है, हमारे लिए बड़ी कीमती है, बहुत जतन से इसे हमारे परिजनों ने संभाला है, हमसे हमारे परिजनों को बहुत सी उम्मीदे हैं। हमारे जाने से उनकी सारी उम्मीदें हमारे साथ ही दफन हो जाती है वही रहने से एक उम्मीद तो रहती है। दिन भर की भागादौड़ी, थकान, गुस्से के बीच भी एक निश्च्छल मुस्कान सिर्फ और सिर्फ हमारे लिए ही तो होती है। इसे यूं ही जाया होने नहीं देना है। खुदखुशी कायरता है, मेरे परिजनों ने मुझे कायर नहीं बनाया है, मुझे हालातों से लडऩा है, लडऩा है और लडऩा है। अगर मैंने परिस्थितियों से लडऩा सीख लिया तो जीत तो एक न एक दिन मिल ही जाएगी। हां मैं जीतूंगा, जीतने के लिए लड़ूंगा अपने आप से, अपने परिजन से, अपने पास पड़ोस के लोगों से। जिस दिन मैंने लडऩा सीख लिया समझ जाना मैं जीत गया। जिंदगी की जंग तो बहुत लंबी होती है, एक पास या फेल से उससे कोई फर्क पडऩे वाला नहीं है, सही सुना मैंने ये परीक्षा ही तो है कोई कुंभ का मेला तो नहीं जिसे आने में बारह साल का वक्त लगे, इस साल नहीं तो अगले साल सही, अगले साल नहीं तो उसके अगले साल सही।
राजेश सिंह क्षत्री, संपादक छत्तीसगढ़ एक्सप्रेस
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