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सरोज पाण्डेय का राज्यसभा जाना धरम के लिए गम तो रमन के लिए राहत की बात

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राजेश सिंह क्षत्री

रायपुर/छत्तीसगढ़ एक्सप्रेस
Dainik chhattisgarh express

  तो आखिरकार छत्तीसगढ़ से राज्यसभा के लिए भाजपा प्रत्याशी का नाम घोषित हो ही गया, भाजपा प्रदेशाध्यक्ष धरमलाल कौशिक द्वारा नामांकन फार्म खरीद लिए जाने के बाद भी पार्टी ने उनके लिए दिल्ली को दूर ही रखा और सरोज पाण्डेय के नाम पर मुहर लगा दी। सरोज पाण्डेय का राज्यसभा के लिए प्रत्याशी घोषित किया जाना एक साथ कई पैगाम दे गया।
    राज्यसभा के माध्यम से सांसद बनने का छत्तीसगढ़ के संगठन प्रमुख धरमलाल कौशिक का सपना फिलहाल अभी अधूरा ही रह गया। धरमलाल कौशिक भारतीय जनता पार्टी के प्रदेशाध्यक्ष हैं, भूषण जांगड़े का कार्यकाल पूरा होने से रिक्त हो रही राज्यसभा सीट के लिए राज्य के मुखिया डॉ. रमन सिंह की भी पहली पसंद धरमलाल कौशिक ही रहे यही वजह रही कि मुख्यमंत्री निवास में आयोजित पारिवारिक कार्यक्रम में सारे नेताओं से लेकर अधिकारियों तक ने भाजपा प्रदेशाध्यक्ष को राज्यसभा सांसद बनने के लिए अग्रिम बधाई दे डाली वहीं धरमलाल कौशिक की ओर से राज्यसभा के लिए नामांकन फार्म तक खरीद लिया गया इन सबके बाद भी यदि धरमलाल कौशिक के स्थान पर पार्टी के राष्ट्रीय महामंत्री सरोज पाण्डेय के नाम पर राज्यसभा के लिए मुहर लगी तो इसके निहितार्थ समझे जा सकते हैं। इसका पहला अर्थ तो यह लगाया जाना चाहिए कि आगामी चुनाव को देखते हुए राज्य से जुड़े सारे फैसले अब केन्द्रीय नेतृत्व ही तय करेगा, इसका आभास भी तभी होने लगा था जब राज्य इकाई के द्वारा राज्यसभा के लिए दावेदारी कर रहे सभी 25 लोगों के नाम आगे बढ़ा दिए गए थे। इन सब के बीच धरमलाल कौशिक यदि राज्यसभा जाने के प्रति आशान्वित थे तो इसकी सबसे बड़ी वजह यही थी कि राज्य में सत्ता अर्थात धरमलाल कौशिक और संगठन अर्थात मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह दोनों की पहली पसंद इस पद के लिए धरमलाल कौशिक ही थे ऐसी स्थिति में उनका ओव्हरकांफिडेंस उन पर भारी पड़ गया वहीं केन्द्रीय नेतृत्व ने एक प्रकार से राज्य के नेताओं को भी इस फैसले से चेता दिया है कि प्रदेश की वर्तमान राजनीतिक स्थिति को देखते हुए तथा राजस्थान तथा मध्यप्रदेश में हुए उपचुनाव में मिली पराजय के बाद अब वो छत्तीसगढ़ को भी मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह और संगठन प्रमुख धरमलाल कौशिक के बूते छोडऩा नहीं चाहते तथा आगामी चुनाव में भले ही सामने में चेहरा राज्य के मुख्यमंत्री का होगा लेकिन चुनाव तो यहां भी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के नेतृत्व में ही लड़ा जाएगा। ऐसी स्थिति में मिशन 2018 और मिशन 2019 में भी किसको टिकट मिलेगी तथा किसकी टिकट कटेगी इसका फैसला केन्द्रीय नेतृत्व ही करेगा। खुद के स्थान पर सरोज पाण्डेय को टिकट मिलने से भाजपा प्रदेशाध्यक्ष धरम लाल कौशिक को जहां जोर का झटका लगा है वहीं इन सबके बाद भी मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह के लिए यह खबर इसलिए राहत पंहुचाने वाली हो सकती है कि चुनाव पश्चात पार्टी के सत्ता में आने पर उनके समक्ष परेशानी खड़े कर सकने वाली नेता फिलहाल केन्द्रीय राजनीति में एडजस्ट रहेगी।

कांग्रेस के लिए घाटे का सौदा रहा राज्यसभा चुनाव!

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saroj panday lekhram sahu

राजेश सिंह क्षत्री

रायपुर/छत्तीसगढ़ एक्सप्रेस
छत्तीसगढ़ से राज्यसभा की एक मात्र सीट के लिए होने वाले चुनाव में भाजपा प्रत्याशी सरोज पाण्डेय का चुना जाना पहले से ही तय था ऐसी स्थिति में कांग्रेस ने ओबीसी कार्ड खेलते हुए लेखराम साहू को चुनाव मैदान में उतार दिया तो लगा चुनाव हारने के बाद भी कांग्रेस राज्यसभा चुनाव के बहाने बढ़त बनाने में कामयाब रहेगी। लेखराम साहू की उम्मीद्वारी का आगे बढ़कर जब छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस ने समर्थन किया तथा उनसे जुड़े तीनों विधायकों द्वारा लेखराम साहू के पक्ष में वोट डाले जाने की घोषणा की गई तो प्रदेश की राजनीतिक फिजां अचानक से बदलते हुए जान पड़ी। कयास लगने लगे कि कांग्रेस और अजीत जोगी के बीच की दूरी कम हो चली है वहीं बहुजन समाज पार्टी को साधने की कवायद में जुटे पीसीसी अध्यक्ष सहित कांग्रेसियों को भरोसा हो गया कि 90 सदस्यीय विधानसभा में उनके बसपा विधायक केशव चन्द्रा और जोगी कांग्रेस से संबद्ध अमित जोगी, आर.के. राय तथा सियाराम कौशिक के वोट सहित चालीस वोट तो मिलने तय ही हैं। गुरूवार की सुबह तक यही स्थिति नजर आ रही थी। कभी भाजपा में रहे निर्दलीय विधायक विमल चोपड़ा ने पहले ही भारतीय जनता पार्टी प्रत्याशी सरोज पाण्डेय को समर्थन दिए जाने की घोषणा कर दी थी तो वहीं लेखराम साहू ने भी सियासी पासा फेंकते हुए दावा करना शुरू कर दिया कि विधायक के चुनाव में उनके चिर परिचित प्रतिद्वंद्वी सहित एक ही पार्टी में रहकर सरोज पाण्डेय के विरोधी के रूप में शुमार किए जाने वाले मंत्री का समर्थन उन्हें मिल रहा है। इनके वोट तो कांग्रेस उम्मीद्वार को मिलने से रहे उल्टा जोगी कांग्रेस के जो वोट उन्हें प्रत्याशी घोषित किए जाने के बाद से उनके पक्ष में माने जा रहे थे वो तीन वोट भी उनसे दूर छिटक गए। गुण्डरदेही विधायक राजेन्द्र कुमार राय के लेटर पेड पर उनके सहित बिल्हा विधायक सियाराम कौशिक ने पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष को पत्र लिखकर मांग कर दी कि कांग्रेस के प्रदेश प्रभारी पीएल पुनिया ने उनके नेता अजीत जोगी का अपमान किया है इसलिए जब तक वो अजीत जोगी से माफी नहीं मांगते जोगी कांग्रेस से जुड़े तीनों विधायक वोट डालने नहीं जायेंगे। इस बीच भाजपा के पोलिंग एजेंट शिवरतन शर्मा ने कांग्रेस विधायक अनिल भेडिय़ा के वोट पर आपत्ति जतायी तो वहीं कांग्रेस ने राज्यसभा चुनाव में अपना अंतिम पासा फेंका और उसके प्रत्याशी लेखराम साहू ने चुनाव आयोग से प्रेमप्रकाश पाण्डेय, रमशीला साहू, बद्रीधर दीवान और अशोक साहू के वोट निरस्त करने की मांग कर डाली। जोगी कांग्रेस से जुड़े तीनों विधायकों को वोट नहीं डालना था सो उन्होंने अपना वोट नहीं डाला और 90 सदस्यीय विधानसभा में कुल 87 वोट ही डाले गए। इस बीच अमित जोगी ने इन सब के लिए कांग्रेस पार्टी को ही जिम्मेदार ठहराते हुए आरोप लगाया कि वो तो आगे बढ़कर लेखराम साहू को वोट देना चाहते थे लेकिन कांग्रेस ही उनके वोट नहीं लेना चाहते थे तभी तो पीएल पुनिया ने पार्टी सुप्रिमो अजीत जोगी के लिए जयचंद जैसे शब्दों का इस्तेमाल किया। वोटो की गिनती के बाद जो अंतिम स्थिति रही उसके अनुसार भाजपा को उनके 49 विधायक सहित निर्दलीय विमल चोपड़ा का वोट तो मिला ही, बहुजन समाज पार्टी के विधायक केशव चन्द्रा का वोट पाने में भी वे सफल रहे। भाजपा से मायावती की जो दूरी है उसे देखते हुए बसपा विधायक के वोट भाजपा प्रत्याशी को मिलने की कल्पना भी कांग्रेस के रणनीतिकारों ने नहीं की थी वहीं छत्तीसगढ़ में बहुजन समाज पार्टी के परंपरागत वोटरों को देखते हुए पीसीसी चीफ भूपेश बघेल भी लंबे समय से उन्हें साधने में लगे थे। जांजगीर-चांपा जिले के केरा में आयोजित हसदेव जनयात्रा के समापन अवसर पर उन्होंने हाथी पर सवार लोगों से बीजेपी को हराने हाथ का साथ देने की सार्वजनिक अपील भी की थी ऐसे में बसपा प्रत्याशी का भाजपा के साथ जाना कांग्रेस पार्टी के रणनीतिकारों के लिए झटका माना जा सकता है, वहीं हाथ में आए हुए जोगी कांग्रेस के वोटो का भी हाथ से छिटक जाना पार्टी के रणनीतिकारों की रणनीति पर सवाल खड़े करते हैं।

छत्तीसगढ़ी न्यूज का लोगो बनकर तैयार

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Logo Chhattisgarhi News
दैनिक छत्तीसगढ़ एक्सप्रेस गु्रप के द्वारा एक वेब न्यूज चैनल छत्तीसगढ़ी न्यूजका प्रसारण अतिशीघ्र किया जाने वाला है उक्त संबंध में छत्तीसगढ़ एक्सप्रेसग्रुप के मुख्य संपादक राजेश सिंह क्षत्री ने जानकारी दी कि वेब न्यूज चैनल छत्तीसगढ़ी न्यूज में सभी खबरें छत्तीसगढ़ी बोली में डाली जाएगी वहीं खबरों  का प्रसारण भी छत्तीसगढ़ी में ही किया जाएगा। छत्तीसगढ़ी न्यूजका लोगो आज जारी कर दिया गया है। अब शीघ्र ही छत्तीसगढ़ के लोगों को छत्तीसगढ़ी बोली में खबरें पढऩे और देखने सुनने को मिलेगी। छत्तीसगढ़ी न्यूजको जन जन तक पंहुचाने के लिए विकास खंड स्तर तक इसके लिए संवाददाताओं तथा विज्ञापन संग्रहकर्ताओं की नियुक्ति जल्द ही की जाएगी वहीं संभागीय स्तर पर तथा जिला स्तर पर भी ब्यूरो बनाए जायेंगे।

बच्चों के चेहरे पर मुस्कान बिखेर रही सुयश, मिल रहा बेहतर प्रतिसाद, आप भी हो सकते हैं शामिल

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Dainik Chhattisgarh Express Suyash
Niyam evm sharte
Suyash Ku. Ankita devangan birra

Suyash Anushka Tiwari Bilaspur

Suyash Aryan Tiwari Bilaspur


Suyash Dipansh Namdev Birra

Suyash Divyansh Namdev Birra

Suyash Ishika yadav

Suyash Kinjal Devangan

Suyash Nehal Koushik Bandabhara

Suyash Prachi sahu gatawa

Suyash Pratik Chandra

Suyash Pravin Tiwari Birra

Suyash Shreyash Rathore Khokhra Janjgir

Suyash Siddharth Pandey Janjgir

Suyash siya shukla birra

Suyash Sumit kumar bamjare birra

Suyash soniya banjare birra

Dainik Chhattisgarh express pratibha
samman 2019 praman patra ka prarup

Dainik Chhattisgarh express pratibha 
samman 2019 Sticker

suyash trisha kashyap birra

suyash Vedansh tiwari birra

suyash abha sao janjgir
रायपुर एवं जांजगीर-चांपा से प्रकाशित दैनिक समाचार पत्र छत्तीसगढ़ एक्सप्रेस अपने विज्ञापन स्तंभ सुयश को इस बार अनोखे अंदाज में सामने लाया है जिसे आमजन का काफी बेहतरीन प्रतिसाद मिल रहा है वहीं सुयश स्तंभ बच्चों के चेहरे पर मुस्कान बिखेर रहा हैै। इस स्तंभ में कक्षा नर्सरी से लेकर कक्षा बारहवीं तक के बच्चों को मिनी, कनिष्ठ और वरिष्ठ के रूप में शामिल किया गया है जिनकी सफलता पर विज्ञापन शुल्क के रूप में सिर्फ एक बार पांच सौ रूपए की राशि जमा करायी जा रही है, वहीं इसके एवज में 8 सेंटीमीटर इन टू 8 सेंटीमीटर की साइज में तीन दिन तक उनका विज्ञापन छत्तीसगढ़ एक्सप्रेस में प्रकाशित किया जा रहा है, इतना ही नहीं इन बच्चों को दैनिक छत्तीसगढ़ एक्सप्रेस की ओर से प्रतिभा सम्मान 2019 के रूप में प्रमाण पत्र एवं स्मृति चिन्ह देकर सम्मानित भी किया जाएगा। सिर्फ पांच सौ रूपए की छोटी सी राशि में तीन दिन तक अखबार में विज्ञापन प्रकाशित होने के साथ साथ इनाम पाने को लेकर छात्र छात्राओं के साथ उनके परिजन भी काफी उत्साहित नजर आ रहे हैं, इस स्तंभ में शामिल होने के लिए अपने नजदीकी छत्तीसगढ़ एक्सप्रेस संवाददाता से संपर्क किया जा सकता है वहीं मो. नं. 7400504830 या 7489405373 पर भी संपर्क कर इसके संबंध में जानकारी प्राप्त की जा सकती है तथा इसमें शामिल हुआ जा सकता है।

3 सौ रुपए की उजास बदल सकती है किस्मत, इनाम में मिल सकते हैं कार, स्कूटी, मोटर साइकिल, एसी सहित बहुत कुछ

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रायपुर। सीजी एक्सप्रेस ग्रुप द्वारा इस दिवाली मैगजीन साइज में 3 सौ प्लस पेज में विशेषांक उजासका प्रकाशन किया जा रहा है। सिर्फ 3 सौ रुपए का उजास बुक कर पाठक लकी ड्रा के माध्यम से कार, मोटर साइकिल, स्कूटी सहित लाखों के इनाम जीत सकते हैं। www.ujaas.inपर जाकर पाठक बड़ी आसानी से उजासकी ऑनलाइन बुकिंग कर सकते हैं, वहीं अपने नजदीकी सी जी एक्सप्रेस संवाददाता के माध्यम से भी उजास की बुकिंग की जा सकती है। बुकिंग ऑफर दीवाली 27 सितम्बर तक है, वहीं
Ujaas
उजास की डिलीवरी दीवाली के बाद होगी। 25 सितम्बर को उजास का पहला लकी ड्रा निकाला जाएगा। जिसके बाद रोज लकी ड्रा निकाल इनाम दिए जाएंगे।

सी जी एक्सप्रेस ग्रुप द्वारा इस इस दीवाली 3 सौ प्लस पेज में प्रकाशित होने वाली सिर्फ 300 रुपए की पुस्तक उजास के माध्यम से सैकड़ों पाठकों की किस्मत चमक सकती है तथा सिर्फ 3 सौ रुपए में उजास बुक कर पाठक कार, मोटरसाइकिल, स्कूटी सहित लाखों के इनाम जीत सकते हैं। उजास की वेबसाइट www.ujaas.inपर जाकर बडी आसानी से पाठक उजास की बुकिंग कर सकते हैं वहीं अपने नजदीकी सीजी एक्सप्रेस संवाददाता के माध्यम से भी उजास की बुकिंग की जा सकती है।

एक बार उजास बुक करने पर पाठक को तीन बार लकी ड्रा में भाग लेने का अवसर प्राप्त होगा। 25 सितंबर से प्रतिदिन लकी ड्रा निकाल 5 लकी विनर को होम थियेटर अथवा ब्लू टूथ स्पीकर दिया जाएगा, वहीं हर सप्ताह एक लकी विनर को 32 इंच एलईडी कलर टीवी दिया जाएगा। बम्पर ड्रा में पाठकों को कार, मोटर साइकिल सहित लाखों के इनाम जीतने के अवसर होंगे।

उजास बनाएगा इतिहास, ऑनलाइन बुकिंग आज से प्रारंभ, 25 से रोजाना लकी ड्रा निकाल दिए जाएंगे ईनाम

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रायपुर।सोशल मीडिया के इस युग मे आज जहां एक एक बुक बेचने में लोगो को भारी मशक्कत करनी पड़ती है वहीं उजास के ऑनर को भरोसा है कि अपने बेहतर कन्टेंट और बेहतरीन स्की
म के दम पर उजास बिक्री के सारे रिकॉर्ड को तोड़ते हुए नया इतिहास रचेगी। सी जी एक्सप्रेस ग्रुप द्वारा दीपावली के अवसर पर 300 प्लस पेज में मैगजीन साइज में प्रकाशित इस बुक की कीमत मात्र 300 रुपये है वही बुक की खरीदी पर लकी ड्रा के माध्यम से लाखों के ईनाम बांटे जाएंगे।

सीजी एक्सप्रेस ग्रुप द्वारा दीपावली के अवसर पर तीन सौ प्लस पेज में विशेषांक उजास का प्रकाशन किया जा रहा है, उजास का आशय उजाला अथवा रौशनी होता है। विशेषांक उजास मैगजीन साइज में तीन सौ प्लस पेज में होगा। दीपावली के अवसर पर निकलने वाले इस विशेषांक की ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों प्रकार की बुकिंग प्रारंभ हो गई है। उजास की कीमत सिर्फ तीन सौ रूपए है वहीं उजास बुक करने वाले को तीन बार लकी ड्रा में भाग लेने का अवसर मिलेगा तथा पाठक उजास की बुकिंग कर लाखों के इनाम जीत सकते हैं। लकी ड्रा निकाल 25 सितंबर से प्रतिदिन पांच लकी विनर को होम थियेटर अथवा ब्लू टूथ स्पीकर इनाम में दिया जाएगा वहीं सप्ताह में एक लकी विनर को 32 इंच एलइडी टीवी दिया जाएगा वहीं बम्पर इनाम में कार, मोटर सायकल, स्कूटी, कूलर, फ्रीज, एसी, इंडक्शन आदि इनाम रखे गए हैं। इनामी आफर 27 अक्टूबर तक लागू है वही उजास की डिलिवरी दीवाली के बाद होगी।

कोरोना काल में विद्यार्थियों के लिए छत्तीसगढ़ एक्सप्रेस आयोजित कर रहा नि:शुल्क पेंटिंग प्रतियोगिता

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जांजगीर एवं आसपास के नर्सरी से स्नातकोत्तर तक के विद्यार्थी ले सकते हैं भाग


जांजगीर-चांपा.  कोरोना काल में एक ओर जहां पिछले एक वर्ष से स्कूल एवं कॉलेज बंद है वहीं पालकों को भी लगने लगा है कि उनके बच्चों की प्रतिभाओं को कोरोना के चलते सामने लाने का अवसर नहीं मिल रहा है ऐसी स्थिति में बच्चों के व्यक्तित्व को निखारने के लिए छत्तीसगढ़ एक्सप्रेस द्वारा कक्षा नर्सरी से लेकर स्नातक और स्नातकोत्तर तक के विद्यार्थियों के लिए नि:शुल्क पेंटिंग प्रतियोगिता का आयोजन किया जा रहा है। बच्चे कोरोना से प्रभावित न हो इसलिए प्रतियोगिता में बच्चों को पेंटिंग बनाने के लिए कहीं जाने की जरूरत नहीं है बल्कि वो अपने घर में ए-4 पेपर जो कि किसी भी फोटोकापी दुकान में आसानी से उपलब्ध हो जाती है में पेंटिंग करेंगे तथा उन्हें छत्तीसगढ़ एक्सप्रेस कार्यालय में 31 जुलाई तक जमा करना है।
प्रतियोगिता के संबंध में जानकारी देते हुए छत्तीसगढ् एक्सप्रेस की श्रीमती रानी क्षत्री ने बताया कि मार्च 2020 से कोरोना के मामले बढऩे के बाद बच्चे स्कूल से दूर हो चले हैं, बच्चों की आनलाइन बढ़ाई तो हो रही है लेकिन उनके व्यक्तित्व का विकास अवरूद्ध हो चला है। अधिकांश बच्चों की हेंड राइटिंग खराब हो गयी है वहीं उनके व्यक्तित्व को निखारने तथा उनकी प्रतिभा को सामने लाने का मौका पालकों को नहीं मिल रहा है। स्कूलों के खुले रहने से सांस्कृतिक आयोजनों, खेलकूद एवं अन्य माध्यमों से बच्चों की प्रतिभाएं सामने आते रहती थी इन्हीं सब बातों को ध्यान में रखते हुए छत्तीसगढ़ एक्सप्रेस ने अपने छठवें स्थापना दिवस के अवसर पर इन बच्चों के लिए प्रतियोगिता कराने का नि:श्चय किया जिसे कोरोना गाइड लाइन का पालन करते हुए किया जा सके इसके लिए पेंटिंग से बढ़कर कोई दूसरा विषय नहीं है, बच्चे बड़ी आसानी से अपने घर में पेंटिंग कर इस प्रतियोगिता में शामिल हो सकते हैं, इसके लिए किसी भी तरह का शुल्क नहीं रखा गया है वहीं श्रेष्ठ पेंटिंग को पुरस्कृत किया जाएगा।

4 श्रेणियों में विभाजित होगी प्रतियोगिता, सभी में 

 प्रथम, द्वितीय, तृतीय के साथ सांत्वना पुरस्कार


पेंटिंग प्रतियोगिता में जांजगीर एवं आसपास के क्षेत्रों के कक्षा नर्सरी से लेकर कालेज तक में पढऩे वाले सभी विद्यार्थी भाग ले सकते हैं चूंकि हर उम्र के बच्चों की क्षमता अलग-अलग होती है कक्षा नर्सरी अथवा प्रायमरी का बच्चा कॉलेज के विद्यार्थी का मुकाबला नहीं कर सकता इसलिए प्रतियोगिता को ए, बी, सी और डी चार अलग-अलग श्रेणियों में विभाजित कर दिया गया है। ग्रुप ए में कक्षा नर्सरी से पांचवीं, ग्रुप बी में कक्षा छठवीं से आठवीं, ग्रुप सी में नवमीं से बारहवीं और ग्रुप डी में डिप्लोमा और डिग्री कोर्स वाले कॉलेज, आईटीआई आदि क्षेत्रों के विद्यार्थी भाग ले सकते हैं। सभी वर्गो में पृथक पृथक प्रमाण पत्र, स्मृति चिन्ह के साथ-साथ प्रथम पुरस्कार 2100 रूपए, द्वितीय पुरस्कार 1100 रूपए, तृतीय पुरस्कार 500 रूपए, सांत्वना पुरस्कार सभी वर्गो में 10-10 लोगों को 111 रूपए प्रदान किया जाएगा। वहीं भाग लेने वाले सभी प्रतिभागियों को मां मड़वारानी कलेक्शन द्वारा स्पेशल डिस्काऊंट कूपन प्रदान किया जाएगा।

घर में पेंटिंग कर छत्तीसगढ़ एक्सप्रेस कार्यालय जांजगीर में जमा करें पेंटिंग


छत्तीसगढ़ एक्सप्रेस की ओर से आयोजित इस प्रतियोगिता में कोरोना की वर्तमान स्थिति को देखते हुए पेंटिंग करने के लिए बच्चों को किसी हॉल में अथवा स्कूल/कॉलेज में बुलाया नहीं जा रहा है बल्कि बच्चों को अपने घर में ही पेंटिंग करना है, बच्चे ए-4 साईज का फोटोकापी पेपर लेकर उसमें एक ओर अपने घर में ही पेंटिंग करेंगे। वहींपेंटिंग वाले पेपर के पीछे कोरे साइड में अपना नाम, अपने स्कूल /संस्थान का नाम, कक्षा, मोबाईल नंबर और पूरा पता लिखकर उसे 31 जुलाई 2021 तक दैनिक छत्तीसगढ़ एक्सप्रेस कार्यालय, मां मड़वारानी कलेक्शन, एलआईसी आफिस के पास, लिंक रोड जांजगीर में सुबह 10 बजे से शाम 4 बजे तक जमा कर सकते हैं। किसी भी तरह की जानकारी के लिए संपादक छत्तीसगढ़ एक्सप्रेस के मोबाईल नंबर 7489405373 पर इसी अवधि में संपर्क किया जा सकता है।

नोनी (छत्तीसगढ़ी कहानी)

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कहानीकार: राजेश सिंह क्षत्री 

    "आऊ काखर जनमदिन हे ...?"


    रतिहा बारा बजे ले ठीक पहिली नोनी हर अचानक पूछिस त मैं हड़बड़ा गेंव, वाट्सएप के स्टेटस म मैं हर नोनी ल ही जनमदिन के बधाई देत रहेंव, मैं हर सोचे रहेव नोनी के देखे के बाद स्टेटस ल डिलिट मार दूंहू, मैं स्टेटस ल डिलिट मारतेंव तेकर ले पहिली नोनी हर सवाल दाग दिस त एक छिन बर दिमाग हर सून हो गे। ओतके बेर हरसू हर अपन टेबलेट ल धरे अपन दीदी ल पूछत रहिस, "दीदी फेमली ग्रुप म ए लइका के जनमदिन के बधाई महूं हर भेज देववं का ?"मैं हड़बड़ा के फेमली ग्रुप ल देखेंव, एक झी नानकन नोनी ल जनमदिन के जमो झन बधाई देत रहिस, मोर जान म जान आइस।

    " दू साल के नोनी ए, ओखरे जनमदिन आय,"मैं हर ओ ग्रुप के फोटो खींच नोनी के म डार देहेंव। नोनी के जनमदिन ले अनजान बनत मैं हर पूछेंव, "आउ काखरो जनमदिन हावय का ...?"

    नोनी हर एक आखर म जवाब दिस, "नहीं।"महूं हर आउ कछु पूछे के हिम्मत नइ करेंव। 

    नोनी तीर जान पहिचान तो पहिली के रहिस फेर गोठ-बात हर नवा-नवा चालू होय रहिस हे। मोर अउ मोर सुवारी दूनों के मोबाइल म एके ठन जीमेल डलाय रहिस हे, तेकर फायदा अउ नुकसान ए रहिस हे के एक झन के म कोनो मोबाइल नंबर सेव करय त दूनो के म हो जाय, एक म ले कोनों के नंबर ल डिलीट मारते त दूनो ले ओ नंबर हर गायब हो जाय। मोर सुवारी हर अपन मोबाइल म नोनी के नंबर ल सेव करिस त ओ हर मोरो म दिखे लागिस, मोर वाट्सएप म नोनी के नाव भर दिखय, फोटो नही तेकर सेती समझ म नइ आत रहिस के ओ हर कोन ए। एक दिन अचानक बाल्टी भर पानी ल उठात उठात मोर कनिहा के नस हर तीरा गे। कनिहा पीरा म मैं हर कलबला गेंव, मैं न उठ सकेंव न बइठ सकेंव, अच्छा खासा मनखे के हालत कुकुर बिलइ बरोबर होगे। सोझ ठाढ होय के कोसिस करवं त कनिहा हर अतका जोर ले पिरावय के आंखी ले आंसू निकल जावय। बुता-काम ल छोड़ के मजबूरन मोला खटिया धरे बर पर गे।

     खटिया म सूते सूते मोबाइल ल कोचकत रहेंव के मोला मोर मोबाइल म नोनी के नाव दिखिस, मय हर ओला गुड मार्निंग डारेंव त ओ हर मोर तीर मोर नाव पूछिस। मय हर मोर नाव बताएव ओ हर अपन नाव बताइस। मुरसरिया तीर रखाय मोर सुवारी के मोबाइल ल देखेंव त ओमा वाट्सएप म नोनी के फोटो दिखत रहिस। मय हर नोनी ल कहेंव, "का जादू जानथस नोनी, मोर सुवारी के मोबाइल म तोर फोटो दिखत हावय, मोर म नी दिखत हे।"मोर अतका कहना रहिस के नोनी के फोटो मोरो मोबाइल म दिखे लागिस। नोनी तीर गोठियात कनिहा पीरा के पता नइ चलत रहिस हे। जइसे मय हर गोठ बात बंद करेंव पीरा हर फेर बाढ़ गे। 

    मय हर फेर मोबाइल ल धर लेहेंव, दू चार झन के डीपी देखत मोर धियान हर नोनी के फोटो म अटक गे। मय हर पहिली बखत नोनी ल धियान से देखेंव। खुल्ला बाल, फूले फूले गाल नोनी हर भारी सुघ्घर दिखत रहिस हे। मैं नोनी के फोटो ल एकटक निहारे लगेंव। मैं हर ओला जतका देखवं ओ हर ओतके सुघ्घर लागय। मैं हर जब तक फोटो ल निहारंव कनिहा पीरा के पता नइ चलय अउ जइसे ही मोबाइल ल तीर म रखतेवं कनिहा पीरा म आंसू निकल जावय। नोनी के फोटो ल देखत मझनिहा ले संझा अउ संझा ले रतिहा हो गे। ऊपरवाला हर नोनी के रूप म मोर कनिहा पीरा के दवाई भेज देहे रहिस हे। रतिहा जमो झन के नींद भन्नाए रहय, अउ मैं हर कनिहा पीरा म एती ले ओती कलथी मारत रहवं। मैं हर फेर मोबाइल ल धर नोनी के फोटो ल निहारे लगेंव। नोनी ल निहारत अचानक कल्पना करे लागेंव के नोनी हर तीर म रहितीस त कतका मजा आतिस, मय हर नोनी ल बड़ मया करतेंव, रात भर ओखर अंगठी ल धर ओला अपन मन के हाल सुनात रहितेवं, मय हर अइसन सोचते रहेव के नोनी हर आनलाइन दिखे लागिस। अइसन लागिस ऊपरवाला हर मोर सुन लिस। एती मन नोनी तीर गोठियाय के होत रहय, फेर सीधा सीधा गोठियाय के हिम्मत मोर म नइ रहय। आधा रात नोनी तीर का गोठियातेंव समझ नइ आत रहय। मोला लगिस अतका रात आउ कोनो तो जागत नइ होही, मय हर अपन मन के बिचार ल लिख स्टेटस म डारे अउ डिलीट मारे लागेंव। मन तो पूरा पूरा नोनी के रूप म भुलाय रहिस, का लिखेंव का पढ़ेंव खुदे ल होस नइ रहिस। दूसर दिन सुत के उठेंव त कनिहा पीरा थोरकिन कम हो गे रहय। मय हर मोबाइल चालू करेंव, मन होइस एक पइत नोनी ल देख लेहे रहितेंव, नोनी के वाट्सएप के डीपी म फेर फोटो नइ दिखत रहय। सायद नोनी ल समझ आ गे रहय के मय हर रतिहा ओखरे तीर गोठियात रहेंव, सायद मोर कोनो गोठ हर ओला अच्छा नइ लागे रहय। मय हर हिम्मत कर नोनी ल लिखेंव, "फोटो म तो फेर जादू हो गे नोनी, थोरिकन जादू महूं ल सिखा देहे रहिते।"नोनी डहर ले कोनो जवाब नइ मिलिस। 

    कनिहा पीरा ठीक होइस त महूं हर अपन काम बुता म भुला गेेंव, ए बीच बिहनिहा सुत उठ के अउ रतिहा सुते के बेर नोनी के डीपी म ओकर फोटो ल खोजे के कोशिश करतेंव लेकिन नोनी नजर नइ आत रहिस। ए बीच सरदी हर गढ़ाय लागिस त जर घलो आ गे। दिन भर बुता काम म घर ले बाहिर रहइया मनखे एक बखत फेर खटिया ल धर लिस। एति मोला बुखार आइस ओती डीपी म फेर नोनी दिखे लागिस। अइसे लागिस के भगवान हर नोनी के फोटो ल देखे बर ही खटिया ल धरा दे हे। बुखार म तपत सरीर ल नोनी के फोटो देखे ले बड़ आराम मिलय। तभे मोला सुरता आइस कालि तो नोनी के जनमदिन आय। टाइम देखेंव त रतिहा बारा बजइया रहय, मय हर सोचेंव नोनी ल सबले पहिली मय हर जनमदिन के बधाई दे देथंव, सीधा सीधा मेसेज भेज बधाई देहे म डर लागत रहय तेकर सेती मय हर अपन स्टेटस म लिख नोनी ल बधाई भेज देहेंव। जेन ल पढ़ नोनी हर तुरंत पूछ दिहिस त मैं हड़बड़ा गेंव। मैं हर नोनी तीर उल्टा पूछेंव, "आउ कोनो के जनमदिन हे का नोनी,"त ओहू हर मोला नइ कहिस के मोरे तो जनमदिन हे। नोनी के एक ठन नानकन सवाल ल सुन के मोर दिल हर जोर जोर से धड़कना शुरू कर देहे रहिस। नोनी के आउ सवाल सुने के हिम्मत मोर म नइ रहिस।। मैं हर झट के नेट ल बंद करेंव अउ नोनी के फोटो ल निहारे लगेंव। 

    नोनी के फोटो ल निहारत मन म कइ ठन खयाल दउड़े लागिस। नोनी मोर तीर म दिन भर रहितिस त कतका मजा आतिस, फेर ओ रहितिस त कइसे रहितिस। नोनी अउ मोर मेल तो कोनो डहर ले नइ रहिस। नोनी अपन गोसइया दूनों भारी खुश रहय त महूं हर अपन सुवारी संग भारी प्रसन्न। त अउ का रिश्ता हो सकत हे मोर अउ नोनी के बीच, न तो ओहर दाई ए, न तो बहिनी, न तो सारी ए, न तो भउजी फेर ओला दिन भर देखे के मन काहे होत रहिथे मन ल कछु समझ नइ आत रहय। मन कहय तय हर कछु रूप म मोर तीर आ नोनी, तोर हर रूप, हर रिश्ता हर मोला स्वीकार हे, आउ कछु नही त संगी बन के आ जा, मैं हर महापरसाद जइसे जीयत ले तोर संग दोस्ती निभाए बर तियार हावंव। 

    नोनी के फोटो ल निहारत कब नींद पर गे समझ नइ आइस। नींद म घलो नोनी हर सपना म बड़ मया करत दिखिस। आंखी खुलिस त बिहनिहा के नौ बजने वाला रहय, मैं हर अभी तक नोनी ल ओकर जनमदिन के सीधा सीधा बधाई नइ देहे रहेवं। मैं हर जल्दी ले मोबाइल उठाएंव अउ ओला जनमदिन के बधाई भेज देहेंव। मोला अभी भी बुखार जादा रहिस तेकर सेती काम बुता तो अइसनहे बंद रहिस, दिन भर मोबाइल म नोनी के फोटो ल निहारत बीत गे। ले देके दू चार दिन आउ बितिस। ए दू चार दिन म मय हर काम बुता करे बर भुला गे रहेंव। बस एके ठन काम नजर आए। सुत उठ के मोबाइल ल धर अउ नोनी के फोटो देखे ल चालू कर त रतिहा नींद आत ले नोनी के फोटो देख, कभू कभू नोनी तीर सीधा गोठिया ले त कभू अपन स्टेटस म अपन दिल के हाल ल लिख डार। 

    नोनी ले पहिली मैं हर कभू कोनो के मया म नइ परे रहेंव, तेकर सेती मोला अहू नइ समझ आत रहय के नोनी हर मोर गोठ ल समझत हे के नइ समझत हे, नोनी हर घलो मोला मया करथे के नइ करय। नोनी तीर सीधा सीधा पूछे के मोर हिम्मत नइ रहय फेर सपना म नोनी हर बड़ मया करय। मै हर नोनी के डीपी म ओखर फोटो देख बड़ खुश रहेंव के एक दिन नोनी हर अपन संग अपन हीरो के फोटो ल डार दिस। 

    भगवान हर चुन के नोनी के जोड़ी बनाय रहिस, दूनों एके संग बड़ सुघ्घर दिखत रहय, मय हर डीपी के बड़ाई करेंव, फेर अब नोनी ल देखंव त ओ हर अकेल्ला नइ दिखय। नोनी तीर कोनो आउ के फोटो देख मोर मन ल बड़ तकलीफ होवय। मय हर नोनी ल इसारा म अपन दिल के हाल बताएव फेर सायद नोनी ल समझ नइ आइस। सायद नोनी मोर गोठ ल समझना नइ चाहत रहिस। नोनी अपन दुनिया म बड़ खुश रहिस अउ मै अपन दुनिया म, सायद मोर गोठ ल समझे के कोनो फायदा घलो नइ रहिस। रोज अपन डीपी म नवा नवा फोटो लगवइया नोनी हर ए दारी अपन डीपी म अपन गोसइया संग फोटो डार बदले ल भुला गे। एक दिन... दू दिन... तीन दिन ... मय हर नोनी के अकेल्ला फोटो देखे बर तरस गेंव। मोर मन हर जब जर के पूरा राख हो गिस मय हर इसारा म फेर नोनी ल कहेंव, "नोनी मोर म आउ जरे के हिम्मत नइ हे, मैं हर अब आउ अपन मन के गोठ बता तोला परेसान नइ करव, तय अपन दुनिया म खुश रहि।"अउ मै हर नोनी के नंबर ल अपन मोबाइल ले डिलिट मार देहेंव।

     मय हर अपन सुआरी के मोबाइल ले देखेंव त नोनी हर डीपी म अकेल्ला दिखत रहय। मय हर अपन मन ल समझात कहेंव देख नोनी हर घलो तोर बड़ संसो करथे तभे तो तोर कहे म अपन डीपी ल बदल दिहिस, मन म आइस मय हर ओतके बेर अपन मोबाइल ले नोनी ल धन्यवाद भेज देववं। फेर हिम्मत नइ होइस।

     संझा मय हर अपन मोबाइल म नोनी के नंबर ल फेर सेव करेंव त ए बखत फेर नोनी हर अपन हीरो दूनो दिखत रहय।  नोनी फेर ओ फोटो ल काहे डार दिस मोला समझ नइ आइस, मय हर नोनी ल कहेंव, "तोर संगति म थोरकिन जादू महूं जान गे हाववं नोनी, ए मत सोच के अपन स्टेटस म तोर नाव लिख मय हर पूरा दुनिया म किल्ली पारत हाववं, एला तो बस मय हर लिखथवं अउ तय हर पढ़थस।" 

    नोनी हर तुरंत लिखिस, "तोर लिखे ह महूं ल दिखथे, मोर नंबर ल हाइड कर दे। "

    मय हर नोनी ल ए कहे के हिम्मत नइ जुटा सकेंव के तोर नंबर ल मैं कइसे हाइड कर दवं नोनी, जेन लिखथव तोरेच बर तो लिखथंव। जब तोरे नंबर ल हाइड कर दूंहू त मोर लिखे के का मतलब? अइसे भी नोनी तीर मै मया करथव के नहीं अहि मोला नइ पता, नोनी तीर मैं मया करथंव त जेन नोनी हर अपन हीरो तीर करथे या जेन मैं हर अपन सुवारी तीर करथवं तेन का ए ? जब मोला अपने मया के पता नहीं त नोनी तीर कइसे पूछवं के नोनी तहूं मोर तीर मया करथस न ? पूछ भी दूंहू त नोनी के जवाब अगर नहीं म होही त मोर का होही, जेन मन नोनी संग कोनो आउ के फोटो देख जर जात हे तेन हर नोनी के ना कइसे सुनही, अउ अगर नोनी हां कही दिस त, न तो नोनी अपन उमर भर के संगवारी ल छोड़ सकय अउ न मैं अपन मयारू संगवारी ल। अइसनहे बहुत अकन सवाल मन म उमड़ घुमड़ के आत रहिस हे, सोशल मीडिया म फोटो देख शुरू होय नोनी बर मोर मया हर नोनी के एक थन सोशल मीडिया के शब्द हाइड ल सुन के सोशल मीडिया म ही दम तोड़ दिस। 

    नोनी के नंबर ल हाइड लिस्ट म डालना तो मोर बर संभव नइ रहिस हे फेर नोनी के आदेश के पालन भी जरूरी रहिस हे तेखर सेती मय हर अपन आप ल ही नोनी के जिनगी ले हाइड कर देहेंव।  मय हर अपन सुवारी के मोबाइल उठा के देखेंव नोनी अभी भी अपन डीपी म अपन हीरो संग मुसकुरात भारी सुघ्घर दिखत रहिस हे। 



इस वेलेंटाईन डे पर अपने प्रिय वेलेंटाईन को भेजिए संदेश दैनिक छत्तीसगढ़ एक्सप्रेस के संग

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प्यार सिर्फ प्रेमी-प्रेमिका अथवा पति-पत्नी के बीच ही नहीं होता, भाई-बहन, पिता-पुत्र, मां-बेटे, देवर-भाभी, जीजा-साली, दोस्त-दोस्त, सखी-सहेली आदि दुनिया के हर एक रिश्ते में प्रेम छिपा होता है। इस वेलेंटाईन डे पर आप भी अपने वेलेंटाईन को दैनिक समाचार पत्र छत्तीसगढ़ एक्सप्रेस के द्वारा संदेश भेज सकते हैं। आपके वेलेंटाईन के नाम से निर्धारित शुल्क जमा कर भेजे गए संदेश दैनिक छत्तीसगढ़ एक्सप्रेस में प्रकाशित किया जाएगा।
संदेश भेजने के लिए नियम एवं शर्ते:-
1. निर्धारित शुल्क फोन पे नंबर 7489405373 में जमा कर 13 फरवरी 2022 को दोपहर 2 बजे तक आप अपने संदेश अपने नाम और फोन पे के माध्यम से भेजी गई शुल्क की रिसिप्ट के साथ व्हाट्सएप नं. 7489405373 पर व्हाट्सएप कर सकते हैं। 2. निर्धारित शुल्क जमा कर भेजे गए सभी संदेश दिनांक 14 फरवरी 2022 के दैनिक छत्तीसगढ़ एक्सप्रेस में प्रकाशित किए जाएंगे। 3. दैनिक छत्तीसगढ़ एक्सप्रेस की 14 फरवरी 2022 की डिजिटल कापी संदेश भेजने वाले के व्हाट्सएप नंबर पर भेजी जाएगी। कार्यालय, छत्तीसगढ़ एक्सप्रेस, लिंक रोड जांजगीर छ.ग. में व्यक्तिगत रूप से संपर्क कर उस दिन के पेपर की प्रति प्राप्त की जा सकती है। 4. संदेश व्हाट्सएप करते समय सबसे उपर उनका नाम/संबोधन जिनको संदेश भेजा जा रहा है फिर उसके नीचे अपना संदेश और अंत में अपना नाम लिखे -
उदाहरण 1.
प्रिय Sims, जो रिश्ते सच में गहरे होते हैं वो कभी अपनेपन का शोर नहीं मचाते, सच्चे रिश्ते शब्दों से नहीं, दिल और आंखों से बात करते हैं, यूं ही नहीं आती खुबसूरती रंगोली में, अलग-अलग रंगों को एक होना पड़ता है। पूजा राजपूत, कोरबा
उदाहरण 2.
डियर मां, सिर पर जो हाथ फेरे तो हिम्मत मिल जाए मां एक बार मुस्कुरा दे तो जन्नत मिल जाए आर्यन सिंह, जांजगीर
संदेश की साईज एवं राशि
5 cm x 4 cm = 100 Rs, 10 cm x 4 cm = 200 Rs, 10 cm x 8 cm = 500 Rsफोन पे से राशि एवं व्हाट्सएप से संदेश भेजने के लिए मोबाईल नंबर - 7489405373

व्यंग्य : तुम्हें कोई और देखे तो जलता है दिल ...

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राजेश सिंह क्षत्रीये जलने जलाने का रोग सदियों पुराना है। राजा दशरथ की मंझली रानी कैकैई को यदि बड़ी रानी कौशिल्या से जलन नहीं होती तो भगवान राम को चौदह बरस का वनवास नहीं होता। महाभारत के तो मूल में ही जलन है। द्रोपदी दुर्योधन को छोड़ पांडवों की पत्नी कैसे बन गई, दुर्योधन के इसी जलन ने पूरा महाभारत करवा दिया। बच्चों के पास चाहे उनके अपने जितने भी खिलौने हो, पर दूसरों के खिलौने को देखकर हमेशा जलन होती है, काश ये गुडिय़ा मेरे पास होती ... ! स्कूल पंहुचे तो दूसरे प्रकार की जलन, अरे उसके पापा उसे रोज छोडऩे आते हैं, मुझे तो स्कूल वेन में आना पड़ता है ...! जलन की भावना महिलाओं और युवतियों में कुछ ज्यादा मानी जाती है, अरे उसके तीन-तीन ब्वायफ्रेण्ड हैं ... उसे तो रोज कोई न कोई मूवी दिखाने वाला मिल जाता है ... फोकट में कौन दिखाता है, पूरा पैसा वसूल भी कर लेता होगा ... ! अरे उसकी साड़ी का कलेक्शन देखे हो, जब भी घर से निकलती है नई साड़ी ही पहने होती है। महिलाओं की आधे से ज्यादा शापिंग तो खुद के लिए कम और पड़ोसन को जलाने के लिए ज्यादा होता है। और तो और टीवी में चलने वाले विज्ञापन भी जलन को ही बढ़ावा देते हैं, उसकी कमीज मेरी कमीज से सफेद कैसे है ...! आजकल सूरज भी लोगों को जलाने में पीछे नहीं है तभी तो आसमान से आग उगल रहा है, तुम्हारें यहां टेम्परेचर कितना है 42, मेरे यहां तो 45 है रे, कूलर क्या आजकल तो एसी भी कोई काम का नहीं रहा। ऊपर से बिजली संकट, जब मरजी आए आई जब मरजी आई चली गई ! ऐसा लगता है जैसे सरकार फोकट में बिजली बांट रही है, हम तो कभी बिजली बिल पटाते ही नहीं। लोगों को जलाने में सरकार भी कोई कसर नहीं छोड़ रही, मंहगाई आसमान छू रही है। पेट्रोल 110 पार कर गया है तो वहीं रसोई गैस के दाम सात साल में ही दोगुने से ज्यादा हो गए हैं। दो सप्ताह पहले दस रूपए किलो में बिकने वाला टमाटर पचास पार होकर अलग अपना मुंह लाल किए हुए है। सरकार को पता है लोगों के किस जलन को कैसे कम किया जा सकता है इसलिए मंहगाई के जलन पर मरहम लगाने हनुमान चालिसा और लाउडीस्पीकर रूपी एसी चल रही है। अब जनता भी अपना जलन भूल सरकार के साथ है। उसे भी लगने लगा है रूस ने यदि यूके्रन पर आक्रमण नहीं किया होता तो देश में मंहगाई बिल्कुल नहीं बढ़ती। जलते तो पुरूष भी कम नहीं हैं, पर उनकी जलन महिलाओं से कुछ अलग प्रकार की होती है। मेरे एक मित्र ने अपने एक रिश्तेदार के घर जाना छोड़ दिया है, उसके रिश्तेदार ने उनसे अच्छा मकान जो बनवा लिया है। मेरे एक अन्य मित्र को बाकी मित्रों की बीबीयों को देख जलन होता है, उसे लगता है भगवान ने उसके सब दोस्तों को उससे ज्यादा सुंदर पत्नी दी है। नया जमाना सोशल मीडिया का है इसलिए मेरी जलन भी कुछ सोशलयाना है, मुझे किसी की डीपी देखकर जलन होती है, वो भी मेरी जलन से वाकिफ है तभी तो कभी कभी दिन में तीन बार बदलने वाली उसकी डीपी पिछले पन्द्रह दिनों से नहीं बदली है, इधर ये दिल जलकर राख तो कब का हो चुका है पर शायद उसे इस शरीर को भी जलकर राख होते हुए देखना है। उसकी जिद भी केन्द्र सरकार की तरह लगती है जो किसी भी सूरत में विपक्ष के आगे झुकने को तैयार नहीं है। उसे तो हमेशा विपक्ष के कहे से उल्टा ही करना है फिर चाहे विपक्ष सही कह रहा हो या गलत। हमारी फिल्मों में केएल सहगल से लेकर मुकेश तक और राजेश खन्ना से लेकर किशोर कुमार तक सब जलते ही रहे हैं। मैं न राजेश खन्ना हूं और न किशोर कुमार फिर भी उसे कहता हूं, तुम्हें कोई और देखे तो जलता है दिल, बड़ी मुश्किलों से फिर सम्हलता है दिल, क्या-क्या जतन करते हैं तुम्हें क्या पता ...!लेखक दैनिक छत्तीसगढ़ एक्सप्रेस के प्रधान संपादक है। राजेश सिंह क्षत्री, लिंक रोड जांजगीर, जिला जांजगीर चांपा छ.ग. मो. 74894 05373

श्रद्धांजलि: पं. शिवकुमार शर्मा - लगी आज सावन की फिर वो झड़ी है, मेरे संग बरसात भी रो पड़ी है ...!

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राजेश सिंह क्षत्री प्रधान संपादक छत्तीसगढ़ एक्सप्रेस
जम्मू कश्मीर में प्रचलित वाद्य यंंत्र संतूर को दुनिया भर में मशहूर बना देने वाले मशहूर शास्त्रीय संगीतकार और संतूर वादक पं. शिवकुमार शर्मा का कार्डिएक अरेस्ट के चलते आज निधन हो गया। 14 अगस्त 1981 को तब के सुपर स्टार अमिताभ बच्चन, उनकी पत्नी जया भादुड़ी, प्रेमिका रेखा और साथ में संजीव कुमार तथा शशि कपूर स्टारर यश चोपड़ा की एक बड़ी फिल्म रिलीज हुई, उस फिल्म का नाम था सिलसिला। फिल्म तो पीट गई लेकिन उसके मधुर गीत आज भी उतने ही लोकप्रिय बने हुए है, बांसुरी वादक पंडित हरि प्रसाद चौरसिया के साथ जोड़ी बनाकर किंग आफ रोमांस कहे जाने वाले यश चोपड़ा की फिल्म में शिव-हरि के नाम से तब पहली बार इस जोड़ी ने फिल्मों में संगीत दिया था। हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत को नई पहचान देने वाले इस जोड़ी में शिवकुमार की खुद की पहचान संतूर वादक के रूप में बनी रही तो वहीं हरि प्रसाद चौरसिया बांसुरी दिग्गज माने जाते हैं यही वजह है कि वो खुद के काम में इतने बिजी रहे कि गिनती के आठ फिल्मों में ही उन्होंने संगीत दिया उसमें से भी सिलसिला, फासले, विजय, चांदनी, डर, लम्हे और परंपरा ये सात फिल्मे यश चोपड़ा की थी तो वहीं साहिबां ही उनकी एकमात्र ऐसी फिल्म रही जो यश चोपड़ा की नहीं थी। शिव हरी के संगीत की महत्ता इसी बात से समझी जा सकती है कि सिर्फ आठ फिल्मों में संगीत देने के बाद भी उन्हें 1981 में फिल्म सिलसिला, 1989 में चांदनी और 1991 में फिल्म लम्हे के लिए तीन बार फिल्मफेअर अवार्ड प्रदान किया गया। फिल्म सिलसिला में पहली बार अमिताभ बच्चन ने एक साथ तीन-तीन गानों में अपनी आवाज दी, रंग बरसे भीगे चुनर वाली रंग बरसे.. गीत आज भी होली के अवसर पर उसी तरह से बजते हैं जैसे फिल्म की रिलीज के समय बजते थे तो वहीं ये कहां आ गए हम.. अमिताभ बच्चन की आवाज के साथ-साथ इसके फिल्मांकन के लिए भी याद किया जाता रहेगा। अमिताभ के गाए हुए फिल्मी गानों में सबसे मधुर गीत इस फिल्म के एक और गीत नीला आसमां सो गया ... को माना जा सकता है। इस गाने के दो वर्जन है एक अमिताभ बच्चन की आवाज में तो दूसरा सुर साम्राज्ञी लता मंगेशकर की आवाज में। फिल्म में लड़की है या शोला.. और सर से सरके .. जैसे गीत भी थे तो वहीं फिल्म का टाईटल गीत देखा एक ख्वाब तो ये सिलसिले हुए दूर तक निगाह में है गुल खिले हुए ... सबसे ज्यादा पसंद किया जाने वाला गीत साबित हुआ। कुल मिलाकर फिल्म सिलसिला तब भले न चल पाई हो लेकिन अपनी पहली ही फिल्म में दिए गए संगीत में संगीतकार शिव हरी की जोड़ी ने सिक्सर लगा दिया था। फिल्म सिलसिला की तरह की शिव-हरी की जोड़ी ने फिल्म डर में एक बार फिर एक होली गीत दिया था जिसके बोल थे अंग से अंग लगा ले सजन ...., फिल्म डर शाहरूख खान के कैरियर में मील का पत्थर साबित हुई थी तो वहीं उसके गीत काफी लोकप्रिय हुए थे। खासकर जादू तेरी नजर, खुशबू तेरा बदन, तूं हां कर या ना कर तूं है मेरी किरण ... गीत कॉलेज के युवाओं के लिए प्यार का इजहार करने का माध्यम बन गया था। लता मंगेशकर और उदित नारायण की आवाज में फिल्म के एक अन्य गाने तू मेरे सामने मैं तेरे सामने तुझको देखूं की प्यार करूं ... को भी तब काफी सराहा गया। लता मंगेशकर के साथ शिव हरी ने फिल्म के सभी गानों में तब अलग-अलग पुरूष आवाजों को मौका दिया था। हरिहरण की आवाज में लिखा है ये इन हवाओं में ... तो अभिजीत भट्टाचार्य की आवाज में छोटा सा घर है ये मगर तुम इसको पसंद कर लो दरवाजा बंद कर लो ... और विनोद राठौड़ की आवाज में इश्क दा रोग बुरा ... भी इस फिल्म के हिस्सा थे। यश चोपड़ा की एक और रोमांटिक फिल्म थी लम्हें, इस फिल्म में पहली बार अनिल कपूर बिना मूंछों के थे तो वहीं फिल्म के इस हीरो को एक ही शक्ल की मां और बेटी दोनों से प्यार हो जाता है। फिल्म में मां-बेटी दोनों की भूमिका में श्रीदेवी थी। यश चोपड़ा इसे अपनी सर्वश्रेष्ठ फिल्म मानते हैं तो वहीं दर्शकों ने इस फिल्म को समय से आगे की फिल्म मानते हुए सिलसिला की तरह नकार दिया था, इस फिल्म में शिव-हरी ने लता मंगेशकर की आवाज में मेरी बिंदिया तेरी निंदिया चुरा ले न तो कहना..., हरिहरण के संग कभी मैं कहूं ... और चूडिय़ां खनक गई ... जैसे यादगार गीत दिए तो वहीं लता मंगेशकर की ही आवाज में फिल्म में याद नहीं भूल गया..., मोहे छेड़ो न..., गुडिय़ा रानी ... और मेधा रे मेधा ... जैसे गीत भी शामिल रहे। राजेश खन्ना, हेमा मालिनी, रिषी कपूर, अनिल कपूर स्टारर विजय फिल्म की चर्चा भले ही न होती हो लेकिन इस फिल्म में लता मंगेशकर और सुरेश वाडेकर की आवाज में बादल पे चलके आ, सावन में ढलके आ ... गीत की गिनती मधुर गीतों में होती है। वैसे ही फिल्म परंपरा के गीत फूलों के इस शहर में ... और फिल्म फासले के जनम जनम मेरे सनम ..., चांदनी तूं है कहां और फासले का सबसे लोकप्रिय गीत हम चुप हैं रहा। लगातार फ्लाफ होती फिल्मों के बाद यशराज फिल्मस को बंद होने से बचाने के लिए यश चोपड़ा ने चांदनी फिल्म का निर्माण किया तो उसमें भी संगीत का मौका शिव-हरी को ही दिया गया तब शिव-हरी ने फिल्म के टाइटल गीत चांदनी ओ मेरी चांदनी जॉली मुखर्जी के साथ अभिनेत्री श्रीदेवी की चुलबुली आवाज का भी इस्तेमाल किया था। लता मंगेशकर की आवाज में मेरे हाथों में नौ नौ चुडिय़ां है फिल्म का सबसे लोकप्रिय गीत साबित हुआ था बाबला मेहता और लता की आवाज में तेरे मेरे होंठों पे मीठे मीठे गीत मितवा ..., परवत से काली घटा टकराई ..., मैं ससुराल नहीं जाऊंगी डोली रख दो कहारो ...., तू मुझे सुना मैं तुझे सुनाऊं अपनी प्रेम कहानी ... जैसे गीत भी पसंद किए गए थे। इन सबके बीच सुरेश वाडेकर और अनुपमा देशपांडे के स्वर में लगी आज सावन की फिर वो झड़ी है ... गीत की गिनती भी बेहतरीन गानों में होती है। यश चोपड़ा से परे शिव हरी के संगीत की एकमात्र फिल्म साहेबां में इस मेले में लोग आते हैं के साथ इस फिल्म के टाईटल गीत कैसे जियूंगा मैं अगर तू न बनी मेरी साहिबां ... को भी काफी पसंद किया गया। 13 जनवरी 1938 को जम्मू में जन्में शिव कुमार शर्मा के पिता गायक थे और उन्होंने ही शिव को गायन और तबला सिखाया। 13 साल की छोटी उम्र में शिवकुमार शर्मा ने संतूर सीखना शुरू किया और 1955 में मुंबई में पहली बार लोगों के सामने परफार्म करते ही उन्हें मंत्रमुग्ध कर दिया। 1967 में शिव हरी ने अपना पहला अलबम कॉल आफ द वैली रिकार्ड किया। उन्हें 1991 में पद्मश्री और 2001 में पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया था। शिव हरी की जोड़ी में हरी प्रसाद चौरसिया पहले ही इस दुनिया से विदा हो गए थे ऐसे में आज शिवकुमार शर्मा के निधन से शास्त्रीय संगीत की दुनिया का एक युग समाप्त हो गया। संगीत के प्रति शिवकुमार शर्मा के अमूल्य योगदान को याद करते हुए दैनिक छत्तीसगढ़ एक्सप्रेस परिवार उनको हृदय से नमन करता है।

कहानी : पागल

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राजेश सिंह क्षत्री 

 

एक तो जेठ का महीना, ऊपर से तपती दोपहरी, स्टेशन में खास चहल पहल नहीं थी, कोई एक्सप्रेस ट्रेन प्लेटफार्म से छूट रही थी, उसके दो-चार डिब्बों को आंखों के सामने से गुजरते हुए देखते रहा उसके बाद पता नहीं मन में क्या सूझा दौड़कर मैं भी एक डिब्बे में चढ़ गया। वो शायद जनरल डिब्बा था। भीतर यात्रियों की अच्छी खासी भीड़ भरे हुए थी। मैं जैसे तैसे शौचालय के दरवाजे तक पंहुचा, फिर वहीं एक कोने में दुबककर बैठ गया। ये ट्रेन कहां जा रही थी, मुझे पता नहीं था। मैं कहां जा रहा था इसकी भी खबर नहीं थी। कुछ दिनों से मैं तो बस भाग रहा था, जैसे किसी की यादों से पीछा छुड़ा रहा हूं। घर से कुछ सामान हाथ में लेकर निकलता तो मां जरूर पूछती कहां जा रहे हो, मैं मां को क्या बताता इसलिए यूं ही चुपके से बिना कुछ लिए खाली हाथ चला आया था। कभी इस शहर तो कभी उस शहर, कभी ट्रेन से तो कभी पैदल बस भागे जा रहा था। 

 

जेब में रखे चंद पैसे कब के खर्च हो चुके थे। सप्ताह भर में पहने हुए कपड़े भी मैले हो चुके थे वहीं चेहरे पर भी दाढ़ी कुछ घनी हो गई थी, मेरी शक्ल-सूरत ऐसी हो चली थी कि पूरे ट्रेन में यही एक जगह मेरे लिए उचित जान पड़ती थी। 

 

मुझे एक बार फिर स्नेहा की याद आने लगी। घर में रहता तो मोबाइल निकाल उसकी फोटो को निहार लेता लेकिन आने से पहले अपने मोबाइल को भी मैं घर पर ही छोड़ आया था, साथ ही मोबाइल में डली उसकी फोटो को भी डिलिट कर आया था। आंखें बंद करते ही स्नेहा का गुस्से से तमतमाया हुआ चेहरा एक बार फिर सामने आ गया, वो जैसे डांटते हुए कह रही थी, मैं उतनी भी सीधी नहीं हूं न जितना तुम समझते हो, किसी दिन चंडी का रूप दिखाऊंगी तो सब समझ आ जाएगा! मैनें झट से आंखे खोल दी। 

 

... पर मेरी बातें स्नेहा को इतनी चुभती क्यों थी, जबकि मैंने तो हमेशा उसका भला ही चाहा ? कभी मां की तरह उसके दर्द को समझने की कोशिश की तो कभी बाबुल की तरह उसे बिना बताए उसके लिए खुंशियां बटोरता रहा, कभी उसका बड़ा भाई बन मजबूती से उसके पक्ष में खड़ा नजर आया।

 

स्नेहा से मेरी पहचान बहुत ज्यादा पुरानी भी नहीं थी, लगभग चार साल पहले ही तो वह मेरे पड़ोस में अपने भाई प्रेम और मां के साथ रहने के लिए आई थी। कच्चा खपरैल का घर होने और दोनों घर का ऊपरी हिस्सा खप्पर से जुड़े होने की वजह से उस घर में कोई आह भी भरता तो मेरे घर से सुनाई देता। जब कभी भी स्नेहा अपनी मां या फिर सहेली के साथ घर से बाहर निकलती एकदम प्रसन्न नजर आती, घर में, आंगन में, गली में, पेड़ के नीचे खड़े हो वो खूब सेल्फी लेती। मैं भी परदे की ओट से छिपकर उसे चुपचाप देखा करता। ऐसा लगता मानों घूमना और फोटो खिंचाना ये दो चीजेंं ही स्नेहा को सबसे ज्यादा पसंद है। 

 

 ऊपर से वो जितना उन्मुक्त, आकाश में उड़ती किसी पंछी की तरह आजाद नजर आती, घर के भीतर उस पर उतनी ही बंदिशें लागू रहती। जब कभी भी वह कहीं जाने को कहती हमेशा उसका भाई प्रेम आड़े आ जाता। यहां नहीं जाना, ये नहीं करना, ऐसा नहीं पहनना। हद तो तब हो जाती जब अकेले तो क्या किसी के साथ जाने पर भी उस पर पाबंदियां लगा दी जाती। ऐसा महसूस होता मानों उसे स्नेहा पर भरोसा ही न हो, मानों स्नेहा कहीं बाहर जाएगी तो वह अपने परिवार का नाक कटा देगी, या फिर किसी के साथ वहीं से रफू चक्कर हो जाएगी। 

 जब भी मैं स्नेहा का मासूम चेहरा देखता तो दिमाग में उसके आस पास एक और धूंधली सी तस्वीर बन जाती जैसे वह कोई मंदिर हो और स्नेहा उस मंदिर में विराजमान देवी। उसे देखते हुए ऐसे लगता जैसे मैं अपनी पलके ही न झपकाऊं, जैसे मेरे पलक झपकाते ही मंदिर की वो देवी वहां से कहीं अदृश्य न हो जाए।

 उधर स्नेहा की आंखों से आंसू टपकते इधर दीवार के इस पार वह मेरे हृदय की गहराइयों को भेदते चले जाते। मेरे कानों से टकराती स्नेहा की अनकही सिसकियां चीख चीखकर कहती कि मैं उसकी कुछ मदद करूं लेकिन किस तरह यही समझ नहीं आता। स्नेहा जब तक हंसती-चहकती रहती मैं भी अपने आपको प्रसन्न महसूस करता, जैसे ही वह किसी बात को लेकर परेशान होती मैं भी मायूस हो जाता। 

 

 कभी कभी तो मैं अपने आपको उसके इतना करीब पाता लगता मानों हम दोनों जुड़वा हों, उसके दिल पर कोई चोट लगती तो दर्द मुझे महसूस हो रहा होता। कभी लगता मानों किसी जनम में उससे बहुत करीब का रिश्ता रहा हो मेरा तभी तो उसकी छोटी सी परेशानियां भी मुझे पहाड़ नजर आती। दिल हर समय बस उसकी खुशियां ही चाहता। 

 

जब भी मैं स्नेहा का मासूम चेहरा देखता तो दिमाग में उसके आस पास एक और धूंधली सी तस्वीर बन जाती जैसे वह कोई मंदिर हो और स्नेहा उस मंदिर में विराजमान देवी। उसे देखते हुए ऐसे लगता जैसे मैं अपनी पलके ही न झपकाऊं, जैसे मेरे पलक झपकाते ही मंदिर की वो देवी वहां से कहीं अदृश्य न हो जाए। 

 

स्नेहा भी कई बार मुझे अपने को यूं ही घूरता हुआ देख चुकी थी। उसे मेरा इस तरह देखना बिल्कुल भी पसंद नहीं था इसीलिए जब कभी भी मैं उससे बात करने की कोशिश करता हर बार उसका मूड बिगड़ जाता। वह स्पष्ट शब्दों में कहती मेरी बातों में उसे कोई इन्ट्रेस्ट नहीं है मैं उससे दूर ही रहा करूं। मैं हर बार उसे सफाई देने की कोशिश करता कि उसका चेहरा तो मुझे किसी देवी की तरह लगता है और देवी से प्यार नहीं किया जाता उसकी पूजा की जाती है, पर मेरी बातें शायद उसके समझ नहीं आती थी तभी तो हर बार मुझे वह आईना दिखाने की कोशिश करती। 

 

मैं स्नेहा की यादोंं में खोया ही था कि बाहर से आती तेज आवाज ने मेरा ध्यान भंग कर दिया। ट्रेन स्टेशन पर रूकी हुई थी, शायद कोई बड़ा स्टेशन था। मैंने थोड़ा सा सरककर बाहर गेट से झांकने की कोशिश की तो सीध में ही बाटल से कुछ लोग पानी भरते हुए नजर आए। मैं भी ट्रेन से उतरकर उनके पीछे लाइन में लग गया। तीन-चार अंजुरी पानी पी और मैं अपने स्थान पर वापस लौट आया। आकर देखा तो वहां चंद सिक्के बिखरे पड़े थे। मेरी जेब में तो पहले ही कोई पैसा नहीं बचा था फिर क्या ये किसी की जेब से गिर गया है, या फिर मैं जब आंखें बंद कर स्नेहा के विचारों में गुम था किसी ने भिखारी समझ डाल दिए हैं। मैंने ऊपरवाले को याद किया उसकी कृपा अब भी मुझ पर बनी हुई थी, वह मुझे भूख से नहीं मारना चाहता था। मैंने सिक्के हथेली में रखे और वापस वहीं उसी कोने में बैठ गया। 

 मैं हर बार उसे सफाई देने की कोशिश करता कि उसका चेहरा तो मुझे किसी देवी की तरह लगता है और देवी से प्यार नहीं किया जाता उसकी पूजा की जाती है, पर मेरी बातें शायद उसके समझ नहीं आती थी

 शाम ढलने को थे। ट्रेन एक बार फिर गति पकड़ चुकी थी। स्नेहा से ध्यान हटाने मैंने मां को याद किया। मेरे इस तरह बिना बताए घर से निकल आने से मां कितना परेशान होगी, शायद उसकी तबियत भी बिगड़ जाए...! वैसे भी मुझे लेकर कितना परेशान रहती है वह। तो क्या मैं वापस लौट जाऊं, लेकिन वहां पड़ोस में स्नेहा भी तो होगी न ? मुझे वापस देखते ही उसके दिल पर क्या बितेगी ? शायद मेरा यह चेहरा उसे तकलीफ देता है ? शायद मेरी बातें भी उसे तकलीफ देती है ? मैं खुद जिसकी खुशियों के लिए ईश्वर से प्रार्थना करता हूं मैं उसकी तकलीफ का कारण कैसे बनूं ...? नहीं, मैं ऐसा कोई भी काम नहीं करूंगा जिससे स्नेहा को तकलीफ हो। समय बड़े से बड़ा घाव भर देता है, मां भी शायद कुछ दिनों में मेरे बिना जीने की आदत डाल लेगी। धीरे से ही सही स्नेहा भी मुझे भूल जाएगी तब फिर उसे तकलीफ देने वाला कोई नहीं होगा।

 

 ... पर मेरी बातें स्नेहा को इतनी चुभती क्यों थी, जबकि मैंने तो हमेशा उसका भला ही चाहा ? कभी मां की तरह उसके दर्द को समझने की कोशिश की तो कभी बाबुल की तरह उसे बिना बताए उसके लिए खुंशियां बटोरता रहा, कभी उसका बड़ा भाई बन मजबूती से उसके पक्ष में खड़ा नजर आया। किसी कार्यक्रम में चुपके से मोबाईल से खींचे उसकी तस्वीर को निहारते जब कभी उस पर प्यार आता था तब भी स्नेहवश मैंने उसके माथे को ही चुमने की कोशिश की। उस दिन भी जब मैं उसे क्या पसंद है और क्या नहीं यह बताने की कोशिश कर रहा था तो जैसे उसे बताना चाह रहा था कि देखो तुम्हें कितना करीब से जानता हूं मैं, बिल्कुल तुम्हारी मां की तरह, पर मेरी बातों में उसे मां, भाई या बाबुल का प्यार क्यों नजर आता...? आखिर मैं भी तो एक लड़का हूं और यहां युवा लड़के और युवा लड़कियों में सिर्फ एक ही रिश्ता होता है, प्यार का रिश्ता...!

 

 कितना पागल था मैं, जिस जमाने में लोग औरत के तन पर मरते हैं मैं उसे अंतस की गहराईयों से महसूस करने की कोशिश करता। उससे प्यार नहीं उसकी पूजा करने का मन करता। यहां तो स्नेहा का भाई प्रेम भी किसी लड़की को पहली नजर में देखते ही उसके कमर से लेकर फिगर तक के नाप बता सकता था और यहां मैं..., मेरी नजर कभी स्नेहा के चेहरे से हटकर कहीं और गई ही नहीं। ठीक करती थी स्नेहा, मुझ जैसे पागल के साथ कोई और कर भी क्या सकता है। 

 सच कहूं तो मुझे उसका गुस्सा बिल्कुल भी बुरा नहीं लग रहा था बल्कि यह सोचकर मैं खुश था कि चलो उसने मुझे अपना तो माना क्योंकि लोग अपनों पर ही तो नाराज होते हैं, पर गुस्सा मुझे अपने आप पर आ रहा था कि क्यों मैंने उसके दिल को इतनी तकलीफ पंहुचाई कि ...!

 स्नेहा से ध्यान हटाने मैं अपने मोहल्ले के दोस्तों को याद करने लगा। तब एक साथ मेरे दो दोस्तों को प्यार हो गया था। पहला दोस्त अपनी प्रेमिका को हृदय की गहराइयों से चाहता था। उसने उसे प्रेमपत्र भी लिखा तो अपने खून से, उस प्रेमपत्र को पढऩा तो क्या खोलकर देखना भी लड़की को गवारा नहीं था। प्रेमपत्र देखते ही फाड़कर लड़की ने मेरे दोस्त के चेहरे पर दे मारी। कालेज से घर जाती लड़की को रोककर मेरे दोस्त ने कुछ कहना चाहा तो लड़की की आंखों से आंसू बहने लगे। लड़की को रोता देख मेरा दोस्त भी रोने लगा, कुछ दिनों बाद लड़की कहीं बाहर चली गई, मेरा दोस्त उस लड़की को देखने वहां भी जाता, दूर से निहारकर चला आता। उससे इतना प्रेम किया कि उस घटना को बीस साल बीत गए फिर भी आज तक उसने शादी नहीं की। उस लड़की को कभी उसके दिल से किए सच्चे प्यार का अहसास ही नहीं हुआ। दूसरे दोस्त ने एक लड़की को शाम को उसके ही घर के पीछे मिलने के लिए बुलाया। लड़की जैसे ही आयी बिना कुछ कहे वह उसके चेहरे को चुमने और उरोजों से खेलने लगा। लड़के के इस व्यवहार से हतप्रभ लड़की किसी तरह से अपने आप को छुड़ाकर गाली देते वहां से भाग खड़ी हुई। दो तीन दिनों तक कॉलेज में दिखने पर दोस्त ही उस लड़की को इग्रोर करने लगा। जिसके बाद लड़की ही आगे आकर माफी मांगी, तब से लेकर लड़की के ससुराल जाते तक दोनों एक दूसरे के प्रेम में गोते लगाते रहे। शायद आज वक्त ही ऐसा है, यहां किसी को पूजना लोगों को पागलपन लगता है। मेरी आंखों में एक बार फिर स्नेहा का चेहरा घुमने लगा। 

 

 उस दिन भी कुछ विशेष बातें नहीं हुई थी। मां को स्नेहा की मां के साथ कुछ काम था। उसने उसे बुलाकर लाने के लिए कहा। मैंने मां से कहा भी कि वो घर पर नहीं है तो मां को लगा कि मैं काम के डर से बहाने बना रहा हूं। मां की नाराजगी को देखते हुए मुझे स्नेहा के घर जाना पड़ा। वहां पंहुचकर मैं बस इतना ही पूछ पाया था कि मम्मी घर पर है ? वह टूट पड़ी तुम्हें तो बस मुझे छेडऩे का बहाना चाहिए। तुम्हें पता है न कि मम्मी घर पर नहीं है भैया भी बाहर गए हैं। मैं घर में अकेली हूं तो घुस आए। साफ साफ बताओ तुम चाहते क्या हो ? मैं उतनी भी सीधी नहीं हूं न जितना तुम समझते हो, किसी दिन चंडी का रूप दिखाऊंगी तो सब समझ आ जाएगा ! स्नेहा का यह व्यवहार मुझे हतप्रभ करने वाला था। मन में एक पल को आया कि मैं कह दूं, तुम्हें लग रहा है न कि मैं तुमसे फ्लर्ट कर रहा हूं, तो हां मैं कर रहा हंू। तुम्हें लगता है कि मैं तुमसे प्यार करता हूं तो करता हूं। तुम्हें जो लगता है तुम वो मान लो, तुम्हें जहां जिससे शिकायत करनी है तुम कर दो, मैं अपनी सफाई मेंं एक शब्द नहीं कहूंगा, तुम्हारी हर सजा मुझे मंजूर है। पर मैं कुछ कहने की स्थिति में भी कहां था, वह कहे जा रही थी और मैं ... मै एक बार में ही इतना टूट गया था कि तब सुन पाने की स्थिति में भी नहीं था...! मैं बिना कुछ कहे वापस घर आ गया। आंखे बंद कर लेटने की कोशिश की तो एक बार फिर स्नेहा का वही चेहरा घुमने लगा। बाहर निकला तो स्नेहा सामने थी, उसका सामना करने की हिम्मत मुझ में नहीं बची थी। 

 

सच कहूं तो मुझे उसका गुस्सा बिल्कुल भी बुरा नहीं लग रहा था बल्कि यह सोचकर मैं खुश था कि चलो उसने मुझे अपना तो माना क्योंकि लोग अपनों पर ही तो नाराज होते हैं, पर गुस्सा मुझे अपने आप पर आ रहा था कि क्यों मैंने उसके दिल को इतनी तकलीफ पंहुचाई कि ...! मैं घर में रहूंगा तो दिन में कई बार स्नेहा से मुलाकात होगी, हर बार मुझे देखते ही उसे फिर वही तकलीफ होगी। स्नेहा की तकलीफों के बारे में सोचते मेरे सिर में हलका हलका सा दर्द प्रारंभ हो गया था। जाग-जागकर कटती रातें अहसास कराती थी कि वो भी कितनी लम्बी है। बाहर निकलने की कोशिश करता तो मुझे देखते ही स्नेहा का मूड बिगड़ जाता, वापस घर आकर लेटने की कोशिश करता तो मां पास आकर पूछती, तबियत तो ठीक है ना...? मेरा दिमाग काम करना बंद करने लगा था। ऐसा लगने लगा था कि मैं वहां रहा तो फिर पागल हो जाऊंगा इसलिए एक रात मां को बिना बताए मैं घर से बाहर निकल आया जिससे स्नेहा की जिंदगी से दूर चला जाऊं...! इतनी दूर की मुझे देखना तो क्या मेरी आवाज भी उस तक ना पंहुच पाए, तब से मैं भागे जा रहा था, भागे जा रहा था... पर जितना उससे दूर भागने की कोशिश करता, लगता कि उसके और भी उतना पास आते जा रहा हूं। 

 

आधी रात बीत चुकी है, ट्रेन अभी भी पटरियों पर सरपट दौड़ रही है । स्नेहा की यादों से बचने एक बार फिर मैंने अपनी आंखे खोल ली है, अब मेरी नजरें ट्रेन की दीवार पर है, खाली पड़ी उस दीवार में भी स्नेहा की धुंधली सी तस्वीर नजर आने लगी है पर इस बार वह देवी की तरह नहीं दिख रही, उसने शायद दुल्हन का चोला पहन रखा है, वह मेरी ओर ही देख रही है, उलझे हुए बाल, चेहरे पर बढ़ी हुई दाढ़ी, शरीर में मैले कुचैले कपड़े, जैसे गली में कभी-कभी आता था न एक पागल...। स्नेहा की नजरों से बचने एक बार फिर मैंने अपनी आंखें मूंद ली है, ट्रेन रात के अंधेरे को भेदते अब भी पूरी रफ्तार से सरपट भागे जा रही है। 

 राजेश सिंह क्षत्री संपादक, 

छत्तीसगढ़ एक्सप्रेस शिव मंदिर, 

नहर किनारे जांजगीर जिला जांजगीर चांपा छ.ग. 

पिन 495668, मो. 74894 05373

wellcome 2023 : हमें आपसे अपनेपन का वही मधुर अहसास चाहिए...

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राजेश सिंह क्षत्री प्रधान संपादक छत्तीसगढ़ एक्सप्रेस
नए साल में हमें आपका वही पुराना साथ चाहिए, हमें आपसे अपनेपन का वही मधुर अहसास चाहिए
एक बार फिर कैलेण्डर में साल बदल गया, 2022 की विदाई के बाद 2023 आ गया। 2022 के आगमन के साथ ही न जाने आंखों ने कितने सारे सपने पाल रखे थे, कुछ एक को छोडक़र सारे सपने अब तक सपने ही बने हुए हैं। ये सपने उल्टा हमें ही मुंह चिढ़ाने लगे हैं। 2020 में जब कोरोना आया तो लगा चाइनीच माल है जिसकी कोई गारंटी तो क्या वारंटी भी देने के लिए तैयार नहीं होता ऐसे में कितने दिन टिकेगा भला ? पर कोरोना 2020 के साथ-साथ 2021 में भी पूरी तरह डटा रहा। 2022 के आम चुनावों में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और ममता दीदी की रैलियों में लोगों की भारी भीड़ देखकर एक बार फिर से उम्मीद बंध गई थी कि 2022 में तो कोरोना पूरी तरह से अपना बोरिया बिस्तर समेट ही लेगा, केन्द्र और राज्य सरकार द्वारा कोरोना प्रोटोकाल में दी गई ढील और रोज कम होते कोरोना के आंकड़े भी यही अहसास कराते रहे लेकिन 2022 के जाते जाते केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री द्वारा राहुल गांधी को लिखी चिट्ठी में कोरोना के जिंदा होने का अहसास दिलाने और उसके बाद देश भर में हुई मॉकड्रील ने साफ कर दिया है कि 2023 में भी कोरोना से डरना जरूरी है। कोरोना काल के प्रारंभ होने के बाद बहुतों की नौकरी छुट गयी, आमदनी के साधन कम हो गए तो लगा कि शायद देश में मंहगाई पर लगाम लग जाएगी। सरकार में बैठे हुए यही लोग जब विपक्ष में थे तो पेट्रोल अथवा रसोई गैस में थोड़ी सी बढ़ोतरी होने पर पूर्ववर्ती यूपीए सरकार को पानी पी पीकर कोसते थे ऐसे में इस सरकार से लोगों ने उम्मीद कुछ ज्यादा ही पाल रखी थी लेकिन हुआ ठीक उलटा। रूस यूक्रेन युद्ध प्रारंभ होने के बाद सरकार के हितचिंतकों ने दावा किया कि हमें रूस से तेल काफी सस्ता मिल रहा है वहीं बीते दो महीने में अंतरराष्ट्रीय तेल बाजार में भी तेल की कीमतों में भारी कमी आई लेकिन हमारे यहांं सौ पार होने के बाद डीजल, पेट्रोल के दाम ऐसे अटक गए मानों दीवार पर टंकी कोई घड़ी बंद हो गई हो, गुजरात चुनाव में भाजपा की बड़ी जीत और देशवासियों द्वारा 2022 में खरीदे गए रिकार्ड आभूषण ने बता दिया है कि अब मंहगाई के मुद्दे पर भी देशवासियों में एंटीबाडी तैयार हो चुकी है। विदेश, देश, रायपुर से लेकर जांजगीर तक 2022 में कितना कुछ बदल गया। अमेरिकावासियों ने ट्रंप को टाटा कह बाईडेन को ला दिया तो काल के क्रूर हाथों ने संगीत की देवी माने जाने वाली लता मंगेश्कर से लेकर भारतीय सिने संसार में सौ करोड़ की पहली फिल्म देने वाले डिस्को किंग बप्पी लहरी तक को छीन लिया। छत्तीसगढ़ में पहली बार ऐसा हुआ जब एक आईपीएस अफसर जीपी सिंह की गिरफ्तारी हुई। रायपुर के स्वामी विवेकानंद एयरपोर्ट पर सरकारी हेलीकॉप्टर अगस्ता वैस्टलैंड क्रैश हो गया जिससे चॉपर में मौजूद दोनोंं पायलट गोपाल कृष्ण पांडा और एपी श्रीवास्तव की मौत हो गई। लोगों से गोबर खरीदने के बाद छत्तीसगढ़ देश का पहला राज्य बना जहां सरकार ने गौमूत्र भी खरीदने की शुरूआत की। ईडी आईटी ने हाईप्रोफाइल नेताओं, ठेकेदारों के साथ-साथ साल भर अधिकारियों को भी डराए रखा जिसकी वजह से आईएएस समीर विश्रोई सहित राज्य सरकार की करीबी अफसर तक को जेल की सलाखो के पीछे पंहुचा दिया। देशवासियों ने अविभाजित जांजगीर चांपा जिले के छोटे से बच्चे राहुल की जांबाजी देखी, जिसने 60 फीट गहरे बोरवेल के गडढ़े में गिरने के बाद सांप और मेढक के साथ रहते हुए भी अपना हौसला नहीं खोया और प्रशासन, एसडीआरएफ, एनडीआरएफ और सेना ने रिकार्ड 106 घंटे तक चले रेस्क्यू ऑपरेशन के बाद उसे जिंदा निकाला। 2022 में जांजगीर-चांपा जिले के इतिहास के साथ-साथ भूगोल भी बदल गया जब जांजगीर-चांपा जिले से अलग होकर सक्ती जिला अस्तित्व में आ गया। 2023 का आगमन हो चुका है, 2022 की तरह एक बार फिर 2023 से भी बड़ी अपेक्षाए है। छत्तीसगढ़-मध्यप्रदेश सहित देश के लगभग एक तिहाई राज्यों में इस वर्ष विधानसभा चुनाव होने है ऐसे में मंहगाई कम होने की एक उम्मीद तो अब भी नजर आती है वहीं बीते लगभग तीन साल में कोरोना ने देशवासियों को बहुत कुछ सीखा दिया है एक्सपर्ट का भी मानना है कि 90 प्रतिशत देशवासियों में कोरोना से लडऩे एंटीबॉडी तैयार हो चुकी है ऐसे में चीन में हाहाकार मचा रहे कोरोना के नए वेरियंट से देशवासियों के सकुशल रहने की एक उम्मीद तो बनती ही है। 2023 में बुलेट ट्रेन और 5-जी के आगमन से भी देश के युवाओं में उम्मीद की नयी किरण बंधते दिख रही है। हममें से अधिकांश नए साल पर कोई न कोई वादा जरूर करते हैं ये बात अलग है कि सर्वे कहती है कि इसमें से 90 प्रतिशत से ज्यादा वादा पूरा नहीं होता, इस बार भी अपने और अपने परिवार की बेहतरी के लिए खुद से कोई एक वादा जरूर करें, क्योंकि परिवार से ही समाज और समाज से देश का निर्माण होता है। आप सभी को नववर्ष 2023 की बहुत बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं ...
कैलेण्डर के पन्ने की तरह पलटने की आदत नही है हमें, साल बदलता है बदल जाने दो, बीते साल जो भी गलतियां हुई हमसे सब माफ करो, नन्हीं आंखों में उम्मीदों के नए सपने बस जाने दो

जादूगर तेरे नैना

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कहानी: राजेश सिंह क्षत्री
आसमान से टपकती बारिश की रिमझिम फुहारें गुलाब के पत्तों पर पड़ मोतियों के समान बारीक टुकड़ों में बंट भूमि पर झर रहे थे। बारिश की इन चंचल बूंदों की तरह ही तो है उसकी आंखें, बड़ी अजीब सी कशिश है उन आंखों में, एक बार वो जी भर कर देख ले तो सीधा दिल के भीतर तक उतरते चली जाती है। उसकी मासूम आंखे जब भी मुझे देखती भोले बाबा की कसम हर बार उस पर मर मिटने को जी चाहता। कुछ तो खास है उसकी आंखों में जब भी उनसे नजरें मिलती एक नशा सा छा जाता, उसकी मदहोश आंखें देख मैं खुद को संभाल नहीं पाता, लाख कोशिश करता उससे कुछ न कंहू, पर न जाने क्या क्या कह जाता।
सुबह जब नैना से मुलाकात हुई वो हमेशा की तरह ही बेहद खूबसूरत लग रही थी, सचमुच ऊपर वाले ने उसे बहुत ही फुर्सत से बनाया था, फूल, खुशबू, झील, चांद, इन सब का अक्स मानों उसमें समाया था।
अभी पिछले बरस की ही तो बात है, अक्टूबर का महीना था, बारिश का मौसम जैसे बीत चुका था, पर ठंड अभी प्रारंभ भी नहीं हो पायी थी। दोपहर के लगभग दो बजे का वक्त रहा होगा। मांगलिक भवन में आयोजित एक घरेलू कार्यक्रम में मैं अपनी धुन में इधर से उधर भागे जा रहा था इसी बीच जब मैं उसके पास से गुजरा तब पहली बार उसकी आंखों की कशिश मुझे अपनी ओर खिंचती हुई महसूस हुई। मैं अपनी धुन में मगन उसे नजरअंदाज कर आगे बढ़ गया। दिन बीती, रात आ गई। मैं बिस्तर पर लेट आंखें बंद कर सोने की कोशिश कर ही रहा था कि एक बार फिर बरसात के दिनों में पहाड़ की चोटी से गिरते चंचल झरने की तरह उसकी आंखों की खूबसूरती मुझे अपने आस पास महसूस होने लगी। उसको याद करने भर से ही मन रोमांचित हो उठा, वहीं होठों पर भी अनायास ही मुस्कान तैर उठी। दोपहर के समय जब मैं उसके पास से गुजर रहा था, तब पहली बार उसे अपनी ओर देखते हुए पाया। वहां मेरा काम ही कुछ ऐसा था कि मुझे अर्धचन्द्राकार अवस्था में उसके आधे चक्कर लगाने पड़ गए, इस बीच मुझे अपलक निहारती मेरे साथ साथ ही घुमती हुई उसकी चंचल आंखें जैसे मेरे दिल की गहराइयों में उतरते चली गई। उसकी कंधे से कुछ नीचे तक लटकते खुले हुए बाल, और गालों को चुमती हुई उसकी लटें मुझे स्कूल के दिनों की याद दिलाने लगी। उन दिनों जब कभी तस्वीर बनाने का मन होता, मैं कुछ मिनटों में अपनी रफ कापी के आखरी पन्नों पर या फिर फटे हुए किसी कागज पर एक लडक़ी की तस्वीर उकेरता जो बिल्कुल ऐसे ही तो दिखती थी । इन चंचल नैनों से मैं जितना पीछा छुड़ाने की कोशिश करता वो मुझे उतना ही ज्यादा अपनी ओर खींचती महसूस होती। नैना की नैनों को याद करते निंदिया रानी कब मेरे नैनों में सवार हो गई पता ही नहीं चला। सुबह जब नैना से मुलाकात हुई वो हमेशा की तरह ही बेहद खूबसूरत लग रही थी, सचमुच ऊपर वाले ने उसे बहुत ही फुर्सत से बनाया था, फूल, खुशबू, झील, चांद, इन सब का अक्स मानों उसमें समाया था। मैंने झट उसके सामने दोस्ती का प्रस्ताव रखते हुए कहा, मुझसे दोस्ती करोगेे। वों बिना कुछ कहे आगे बढऩे लगी तो मैंने जोर देकर फिर कहा, प्लीज मेरे दोस्त बन जाओ न नैना ? इस बार नैना ने मुझे धमकाते हुए कहा, तुम शायद मुझे जानते नहीं हो, कौन हूं मैं ? जब तक सीधी हूं तब तक सीधी हूं। मुझे छेडऩे की कोशिश भी किए ना तो तुम्हारा वो हाल करूंगी की कंही मुंह दिखाने के लायक नहीं रहोगे और रही बात दोस्ती की, तुम क्या सलमान खान भी आकर मुझसे कहे ना तब भी मैं किसी लडक़े से दोस्ती नहीं करूंगी।
नैना के चेहरे को अपलक निहारते मन में विचार आया काश मैं हवा का झोंका होता तो इन खूबसूरत गालों को छूकर हल्के से सहलाते हुए निकल जाता, नैना के दिल के बेहद करीब रहने वाला कोई दोस्त होता तो वुगली-वुगली करते बड़ी जोर से इन गालों को दबाता।
नैना का ये रूप मैंने पहली बार देखा था। मैं तो नैना को जंगल में खड़े साल के वृक्षों की तरह शांत ही समझता था, पर वो तो जंगल में स्वतंत्र रूप से विचरण करते जंगल की महारानी शेरनी निकली। चांद की तरह शांत नजर आने वाला उसका मासूम चेहरा गुस्से में सूरज की तरह दमकने लगा था लेकिन इससे उसकी खूबसूरती जैसे और भी ज्यादा खिल उठी थी, मन में आ रहा था जैसे मैं बार-बार खता करता रहूं, वो बार-बार इसी तरह गुस्सा करती रहे। ये नैना के नैनों का ही जादू था कि उसके धमकाने के बाद भी उसके प्रति कशिश कम होने की बजाय और भी बढ़ते जा रही थी। नैना उस दिन अकेले कहीं जा रही थी, उसका चेहरा खिले हुए गुलाब की तरह दमक रहा था तो वहीं उसके होंठ खिलती हुई कलियों के समान मुस्कुराती हुई जान पड़ रही थी। मैंने उसे आवाज देते हुए कहा, ऐ दुश्मन ...! नैना ने एकदम धीमी स्वर में बड़ी ही मासूमियत से जवाब दिया, मैं दुश्मन नही हूं न ... ! उस वक्त उसके चेहरे की चमक कुछ ऐसी थी कि उसके सामने सब कुछ जैसे फीका फीका सा नजर आने लगा, वो तो अच्छा हुआ कि उस वक्त सूर्य देव ने दिन का उजाला फैला रखा था, रात होती तो शायद उसकी खूबसूरती देख चांद भी जलकर बादलों के पीछे छिप जाता। नैना के चेहरे को अपलक निहारते मन में विचार आया काश मैं हवा का झोंका होता तो इन खूबसूरत गालों को छूकर हल्के से सहलाते हुए निकल जाता, नैना के दिल के बेहद करीब रहने वाला कोई दोस्त होता तो वुगली-वुगली करते बड़ी जोर से इन गालों को दबाता। शायद पवन देव ने मेरे मन की बात सुन ली थी। नैना के गालों को सहलाते पवनदेव को तो मैं नहीं देख पाया लेकिन उसके चेहरे पर लटकती बेपरवाह सी जुल्फें हवा के मद्धम झोंको में ही उसके गालों को चूमने झुलने लगी थी।
उस दिन जब नैना मुझे धमका रही थी तब उसकी आवाज बरसात में प्रचण्ड वेग से गिरते झरने के समान तीव्र थी, वहीं आज गर्मी के दिनों में पानी के कम हो जाने के बाद बूंद बूंद टपकती जल की धारा के समान मधुर और इतनी धीमी हो गई थी की हवा का हल्का सा शोर भी उसे कानों तक पंहुचने से जैसे रोक रही थी।
नैना के खूबसूरत चेहरे पर नजर जमाए मैंने वापस उससे प्रतिप्रश्न किया, जो दोस्त न हो उसे क्या कहेंगे, दुश्मन ही न ...? अपनी नाजुक ऊंगली से चेहरे पर झुलती अपनी जुल्फों को कानों के पीछे डालते नैना फिर बोली, न मैं आपकी दोस्त, न दुश्मन ... ! उस दिन जब नैना मुझे धमका रही थी तब उसकी आवाज बरसात में प्रचण्ड वेग से गिरते झरने के समान तीव्र थी, वहीं आज गर्मी के दिनों में पानी के कम हो जाने के बाद बूंद बूंद टपकती जल की धारा के समान मधुर और इतनी धीमी हो गई थी की हवा का हल्का सा शोर भी उसे कानों तक पंहुचने से जैसे रोक रही थी। मैं नैना का दोस्त नहीं बन पाया था पर उसके हाव भाव बता रहे थे कि अब दुश्मन भी नहीं रहा था। धीरे धीरे नैना से मुलाकातें बढ़ते गई, बातें बढ़ते गई। मुझे महसूस हुआ मेरी आंखों नेे भी बड़ी अजीब सी हसरत पाल रखी है, उन्हें जागने के बाद सबसे पहले नैना को देखना होता तो सोने से पहले भी ये नैना का ही दीदार करना चाहती। सब कहते हैं कि लड़कियां बातूनी होती है, बहुत बात करती है, पर हमारा मामला इसके उलट था, यहां बक बक मैं करता था और नैना बस सुनते रहती थी। वो बहुत जरूरी होने पर ही बहुत सोच विचार कर गिने चुने शब्दों में अपनी बातें रखती थी मानो उसके शब्द बेहद कीमती हो। नैना की कई बातें इतनी गंभीर होती कि लगता ही नहीं कि वो आज के जमाने की नवयुवती है, ऐसा अहसास होता इतनी छोटी उमर में भी कई पीढ़ीयों का अनुभव उन्होंने अपने भीतर समेट रखा है। तब झरनों की तरह चंचल उसकी आंखें सागर की तरह गंभीर हो जाती, इतनी गंभीर की उसकी आवाज सुनने तक को ये कान तरस जाते। कई बार ऐसा होता था जब सिर्फ और सिर्फ वो मेरी ही बातेें सुनती, अपनी ओर से एक शब्द भी नहीं कहती। उसकी बातें सुनने की व्याकुलता में मैं उसे उकसाने की कोशिश करता लेकिन वो मौन ही साधे रहती मानों उसने मुझसे बातें न करने की कसम खा ली हो। पर जब कभी मैं उससे रूठने, नाराज होने अथवा बात नहीं करने की बात छेड़ता वह चूल्हें में चढ़े गरम दूध की तरह तुरंत ही अपनी खामोशी तोड़ देती।
उस दिन नैना बेहद खूबसुरत नजर आ रही थी, ऐसे जैसे सावन के आते ही जंगल में पंख फैलाए मोर नजर आता है। आज तो उसके मासूम चेहरे से नजर हटाना जैसे मेरे लिए मुश्किल हो रहा था, उसकी आंखों को निहारते ऐसा महसूस हो रहा था मानों पूरी मधुशाला यहीं पर आ गयी हो, उसकी आंखों का नशा धीरे-धीरे मुझे मदहोश किए जा रहा था।
एक दिन मेरे किसी बकबक से परेशान हो यूं ही बोल पड़ी थी वह, तुम बात मत करना मुझसे...! तब तक नैना की मोहब्बत में जैसे मैं भी दीवाना हो गया था, ऐसा दीवाना जो उसके मुख से निकले हर शब्द को पत्थर की लकीर मान उसका पालन करे, बिना एक पल की देरी किए मैं भी बोल पड़ा, ठीक है नैना तुम अगर यही चाहते हो तो तुम्हारी कसम, आज के बाद मैं तुमसे कभी बात नहीं करूंगा ...! नैना एक बार जो सोच लेती थी, उस पर अडिग रहती, और मैं ... मैं तो नैना से मिलते ही जैसे अपना सुध बुध सब कुछ खो बैठता। इतने दिनों में नैना इतना तो समझ ही गई थी कि चाहे जो हो जाए पर मैं उसकी झूठी कसम कभी नहीं खाऊंगा, वह तुरंत बोल पड़ी, बात कर सकते हो, पर यूं अकेले में नहीं सबके सामने, ज्यादा नहीं, बस थोड़ा-थोड़ा ...! उस दिन नैना बेहद खूबसुरत नजर आ रही थी, ऐसे जैसे सावन के आते ही जंगल में पंख फैलाए मोर नजर आता है। आज तो उसके मासूम चेहरे से नजर हटाना जैसे मेरे लिए मुश्किल हो रहा था, उसकी आंखों को निहारते ऐसा महसूस हो रहा था मानों पूरी मधुशाला यहीं पर आ गयी हो, उसकी आंखों का नशा धीरे-धीरे मुझे मदहोश किए जा रहा था। यूं ही अपलक उसकी आंखों में झांकते मैंने पूछा, आपकी तारीफ करूं। इंकार में सिर इलाते हुए नैना ने कहा, मत करो, क्या कहोगे मुझे सब पता है... मैं सीआईडी में हूं न ... ! नैना की बातें सच भी थी, मेरी रोज रोज की बकबक सुनने के बाद वो मुझे इतना ज्यादा जानने लगी थी जितना मैं अपने आपको नहीं जानता था। बहुत बार तो ऐसा लगता जैसे मेरे बोलने से पहले ही उसे अहसास हो जाता है कि मैं क्या कहने वाला हूं। उसकी नशीली आंखों के मद से मदहोश मैं फिर बोल पड़ा, अरे यार एक बार सुन तो लो ...? इस तरह खुलकर यार कहने पर थोड़ा सा मुंह फुलाते हुए नैना ने कहा, मैं आपकी दोस्त नहीं हूं ना ? नैना की कमजोरी मैं समझने लगा था, मुझे परेशान देख वो मुझसे ज्यादा परेशान हो जाती थी, इतनी की कभी कभी तो उसकी तबियत भी खराब हो उठती। धीरे धीरे ही सही पर शायद नैना को भी मेरी आदत होने लगी थी तभी तो वह मुझे नाराज भी नहीं करना चाहती थी, इसलिए जानबूझकर मैंने थोड़ी सी नाराजगी का भाव प्रकट करते हुए कहा, दोस्त नहीं हो तो फिर क्या हो दु ... ?
नैना की नजरें आज अलसाई हुई थी, हल्की सी लाल और थोड़ी सी सूजी हुई भी लग रही थी, मानों वो रात भर जागी हो, रात में एक पल के लिए भी न सोई हो, और जैसे रोयी भी हो काफी देर तक।
मैं दुश्मन बोल पाता इससे पहले ही मुस्कुराते हुए वो बोल पड़ी, ना मैं आपकी दोस्त, ना दुश्मन ? नैना बहुत कम बोलती, लेकिन जब भी बोलती, अपनी बातें पूरी करती। आज नैना बोल रही थी इसलिए मैंने भी उसे छेड़ते हुए कहा, ना दोस्त ना दुश्मन तो तुम्हीं बता दो तुम क्या हो ? मैं पत्थर हूं ? इस बार अपने चेहरे पर बिना कोई भाव लाए नैना एक ही सांस में बोल पड़ी। हां ऐसी पत्थर जिसकी मैं पूजा करता हूं, जिसे शायद प्यार भी करता हूं? मैं अपनी ही रौं में बहता कहता चला गया। नैना के लिए प्यार शब्द मेरे मुख से अनायास ही निकल गया था, मैं नैना को नाराज नहीं करना चाहता था इसलिए उसकी प्रतिक्रिया जानने उसकी ओर देखना चाहा तो नैना वहां नहीं थी। अपने आपको पत्थर कहने के बाद ही वह वहां से चली गयी थी। नैना की नजरें आज अलसाई हुई थी, हल्की सी लाल और थोड़ी सी सूजी हुई भी लग रही थी, मानों वो रात भर जागी हो, रात में एक पल के लिए भी न सोई हो, और जैसे रोयी भी हो काफी देर तक। आज बात करना तो दूर वो तो नजरे भी नहीं मिला रही थी। नैना का ये रूप मेरे दिल को चोटिल कर रहा था, मैं उसे इस तरह नहीं देख सकता था, मैनें बिना लाग लपेट के उससे सीधा पूछा, नैना नाराज हो मुझसे ? ना मैं किसी की दोस्त, ना दुश्मन फिर मैं क्यों किसी से नाराज रहूंगी, इतने दिनों की पहचान में पहली बार थोड़ी सी बेरूखी दिखाते हुए उसने पूरी संजीदगी से कहा। नैना की ये बेरूखी मैं सहन नहीं कर पा रहा था। मैंने कहा, मेरी उस दिन की बातों से नाराज हो न ? अपने पापा को बताना है... ? पुलिस को बताना है... ? मेरे घरवालों को बताना है...? तो बता दो न सब को। मैं खुद पुलिस को फोन कर देेता हूं ... अपने घर वालों को आपके पास लेकर आ जाता हूं, उसके सामने मेरी खूब शिकायत करना! मुझे बदनाम करना है, मुझे बरबाद करना है तो कर दो न... पर प्लीज मुझसे नाराज मत रहो न ..., प्लीज ...! मैं आपका बहुत रिस्पेक्ट करती हूं, आप निश्चितं रहो, मैं कभी किसी से आपके बारे में कुछ नहीं कहूंगी, कभी आपकी किसी से शिकायत नहीं करूंगी। नैना जैसे मुझे आश्वस्त करते हुए बोली। नैना के साथ रहने, उससे बात करने की मुझे इतनी आदत हो चुकी थी कि उसकी हल्की सी बेरूखी भी भीतर तक दिल को तोड़ दे रही थी, उसके बिना एक पल जीने की कल्पना करना भी तब बेमानी सा लगता था, नैना की बेरुखी से परेशान मैनें वापस उससे निवेदन करते हुए कहा, नैना प्लीज मान जाओ न, प्लीज यार? शायद नैना भी मुझे बेइंतहा प्यार करने लगी थी, मेरी आंखों में हल्की सी नमी देखना भी उसे गवारा नहीं था तभी तो जब वह देखी कि इससे ज्यादा में मेरी आंखों से आंसू छलक सकते हैं तुरंत अपने आपको नार्मल करते हुए वह बोल पड़ी, मैं आपसे नाराज नहीं हूं ना, पर आपसे दोस्ती नहीं कर सकती? मुझे पता है आप मुझसे दोस्ती नहीं कर सकती, नैना के होंठो पर हल्की सी मुस्कान देख मैं भी पूरी तरह नार्मल होते हुए कहा। क्यों ...? इस एक शब्द के माध्यम से वह बहुत कुछ समझने की कोशिश करते हुए एकदम गंभीर होकर बोली। क्योंकि एक बार जब किसी से प्यार हो जाए फिर उसके बाद उससे दोस्ती नहीं होती। नैना की नजरों से नजरें मिलाते हुए मैंने अपने दिल की बात कह दी। कुत्ता पालो, बिल्ली पालो पर वहम मत पालो। मैं किसी से प्यार नहीं करती, किसी की दोस्त भी नहीं हूं। किसी का दिल दुखाना मुझे अच्छा नहीं लगता है। मुझसे नजरें चुराते हुए नैना दूसरी ओर देखते हुए बोली। एक पल पहले तक मेरी बेहद परवाह करते हुए नजर आ रही नैना को अनायास क्या हो गया था ये मैं भी नहीं समझ पाया। पर मैं तो करता हूं ना, मैं तुमसे बेइंतहा प्यार करता हूं ... इतना कहते कहते मेरा गला रूंधने लगा, मन में आया कि मैं नैना से कहूं, नैना तुम तो सीआईडी हो ना, हर चीज में तुम्हें सबूत चाहिए, एक बार मेरा दिल चीर कर देखो नैना, इसमें बस तुम्हारी ही तस्वीर नजर आएगी। पर मेरे ये शब्द जैसे मेरे हलक में ही अटक कर रह गए। मैं धीमे शब्दों में आई लव यू नैना ... बस इतना ही कह पाया। कभी नैना से सिर्फ दोस्ती की बात कहने भर से ही उसका चेहरा गुस्से से लाल हो गया था, पर आज इतना सब सुनने के बाद भी उसके चेहरे पर कोई भाव नहीं थे, न मोहब्बत के भाव... न नफरत के भाव... न खुशी के भाव ... न गम के भाव ...। नैना को गंभीरता से अपनी बातें सुनते मैंने कई बार देखा था तब नैना के होंठों पर हल्की-हल्की मुस्कान तैरते रहती थी, पर आज ... आज तो उसके होंठों से जैसे वो मुस्कान भी रूठ कर कहीं चली गई थी। नैना को इतना गंभीर मैंने पहले कभी नहीं देखा था। आज पहली बार नैना की खामोशी से मुझे डर लग रहा था। मन में आ रहा था नैना मुझसे प्यार न करें, न सही। वो मुझ पर चिखे ... चिल्लाए ... अपने मन की सारी भड़ास मुझ पर निकाल दे ... कुछ तो बात करे वह, लेकिन इस तरह खामोश मत रहे। नैना के जीवन में कुछ तो ऐसा था जो उसके लिए मेरे प्यार से भी बहुत बड़ा था। जिसके सामने मेरा प्यार भी बहुत बौना था, बहुत तुच्छ था। शायद सच कह रही थी नैना, पत्थर थी वो ...! पत्थर दिल ...! नैना के बिना एक-एक पल भारी लगनेे लगा था, जब किसी चीज में मन नहीं लगा तो कदम खुद ब खुद भोलेनाथ से प्रार्थना करने मंदिर की ओर चल पड़े। नैना वहां पहले से मौजूद थी जो अपने दोनों हाथ जोड़ अपने घुटने के बल बैठ भगवान शंकर से कह रही थी, बाबा इस तरह से आप मुझे दुविधा में मत डालो न .. ? आप तो जानते हो न, मेरे माता पिता मुझ पर कितना विश्वास करते हैं, कितना भरोसा है उनका मुझ पर... मैं अपने परिवार, अपने माता-पिता के भरोसे को कैसे तोड़ दूं बाबा ...। ये दुनिया, ये समाज के लोग मेरे माता पिता को क्या कहेंगे? प्लीज ... इस तरह से मुझे दुविधा में मत डालो बाबा ... प्लीज... !
कहते हैं ना, इबादत के समय बोला नहीं करते इसलिए मन हो रहा था बस खामोश रहकर उसे इसी तरह देखता रहूं। उसकी जुल्फें उसके चेहरे पर कुछ इस तरह से परदा किए हुए थी मानों अंधेरी रात में बादलों ने चांद को छिपा लिया हो।
नैना बाबा भोलेनाथ की भक्ति में इतना लीन थी कि उसे मेरे वहां पर होने का अहसास तक नहीं हुआ। मैं बाबा भोलेनाथ और नैना की भक्ति के बीच में नहीं आना चाहता था, वैसे भी मुझे मेरे सवालों के जवाब मिल चुके थे। नैना से तो वैसे ही मुझे कभी कोई शिकायत नही रही, अब तो भगवान भोलेनाथ से भी कोई शिकायत नहीं रह गयी थी। मैं वहीं से बाबा भोलेनाथ को प्रणाम कर चुपचाप वापस लौट आया। नैना धीरे धीरे चलती हुई मंदिर से वापस लौट रही थी, वो अपने में इतना गुम थी कि मेरे पास से गुजरते हुए भी उसे मेरे पास में होने का अहसास तक नहीं हो रहा था। उसकी दशा कुछ ऐसी थी मानों साजों श्रृंगार को उन्होंने कई दिनों से हाथ भी नहीं लगाया हो, लेकिन उसकी ये सादगी भी किसी खूबसूरत दुल्हन के सोलह श्रृंगार पर भारी थे। कहते हैं ना, इबादत के समय बोला नहीं करते इसलिए मन हो रहा था बस खामोश रहकर उसे इसी तरह देखता रहूं। उसकी जुल्फें उसके चेहरे पर कुछ इस तरह से परदा किए हुए थी मानों अंधेरी रात में बादलों ने चांद को छिपा लिया हो। एक पल को मन में आया मैं नैना से कहूं जो वो अपने घर-परिवार, माता-पिता और समाज के बारे में सोच रही है न, वो रिस्पेक्ट है ... और वो जो मुझसे करती है वही प्यार है ... सच्चा प्यार ...। कहने को तो नैना से दिल और भी बहुत कुछ कहना चाहता था, वैसे भी नैना से कहने को इतनी बातें थी कि नैना पूरी उम्र मेरी बातें सुनती रहे तब भी मेरी बातें खतम ही न हो, पर आज नैना वो सब सुनने की स्थिति में नहीं लग रही थी। मैंने धीरे से नैना का नाम लेकर पुकारा, वह ठिठककर रूक गई। उसकी आँखों से बाहर निकलने को छटपटाती आंसू की बूंदों में खुद को ढूंढने की कोशिश करते हुवे मैंने कहा, नैना आज के बाद मैं तुम्हें फिर कभी परेशान नहीं करूंगा। हो सकता है आज तुम्हें अपने प्यार का अहसास नहीं हो रहा हो ... हो सकता है इसका अहसास तुम्हें दो-चार दिन बाद हो ... हो सकता है दो-चार माह बाद या फिर या दो चार साल बाद हो ... हो सकता है मेरे जीते जी तुम्हें इस बात का अहसास न हो, मेरे मरने के बाद हो ... पर मैं अपनी अंतिम सांस तक तुम्हारे प्यार का इंतजार करूंगा। इतना कह मैं आगे निकल आया। पीछे पलट तब नैना को देखने की हिम्मत नहीं रह गई थी मुझमें।
वो गुलाब सा खिला हुआ चेहरा, वो कलियों के समान नजर आते खूबसूूरत होंठ, वो मदहोश कर देने वाली आंखें ... वों आंखे जो मुझे अब भी निहार रही है तिरछी नजरों से... जैसे उस दिन निहार रही थी, उस मांगलिक भवन में ... जो मेरे साथ ही घूम जा रही थी ... जैसे वो कोई जादूगर हो, जैसे उन नैनों में कोई जादू हो।
नैना से मिले सात दिन बीत गए हैं, अब तक उसकी ओर से कोई जवाब नहीं आया है, शायद अब तक उसे अपने प्यार का अहसास नहीं हुआ है या फिर वो मुझसे अपने प्यार को जताना ही नहीं चाहती। मैंने भी अपनी ओर से नैना की कोई खोज खबर नहीं की है। पहले कुछ पल भी नैना को नहीं देख पाता तो मन बेचैन हो उठता, ऐसा लगता मानो नैना के बिना एक दिन तो क्या एक पल भी मैं नहीं जी पाऊंगा, पर मैं अब भी जी रहा हूँ, मरना तो दूर हल्का सा बुखार तक नहीं आया मुझे। इधर बारिश थमने के बाद अब मौसम भी साफ हो चुका है, हल्की-हल्की सूर्य की किरणें धरती पर पडऩे लगी है, इन किरणों को देख ऐसा अहसास हो रहा है मानों दूर कहीं बैठ नैना मुस्कुरा रही है। नैना की याद आते ही मन पुनरू रोमांचित हो उठा, उसके साथ गुजरे हुए पल एक एक कर आंखों के सामने आने लगे, उसकी एक-एक बातें याद आने लगी। वो गुलाब सा खिला हुआ चेहरा, वो कलियों के समान नजर आते खूबसूूरत होंठ, वो मदहोश कर देने वाली आंखें ... वों आंखे जो मुझे अब भी निहार रही है तिरछी नजरों से... जैसे उस दिन निहार रही थी, उस मांगलिक भवन में ... जो मेरे साथ ही घूम जा रही थी ... जैसे वो कोई जादूगर हो, जैसे उन नैनों में कोई जादू हो।

आंसू

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कहानी 
राजेश सिंह क्षत्री
आधी रात होने को थी, पर रोज की तरह नींद आज भी राज की आंखों से कोसो दूर थी, कभी वह इस करवट बदलता, तो कभी उस करवट। कभी अपने बदन के सारे कपड़े उतार सिर्फ लोवर पहनकर ही सोने की कोशिश करता तो कभी सिर के बाल भिगोते हुए चेहरा धोकर सोने की, कभी कभी तो ठंडे तेल को अपने पूरे चेहरे पर मल लेता कि शायद उसकी ठंडकता से नींद आ जाए। आखिरकार नींद भी क्या करे उसे तो भारती को देखकर सोने और सोकर उठते ही सबसे पहले उसे देखने की आदत जो हो गई थी। जब से भारती ने दिखना बंद किया था, रोज रात की यही कहानी थी।
 राज ने झरोखे के कोर से गली के उस पार बालकनी पर देखने की कोशिश की, पर भारती कहीं नजर नहीं आई। आज वह नजर आने वाली भी नहीं थी, आज भारती की शादी जो थी। भारती का घर दुल्हन की तरह सजा हुआ था। ऐसे में राज के कमरे से भारती के घर का वह कोना भी आज साफ साफ नजर नहीं आ रहा था जहां उसे रोज भारती दिख जाया करती थी। राज को भी यह बात अच्छी तरह से पता था लेकिन वह क्या करे, दिल मानने के लिए तैयार जो नहीं था। उसे अभी भी लग रहा था कि वह सामने गली के उस पार भारती के घर की ओर जैसे ही नजर दौड़ाएगा, हमेशा की तरह उसे भारती अपने बालकनी में खड़ी नजर आ जाएगी।
रोज रात को सोने से ठीक पहले भारती कुछ पल के लिए यहां आकर खड़ी होती, अपनी आंखे बंद कर और बांहों को फैलाकर ताजी हवा के झोंको को महसूस करते हुए जैसे उसे अपने में समेट लेने की कोशिश करती, तो उधर से बहकर राज के कमरे की ओर आती ठंडी हवाए जैसे राज को उसके होने का अहसास करा जाती। राज झरोखे के इसी कोर से भारती को तब तक निहारते रहता जब तक वह घर के भीतर नहीं चली जाती, उधर भारती अपने घर के भीतर जाती और इधर निंदिया रानी राज को कब अपने आगोश में ले लेती पता ही नहीं चलता। सुबह सोकर उठते ही भारती एक बार फिर ताजी हवा के झोंके को महसूस करनेे यहां पर आती तो उधर से आती हुई हवाएं एक बार फिर राज को सोते से झकझोर जाती और राज हड़बड़ा कर उठ बैठता। खिड़की के कोर से निहारते ही उसे भारती सामने नजर आती। पर जब से भारती ने दिखना छोड़ा था, राज के सोने और जागने का समय ही बदल गया था। अब तो पूरी रात सोने की कोशिश में वह इधर से उधर करवट बदलते तरह तरह की जतन करते रहता। उस पर दया कर जब तक निंदिया रानी राज की आंखों में सवार होती तब तक भोर हो जाए रहता। सुबह सुबह आंख लगने की वजह से दोपहर दिन चढ़े तक वह सोते रहता।
 राज को पुराने गाने पसंद थे, सोचा गाना लगाऊं तो शायद गाना सुनते सुनते नींद आ जाए। मोबाइल चालू कर जब वह अपनी पसंद के गाने उसमें ढूंढने लगा तो नींद उसके करीब आने की जगह उससे और भी दूर जाते हुए प्रतीत हुई, ऐसे में वह यू ट्यूब पर मुकेश के दर्द भरे गाने सर्चकर छोड़ दिया, थोड़ी ही देर में मोबाइल में मुकेश का गाया गीत बजने लगा था : 
जिस दिल में बसा था प्यार तेरा
उस दिल को कभी का तोड़ दिया
बदनाम न होने देंगे तुझे
तेरा नाम ही लेना छोड़ दिया
राज ने सोने के लिए जैसे ही आंख बंद करने की कोशिश की एक बार फिर भारती का चेहरा उसकी आंखों के सामने आ गया। गोरा चेहरा, भरे भरे गाल, गालों के ठीक ऊपर बड़ी बड़ी दो आंखे ... और उन आंखों से बाहर निकलने को बेताब नजर आते आंसुओं का शैलाब ...। 
उस दिन भारती एकटक अपने पिता की ओर निहारे जा रही थी वहीं भारती के मन की भावनाओं से बेखबर उसके पिता उसे डांटते चले जा रहे थे। भारती की आंखों में भरे इन आंसुओं का कारण भी राज अपने आप को ही मानने लगा था। न तो वह भारती से बात करने के लिए उसके पास जाता, न ही भारती के पापा भारती को राज से बात करते हुए देखते और ना ही उसे डांट पड़ती। 
आंख बंद करते ही भारती का आंसूओं से भरा चेहरा नजर आते ही हड़़बड़ा कर राज ने एक बार फिर से आंखें खोल दी। मोबाइल में अब भी वही गाना बज रहा था।
जब याद कभी तुम आओगे
समझेंगे तुम्हें चाहा ही नहीं
राहों में अगर मिल जाओगे
सोचेंगे तुम्हें देखा ही नहीं
जो दर पे तुम्हारे जाती थीं
उन राहों को हमने छोड़ दिया
 हाय, छोड़ दिया...
जिस दिल में बसा था प्यार तेरा...
मोबाइल की आवाज तो उतनी ही थी लेकिन इस बीच धीमे धीमे सुनाई देती डीजे की आवाज तेज हो गई थी, बारात घर के ठीक सामने तक पंहुच गया था। दुल्हन के वेश में कैसी लग रही होगी भारती, राज कल्पना करने लगा। उसकी कल्पनाओं में दुल्हन वेश में सजी भारती जन्नत से उतरी किसी परी से भी ज्यादा खूबसूरत नजर आने लगी थी। लाज में सिर नीचे किए भारती बेड के ऊपर बैठी हुई है, उसके सामने बैठा राज अपलक उसे निहार रहा है। उसके पास भी पैसा होता, वह भी सरकारी नौकरी में होता तो शायद आज भारती इस तरह उससे दूर नहीं जा रही होती। वह लिखने पढऩे वाला ना होकर किसी सरकारी आफिस का बाबू होता तो शायद भारती के पापा भारती का हाथ उसकी हाथों में दे चुके होते।
बहुत ज्यादा दिन नहीं हुए, अभी चार पांच साल पहले ही तो भारती अपने पापा के साथ उसके घर के सामने रहने को आई हुई थी। शुरू के दो तीन साल तो उसने भारती की ओर ध्यान भी नहीं दिया। फिर एक रोज अचानक वह अपने कमरे की खिड़की की कोर से सामने की ओर देख रहा था तो उसे सामने भारती खड़ी हुई नजर आई। राज के कमरे की बिजली बंद थी ऐसे में भारती को राज नजर नहीं आ रहा था वहीं चांद की दुधिया रोशनी में भारती का गौर वर्ण स्वर्ण कमल सा अपनी सुंदरता बिखेरे जा रहा था। राज तब तक भारती को निहारते रहा जब तक भारती आंखों से ओझल नहीं हो गई। सुबह अचानक उसकी नींद खुली तो भोर का उजाला धरती पर फैलने लगा था, उसने एक बार फिर बालकनी के उस पार देखा तो भारती सामने खड़ी हुई थी, वह रात की तरह भारती को अपलक निहारने लगा, इसी बीच भारती जब घर के भीतर जाने को मुड़ी तो उसकी नजरें अचानक राज से टकरा गई। भोर के उजाले में भारती के बालकनी से भी राज नजर आने लगा था। राज को नजरअंदाज कर भारती अपने घर के भीतर चली गई। उस दिन के बाद से यह तो जैसे रोज का काम हो गया था। सोने से पहले और जगने के बाद रोज उसे बालकनी में खड़ी भारती का इंतजार रहता। रोज रात में भारती जैसे ही बालकनी पर आकर खड़ी होती, उधर से आती हवाओं का स्पर्श जैसे भारती के आने का अहसास कराता और राज उसे देखने लग जाता, जब कभी दोनों की नजरें टकराती तो राज भारती को देख मुस्कुरा देता वहीं अधिकांश बार भारती राज की मुस्कुराहट को अनदेखा कर देती, वहीं कभी कभी जवाब में वह भी मुस्कुरा देती। जिस दिन भारती राज को मुस्कुरा कर देखती, राज को ऐसा महसूस होता मानो उसने इस जहां में सब कुछ पा लिया हो।
 
सुबह शाम भारती को देखते, भारती के बारे में सोचते सोचते राज कब भारती से मन ही मन प्यार करने लगा उसे खुद भी पता नहीं चल पाया। अब तो उसकी लेखनी में भी भारती के प्यार का असर साफ नजर आने लगा था। उसकी कविताओं के हर शब्द भारती को समर्पित होते तो वहीं उसकी कहानियां भी भारती से प्रेरित होती। राज ने अभी तक भारती से अपने प्यार का इजहार नहीं किया था। भारती के दिल में उसके लिए क्या है उसे यह भी नहीं पता था।
 पिछले दो दिनों से भारती अपनी बालकनी पर नजर नहीं आई थी, ऐसे में भारती को लेकर राज के मन में तरह तरह के सवाल उठने लगे थे। भारती को देखे बिना ये दिन कैसे बीते थे, राज ही जानता था, ऐसे में सुबह सुबह जब भारती अपने घर से बाहर निकलते दिखी तो वह भी घर से बाहर निकल आया। उसने दोनों ओर देखा, भोर होने की वजह से गली में उसके और भारती के सिवा और कोई नहीं था, उसने भारती को उसका नाम लेकर आवाज दी।
इतने सालों में आज पहली बार राज ने भारती को पुकारा था। राज की आवाज सुनकर भारती ठिठककर खड़ी हो गई। 
आपकी तबियत तो ठीक है ना ? भारती के ठीक सामने जाकर राज ने सवाल किया।
हां, क्यों ? भारती ने संक्षेप में जवाब देते हुए प्रतिप्रश्र भी कर डाला।
दो दिनों से आप बालकनी में नजर नहीं आ रही थी इसलिए मैंने पूछा, राज का जवाब सुनकर भी जब भारती कुछ नहीं बोली, तो राज फिर बोला, शायद आपको पता नहीं पर आपको देखे बिना अब नींद नहीं आती। ऐसा लगता है जिस दिन आपको ना देखूं मैं ...। 
मैं जानती हूं। राज की बातों को बीच में काटती हुई भारती ने फिर छोटा सा जवाब दिया।
जानती हो तो बालकनी पर दो दिनों से नजर क्यों नहीं आई। राज ने पूछा।
भारती खामोश रही। भारती की खामोशी को देख राज ने फिर पूूछा, मुझसे नाराज हो ....? 
थोड़ी देर तक भारती के जवाब का इंतजार करने के बाद राज ने एक बार और पूछा, तो क्या मुझसे नफरत करती हो जो यह जानते हुए कि तुम्हें देखे बिना जी नहीं पाऊंगा मुझे नजर नहीं आती ?
 नफरत करने के सवाल पर अपनी खामोशी बरकरार रखते हुए भारती ने उससे पहले सवाल का जवाब देते हुए कहा, मैं आपसे नाराज नहीं हूं।
 मैंने पूछा मुझसे नफरत करती हो ..? राज ने एक बार फिर अपना पुराना प्रश्र दोहराया, भारती इस सवाल पर एक बार फिर खामोश रही। भारती की खामोशी का अर्थ राज निकाल पाता उससे पहले एक तेज आवाज उसके कानों में पड़ी। 
तुम्हें नाक कटाने के लिए पूरी दुनिया में यही एक फकीर मिला था, कम से कम अपने बाप के इज्जत का तो ख्याल करती। सुबह-सुबह अपने यार से मिलने घर के बाहर निकल आई। ये भी नहीं सोचा दुनिया वाले क्या कहेंगे।
राज और भारती दोनों ने एक साथ आवाज की दिशा में देखा, सामने गुस्से से भरे हुए भारती के पापा खड़े नजर आए, पापा मैं तो ... । 
चुप रहो...! तेज आवाज में डांटते हुए भारती के पापा ने कहा। बेटियां तो पापा की खुशी के लिए अपनी जान दे देती है और तुम अपने पापा की नाक कटाने पर तुली हुई हो। पापा भारती को अनाप शनाप कुछ भी कहे जा रहे थे, इधर पापा की डांट सुनकर भारती सकपका सी गई थी, उसकी दोनों आंखों में आंसुओं की मोटी मोटी बूंदे साफ तौर पर महसूस की जा सकती थी। भारती गौर से अपने पापा की ओर ही देखे जा रही थी लेकिन उसके मुंह से एक शब्द भी नहीं निकल रहा था।
 भारती का यह रूप जब राज से देखा नहीं गया उसने सफाई देते हुए भारती के पापा से कहा, भारती वैसी लड़की नहीं है जैसा आप सोच रहे हो, इसमें भारती का कोई दोष नहीं, वो मुझसे मिलने नहीं आई थी, उसे देख मैं ही उससे बात करने लगा था। 
अब तुम मुझे सिखाओगे मेरी बेटी क्या है, कैसी है ? मेरी बेटी के बारे में सोचने से पहले कम से कम अपनी औकात तो देख लिए होते। कविता कहानी लिखते रहने से पेट नहीं भरता, ना ही इससे नमक तेल मिलता है। घर परिवार चलाने के लिए कमाना पड़ता है, नौकरी करनी पड़ती है। राज पर ही बरसते हुए भारती के पापा ने कहा। जब राज को उसने जी भर कर सुना लिया तो एक बार फिर भारती पर बरसते हुए कहा, तुम्हें इतने पर भी समझ नहीं आता, अब तक यहीं खड़े सब कुछ सुन रही हो।
पापा की फटकार सुन भारती अपने घर की ओर मुड़ी और दौड़ते ुहुए घर के भीतर चली गई।
रात हो आई थी, सुबह के बाद से भारती एक बार भी राज को नहीं दिखी थी। आज उसे भारती के बालकनी पर होने का अहसास भी नहीं हो रहा था फिर भी वह बार बार बालकनी की ओर देखे जा रहा था, कि पता नहीं किस पल भारती उसे घड़ी दो घड़ी के लिए ही सही बालकनी पर दिख जाए। आज सुुबह पहली बार भारती की आंखों में राज ने आंसू की दो बूंदे देखी थी, भारती की आंखों में आंसू देखते ही राज को लगा मानों वह मर गया हो, उसके शरीर से उसकी आत्मा निकलकर भारती की आंखों से बहने वाली आंसू के साथ ही दफन हो गए हो, और उसका यह शरीर अब बेजान हो गया हो। बहुत ही भारी मन से जैसे तैसे दिन बीता था और रात आई थी। भारती को बालकनी में आना होता था तो वह इतनी देर नहीं लगाती थी, अब तक तो बालकनी से वापस जाने के बाद उसके एक नींद भी पूरे हो चुके होते पर आज ... आज बालकनी से भारती जितनी दूर थी, राज की आंखों से नींद भी उतनी ही दूर चली गई थी। उसने सोने के लिए जैसे ही आंखें बंद की, आंसुओं से भरा भारती का चेहरा एक बार फिर उसकी आंखों के सामने आ गया।
भारती का आंसुओं से भरा चेहरा देख राज हड़बड़ा कर उठ बैठा। तड़, तड़, तड़ ... उसने पूरी ताकत लगा अपने बाए हाथ से अपने बाए गाल को तीन झापड़ लगाए। तुमने ही भारती को रूलाया ना ... तुम्हारी वजह से ही भारती की आंखों में आंसू आए ना ... यह कह कहकर वह फिर पूरी ताकत से कभी दाएं तो कभी बांए अपने दोनों गालों को पागलों की तरह मारे जा रहा था, कभी कभी वह अपने दोनों हाथों से अपने चेहरे को पीटता। जब वह अपने आपको मारते मारते थक गया तो सॉरी बी... मिस यू बी ..., आई लव यू बी ... कहते कहते फफक फफक कर रोने लगा।
 समय अपनी पूरी रफ्तार से चला जा रहा था, दिन बीतते जा रहे थे, पर भारती को देखे बिना उसकी पूरी दिनचर्या बदल गई थी। दिन तो जैसे तैसे बीत जाता पर रात ... रात को नींद आने से पहले का एक एक पल उसे एक एक युग के समान भारी महसूस होता। एक दिन उसे पता चला भारती की शादी तय हो गई है, भारती का होने वाला दुल्हा सरकारी नौकरी में है । भले ही पद छोटा है पर कमाता तो राज से ज्यादा है। उसके बाद वह दिन भी आ गया जब भारती की शादी थी। राज ने खिड़की से बाहर झांककर देखा। आज फिर रात भर जागने के बाद भोर का उजाला नजर आने लगा था। भारती के घर के बाहर चहल पहल नजर आने लगी थी, शायद भारती की विदाई की तैयारी चल रही थी। 
विदा होते होते शायद आखरी बार उसे भारती नजर आ जाए यह विचार कर राज ने बिस्तर से उठने की कोशिश की, लेकिन वह नाकाम रहा। भारती की जुदाई ने उसे भीतर ही भीतर पूरी तरह से खोखला कर दिया था, तोड़कर रख दिया था। उसने एक बार फिर कोशिश की, इस बार वह उठने में कामयाब रहा। लडख़ड़ाते कदमों से दीवार का सहारा लेकर जैसे तैसे वह पहले दरवाजे तक और फिर गली में पंहुचा। दुल्हे की सजी हुई कार भारती के घर से बाहर निकल रही थी, कार का शीशा बंद होने की वजह से राज कार के भीतर नहीं देख पाया। वह उस कार में भारती के होने की कल्पना ही कर सका, दुल्हन के वेश में सजी हुई भारती, भारती की नजरें नीची झुकी हुई है, भारती की आंखों में अब भी आंसू की मोटी मोटी दो बूंदे तैर रही है ...।
अपने से दूर जाते कार को देखते देखते भारती को याद कर राज की आंखों में आंसू की मोटी मोटी बूंदे एक बार फिर तैरने लगी, सॉरी बी ... इतना ही कह पाया राज, इतने में उसके दिल से एक हूक सी उठी और वह वहीं बेजान होकर गिर पड़ा।

अलविदा पंकज उधास: कम खाते हैं कम सोते हैं, बहुत जियादा हम रोते हैं

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राजेश सिंह क्षत्री
प्रधान संपादक
छत्तीसगढ़ एक्सप्रेस
आज जैसे ही नायाब ने सोशल मीडिया पर अपने पिता पंकज उधास के नहीं होने की जानकारी दी बरबस ही लगभग 9 साल पहले सन 2015 में जांजगीर के हाईस्कूल मैदान पर फरवरी के महीने में जाज्वल्यदेव लोक महोत्सव में चिट्ठी आई है आई है चिट्ठी आई है गाते पंकज उधास का चेहरा आंखों के सामने झूल गया। इसके साथ ही बचपन की कई यादें भी बरबस याद आ गई। वो दौर विडियो का था, हम लोग तब कक्षा छठवीं-सातवीं के विद्यार्थी रहे होंगे। जांजगीर के शिव मंदिर गली में आज जहां हमारे छोटे भाई युवा पत्रकार बिट्टू शर्मा का निवास है, ठीक उसके सामने तब रात में गली में चल रहे विडियो में फिल्म देखने हम लोग पंहुचे थे, संजय दत्त, कुमार गौरव, अमृता सिंह, पूनम ढिल्लो अभिनीत नाम फिल्म में चिट्ठी आई है गीत के समाप्त होते होते मेरे साथ साथ वहां इस फिल्म को देख रहे अधिकतर दर्शकों की आंखों से आंसू बह चले थे। बाद में जब फिल्मी गीत संगीत के प्रति रूचि जागी तब पता चला कि इस गाने को सुनते सुनते मशहूर अभिनेता राजकपूर की आंखें भी नम हो गई थी। मशहूर अभिनेता राजेन्द्र कुमार ने जब अपने पुत्र कुमार गौरव के लिए लव स्टोरी के बाद नाम फिल्म का निर्माण किया तो उन्होंने इस गाने में आवाज देने के लिए पंकज उधास को अप्रोच किया तब तक पंकज बॉलीवुड में जगह बनाने के लिए संघर्ष करते थक चुके थे जिसके बाद वो विदेश में रहकर वहां शो करते थे। पंकज उधास ने इस गाने को गाने से मना कर दिया। नाम फिल्म के ही एक अन्य गाने तू कल चला जाएगा तो मैं क्या करूंगाको मोहम्मद अजीज के साथ पंकज उधास के भाई मनहर उधास अपनी आवाज दे रहे थे, ऐसे में राजेन्द्र कुमार ने मनहर को ये बात बताई जिसके बाद पंकज उधास ने ना केवल इस गाने को अपनी आवाज दी बल्कि फिल्म में भी वही इस गीत को गाते नजर आए। उस साल के बिनाका गीत माला में यह गाना टॉप पर रहा। कल्याण जी आनंद जी द्वारा मशहूर गायक मुकेश की आवाज में कंपोज कर चुके गीत ना कचरे की धार ना मोतियों के हार ना तुने किया श्रृंगार फिर भी कितनी सुंदर हो को जब विजू शाह ने फिल्म मोहरा के लिए रिकार्ड किया तो फिल्म के लिए इस गाने को पंकज उधास ने ही गाया जो बेहद लोकप्रिय हुआ। भारत चीन युद्ध के दौरान एक बड़े स्टेज शो में पंकज उधास ने जब लता मंगेशकर का मशहूर गैर फिल्मी गाना ए मेरे वतन के लोगों को गाया तब दर्शक दीर्घा से किसी सज्जन ने उन्हें 51 रूपए का इनाम दिया था जो कि पंकज की संगीत के क्षेत्र में पहली कमाई थी तो वहीं इंडियन एक्सप्रेस में छपी एक लेख के अनुसार शाहरूख खानको अपनी पहली सेलरी 50 रूपए पंकज सधास के ही एक कॉन्सर्ट में प्रवेशक का काम करने के बदले मिली थी। अभिनेता जॉन अब्राहमको पंकज ने चुपके चुपके सखियों से वो बातें करना भूल गईगजल में तो अभिनेत्री समीरा रेड्डी को पहला ब्रेक और आहिस्ता कीजे बाते धड़कने सुन ... गजल से दिया था। रिश्ता तेरा मेरा जग से निराला ..., और भला क्या मांगू मैं रब से ...., मत कर इतना गुरूर ... , चंादी जैसा रंग है तेरा सोने जैसे गाल ... आज फिर तुम पे प्यार आया है बेहद और बेमिसाल आया है ... दिल जब से टूट गया कैसे कहें कैसे जीते हैं ... मोहब्बत इनायत करम देखते हैं .... एक तरफ उसका घर एक तरफ ...जैसे बेहतरीन गाने गाए। साजन फिल्म के इस मशहूर गाने के साथ पंकज उधास को विनम्र श्रद्धांजलि ...!
देख के वो मुझे तेरा पलके झुका देना,
याद बहुत आए तेरा मुस्कुरा देना ...
जीयें तो जीयें कैसे बिन आप के ...

समोसे की दुकान

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बाल कहानी मुस्कान सिंह क्षत्री शिव मंदिर, नहर किनारे, वार्ड नं. 8 जांजगीर छ.ग.
बहुत समय पहले एक गांव में दो भाई रहते थे। वे एक दूसरे से बहुत प्यार करते थे। उनका गांव में ही समोसे का छोटा-सा दुकान था। एक भाई समोसे बनाता और दूसरा भाई उसे सभी को देता था। दोनों भाई की जिंदगी अच्छे से चल रही थी। उनकी कमाई अच्छी हो रही थी। एक दिन वो अपनी दुकान में थे, तभी बड़े भाई ने छोटे भाई से कहा कि क्यों न हम अपने समोसे का दाम बढ़ा कर उसे बेचे तो हमारा मुनाफा अधिक होगा, लेकिन छोटे भाई ने मना कर दिया। तब बड़े भाई ने सोचा कि क्यों न मैं छोटे को बिना बताए ही दाम बढ़ा लूं।
बड़े भाई ने छोटे भाई को समोसे बनाने के लिए कहा। छोटे भाई ने उसकी जगह समोसा बनाना शुरू किया। उनके समोसे को खाने के लिए दूर-दूर से लोग आते थे लेकिन बड़े भाई के दाम बढ़ाने के कारण धीरे धीरे लोगों का आना कम होते गया जिससे कुछ दिनों बाद ही उनका मुनाफा धीरे-धीरे कम हो गया। तो छोटे भाई ने बड़े भाई से पूछा, भईया आजकल हमारे दुकान में ज्यादा लोग नहीं आते, क्या आपने दाम बढ़ा दिया है ?
बड़े भैया ने बताया कि हां छोटे, मैंने दाम बढ़ा दिया है। तो छोटे भाई ने कहा, भैया मैंने तो आपको कहा था कि दाम मत बढ़ाइए लेकिन आपने मेरी नहीं सुनी। अब तो हमारे पास पहले से भी कम पैसे आते हैं। उसके बाद बड़े भाई को अपनी गलती का अहसास हुआ और फिर उन्होंने दुकान के समोसे का दाम कम कर दिया। फिर उसके दुकान में पुराने ग्राहक आने शु़रू हो गए और उनका व्यापार धीरे से बढ़ गया। थोड़े दिनों में उनकी छोटी सी दुकान एक बड़े रेस्टोरेंट में बदल गई।

वो लडक़ी -पारो

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कहानीराजेश सिंह क्षत्री शिव मंदिर, नहर किनारे, वार्ड नं. 8 जांजगीर छ.ग.
राम राम श्ंाकर काका! गांव पंहुचते ही सामने से शंकर काका को आते हुए देख मैंने कहा.राम राम ठाकुर साहब, इस बार बहुत दिन बाद पधारे.हां, काका! मेरा काम ही कुछ ऐसा है कि वक्त ही नहीं मिल पाता, फिर भी इस बार लम्बी छुट्टी लेकर आया हूं. घर में सब कुशल तो है ना ?सब ठीक है बेटा, पारो का ब्याह लग गया है, अगले महीने ही शादी है. बस, उसी की तैयारी में जुटा हूं.पर काका ! अभी पारो की उम्र ही कितनी है, ले देकर सोलह बरस की ही तो हुई है, अभी से ...?लडका मेट्रिक पास है, पांच एकड़ जमीन है, पड़ी रहेगी कमाती खाती वहां ..., अच्छा घर देखा इसलिए ना नहीं कर सका. इतना कहते-कहते शंकर काका आगे निगल गए और मेरी आंखों में सोलह बरस की भोली-भाली और मासूम पारो का चेहरा घुम आया जो धीरे-धीरे और छोटी हो गई ... बिल्कुल छोटी.तब मुझे गांव जाना बिल्कुल अच्छा नहीं लगता था, वहां मेरा कोई दोस्त नहीं था इस कारण मुृझे गांव के नाम से ही चिढ़ उत्पन्न हो जाती थी, लेकिन फिर भी गर्मी की छुट्टियों में मुझे गांव जाना पड़ गया.तेरह बरस की उम्र घर में बैठकर बड़े बुजुर्गो की बातें सुनने की तो नहीं होती सो मैं अकेले ही गांव की सैर करने निकल गया. अभी घर से कुछ कदम ही चल पाया था कि देखा, एक लडक़ी अकेली धूल खेलने में मस्त है. गोरा मुखड़ा, चचंल आंखें, उमर लगभग तीन बरस. सर से लेकर पांव तक धूल में सनी हुई उस लडक़ी में न जाने ऐसा कौन-सा आकर्षण था कि मैं उसके पास चला आया. सुनो, तुम्हारा नाम क्या है ? मेरे पूछने पर वह धूल हाथ में लिए उठ खड़ी हुई व सिर से पांव तक मुझे देखने के बाद मु़ट्ठी बंद किए धूल से सने हाथ को अपने गाल में टिका सोचने के से अंदाज में अत्यंत ही मासूमियत के साथ तुतलाते हुए बोली - पालो औल तुल्ता !दुर्गा ... ? उसके दूसरे नाम को न समझ मैंने दोहराते हुए पूछा.दुल्दा नहीं तुल्ता ... तुल्ता ...उसके मुख से अपना नाम कुल्टा सुन मुझे आश्चर्य हुआ, मैंने अविश्वासपूर्वक फिर पूछा कुल्टा ....?हां, मां जब जुच्छे में होती है तो वही तो तहती है मुझे, ए तुल्ता ! तंहा मल दई.मां झूठ कहती है, तुम तो परियों की राजकुमारी की तरह सुन्दर हो, तुम्हारा नाम तो रानी होना चाहिए.थीत है, तुम्हें लानी अच्छा लदता है तो तुम लानी पुताल लिया तलो. तुम तौन हो ... ?मैं ...! मैंने कुछ सोचकर कहा, मैं तुम्हारा भइया ...!भ...इ...या... उसने हंसते हुए कहा - भइया ऐसे थोली होते हैं, वे तो दंदे होते हैं, बहुत मालते हैं, मेला भइया तो मुजे बहुत मालता है, तुम भइया नहीं हो छकते, तुम तो तितने अच्छे हो ...ठीक है, तुम्हें जो अच्छा लगे वही पुकार लो ...मेला तोई दोत्त नहीं है, मैं तुम्हें दोत्त तहतर पुतालूं ? उसने बड़ी मासूमियत से पूछा.मेरा भी यहां कोई दोस्त नहीं है रानी, ठीक है आज से हम दोनों पक्के दोस्त हुए.दोत्त, तुम मेले छाथ थेलोदे.हां... इतना कह मैं भी अपने नन्हें दोस्त के साथ धूल खेलने में व्यस्त हो गया.रानी से दोस्ती क्या हुई, गांव के बारे में मेरी मानसिकता ही बदल गई. पहले जो गांव मुझे फूटी आंख नहीं सुहाता था वही अब बड़ा प्यारा नजर आने लगा. अब तो मेरी तमाम छुट्टियां गांव में ही व्यतीत होने लगी.समय व्यतीत होता गया, पारो भी अब बारह बरस की हो गई थी, लेकिन उसकी मासूमियत, उसकी चंचलता में कोई कमी नहीं आई थी. उसकी मासूमियत देख मुझे लगता, इसको तो कभी भी कोई भी बुद्धु बनाकर जा सकता है. उसमें भी उसका कोई दोष नहीं था, दोष था तो सिर्फ उसकी निरक्षरता का. मेरे लाख समझाने के बाद भी शंकर काका ने पारो को पढ़ाने के बजाए अनपढ़ रखना ही उचित समझा.अपने निरक्षर होने का उसे जरा भी अफसोस नहीं था, न ही वह इसके लिए अपने माता-पिता को दोष देना चाहती थी. तभी तो जब कभी मैं उसके ना पढ़ पाने के कारण शंकर काका को बुरा-भला कहता तो वह किसी बुजुर्ग की भांति मुझे बीच में ही टोक उठती, इसमें बाबा का क्या दोष? पढ़ लिख कर मैं करती भी क्या ... वैसे भी मैं जहां भी रहूं चौका-चूल्हा ही तो करना है, पढऩे लिखने से तो भइया को फायदा है. इस कारण तो बाबूजी उसे पढ़ा रहे हैं, ताकि वह पढ़ लिख कर कोई काम करे व घर की देखभाल करे.उसका जवाब सुन हार मुझे ही माननी पड़ती और मैं चुप हो जाता. पहले जहां मैं गर्मी की छुट्टी में भी गांव जाने के नाम से जी चुराता था वहीं अब रविवार की छुट्टी भी गांव में व्यतीत होने लगा. ऐसे ही एक सुबह जब मैं गांव पंहुचा सामने से मुझे पारो आते दिखाई दी. पूछने पर पता चला वह मंदिर गई थी. मैं पूछ बैठा, रानी, तुम रोज सुबह मंदिर जाती हो, आखिर तुम भगवान से मांगती क्या हो ... ? यही कि भगवान मेरे दोस्त को अच्छे नम्बरों से पास कर देना, मैं तुम्हारे सर पर पांच नारियल फोड़ूंगी.उसके भोलेपन पर मुझे हंसी आ गई. मैंने फिर से पूछा, सर पर ...हां ... !पगली कहीं की ... भगवान के सर पर नारियल फोड़ेगी तो भगवान की मूर्ति टूट नहीं जाएगा, इससे तो भगवान खुश होने की बजाय उल्टा तुमसे नाराज होकर मुझे फेल कर देंगे.अरे हां ! मैंने तो ये सोचा ही नहीं था, भगवान मुझे माफ कर देना. मैं तुम्हारे सर पर पांच नारियल फोड़ूंगी नहीं बल्कि तुम्हारे चरणों में पांच नारियल चढ़ाऊंगी लेकिन मेरे दोस्त को अच्छे नम्बरों से पास जरूर कर देना. वही पर हाथ जोड़ भगवान को स्मरण करते हुए वह बोली.वैसे भी अपनी पढ़ाई की जितनी फिक्र खुद मुझे नहीं थी उससे अधिक चिंता पारो करती थी तभी तो जब कभी भी पढ़ाई के मौसम में मैं उसके साथ खेलने लग जाता था वह कहती, दोस्त खेलना बंद करो और चुपचाप पढ़ाई करो, जाओ न दोस्त .. जाओ न... तुम्हें मेरी कसम है, देखो तुम पढ़ाई नहीं करोगे तो मैं तुमसे कभी बात नहीं करूंगी ... ? इतना कहते-कहते उसका गला भर आता था और मुझे मजबूरन पढऩा पड़ता था.
उसकी नि:स्वार्थ, उन्मुक्त व्यवहार देख मैं सोचता, ये लडक़ी शादी के बाद अपने ससुराल में किस तरह रहेगी, वैसे भी आज के स्वार्थ से भरे दुनिया में इतना भोलापन भी ठीक नहीं ... शादी के बाद उसके ससुराल वाले उसकी मासूमियत का गलत उपयोग न करे, यही फिक्र तो रहती थी मुझे उसकी और आज जब शंकर काका ने उसकी शादी लगने की बात कही मेरी चिंता थोड़ा और बढ़ गई, तभी मुझे सामने से पारो आती दिखाई दी. पास आकर उसने पूछा, कैसे हो दोस्त ... ?ठीक हूं रानी ... ! मैं बस इतना ही कह सका और मेरी आंखे नम हो गई.

शूटिंग रिपोर्ट: देवार गीत, बड़ दूरिहा ले आए हव मालिक

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जुबां पर चढ़ जाने लायक शब्द और झुमने को मजबूर कर देने वाली धुन गीत को लोकप्रिय बना सकती हैराजेश सिंह क्षत्री
कर्मा, सुआ, पंथी, ददरिया, जसगीत आदि पारंपरिक गीतों के माध्यम से छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक विरासत को सहेजने में जुटी संस्कृति स्टूडियो नए वर्ष में देवार गीत लेकर आ रही है, रविवार 22 दिसंबर की गाने की शूटिंग जांजगीर चांपा जिले के पामगढ़ विकासखंड अंतर्गत ग्राम कुटराबोड़ में की गई। जुबान पर चढ़ जाने वाले आसान शब्दों और झूमने को मजबूर कर देने वाली धुन के चलते गीत लोगों को पसंद आ सकती है। देवार गीत को नए साल के अवसर पर एक जनवरी 2025 को संस्कृति स्टूडियो में रिलीज किया जाएगा। डीएव्ही पब्लिक स्कूल के बगल वाली गली से होते कच्चे पक्के रास्ते को पार कर जब जय प्रकाश यादव के साथ छत्तीसगढ़ एक्सप्रेस की टीम शूटिंग स्थल कुटराबोड़ के ग्रामीण हीरा प्रताप कुर्रे के घर के सामने पंहुची तो शूटिंग की तैयारियां अंतिम चरणों में थी। केमरा और कलाकारों को देखकर आसपास के बच्चे और ग्रामीण अपने अपने घरो से झांकते हुए शूटिंग प्रारंभ होने का इंतजार करते नजर आ रहे थे। देवार गीत में गौटिया की भूमिका निभा रहे जय प्रकाश यादव के साथ मुझे देख गीत के मुख्य अभिनेता, गायक एवं कोरियोग्राफर डॉ. सूरज श्रीवास ने रिपोर्टिंग के साथ साथ मेरे लिए भी देवार गीत में गौटिया के भाई की भूमिका फीट कर डाली तथा गाने के सिचुएशन समझाने लगे। कहानी के अनुसार देवार लोग गांव की गलियों से गुजर रहे होते हैं जिन्हें देख गौटिया का भाई अर्थात मैं और गौटिया का मुख्तियार घांसीराम बंजारे उन्हें रोककर घर के भीतर ले जाते हैं, आज गौटिया का जन्मदिन है ऐसे में देवार गौटिया के जन्मदिन के अवसर पर नाचते गाते हैं जिसके बाद उन्हें रूपए पैसे के साथ साथ चावल आदि देकर विदाई दी जाती है और देवार लोग गौटिया को आशिर्वाद देते हैं। सूरज के कहानी समझाते समझाते एलबम की हीरोइन प्रतिभा कुजूर और चांदनी खरे भी देवारिन की वेषभूषा में तैयार हो आ जाती है। छत्तीसगढ़ के पारंपरिक पहनावा लुगरा के साथ छत्तीसगढ़ी गहनों को सिर से लेकर पैर तक लादे और हाथ पैर के साथ साथ शरीर के अन्य हिस्से में भी गोदना बनवाए दोनों कलाकार स्टोरी के अनुसार सिर पर लंबा सा घुंघट डाले हुए है। बहुत सारी भारी गहनों से लदी प्रतिभा मस्ती के मूड में अपने हाथों में पहनी बड़ी बड़ी चांदी की अंगुठियों को घुमाते हुए कहती है अभिनय करते मेरे पास बहुत सारे पैसे आ गए हैं जिससे मैं अपने लिए इतना सारा गहना खरीदी हूं इस पर उन्हें टोंकते हुए किसी की आवाज आती है, देवार लोग नाच नाच कर पैसे मांगते हैं वह अपनी बातों को सुधारते हुए फिर कहती है मांग मांग कर मेरे पास बहुत सारा पैसा आया है जिससे इतना सारा गहना खरीदी हूं। शूटिंग की सारी तैयारियां पूरी हो चुकी है, कलाकार भी अपना अपना ड्रेस पहन तैयार हो चुके हैं ऐसे में गौटिया बने डॉ. जय प्रकाश यादव, डॉ. सूरज श्रीवास के साथ सभी कलाकार कैमरा की विधिवत पूजा कर शूटिंग प्रारंभ करते हैं। पहला शॉट देवार लोगों का गली से गुजरते हुए फिल्माया जाना है, देवार बने डॉ. सूरज श्रीवास, सत कुमार खरे, प्रतिभा कुजूर और चांदनी खरे गली से गुजर रहे हैं। सूरज हाथों में चिकारा लिए हुए है तो वहीं सत कुमार बिना ढोलक गली में पंहुच गए हैं ऐसे में सूरज उन्हें टोंकते हुए कहते हैं ढोलक को तो गले में डाल लो, जिस पर सत कुमार वापस ढोलक लेकर गली में पंहुचते हैं। अभिनय करने के साथ साथ सूरज साथी कलाकारों को अभिनय की बारिकियां भी समझाते जा रहे हैं, कैसे चलना है, कहां से कहां तक चलना है, कहां रूकना है, ऐसे में घूूंघट ओढ़े प्रतिभा कहती है कि उसे तो कुछ दिखाई ही नहीं दे रहा है, शांत चित्त नजर आ रही चांदनी कोरियोग्राफर के निर्देशों का पालन कर रही है। दो रिटेक के बाद उनके आने का शॉट पूरा हो जाता है। देवार गीत की शूटिंग में कुटराबोड़ के ग्रामीण हीरा प्रताप कुर्रे का घर गौंटिया जय प्रकाश यादव का घर है, दूसरे शॉट में मुझे और गौटिया के मुख्तियार घांसीराम बंजारे को बात करते हुए घर से निकलना है, दूसरे रिटेक में यह शॉट भी पूरा हो जाता है। तीसरे शॉट में देवारों के साथ में हमारे संवाद की शूटिंग पूरी होती है जिसमें देवार बताते हैं कि वो देवार हैं नाचते गाते हैं जिस पर गौटिया का जन्मदिन होने की बात कहते हम उन्हें घर के भीतर प्रवेश कराते हैं। उसके बाद अगले शॉट में सभी को घर के भीतर प्रवेश कराया जाता है। एक दो रिटेक के बाद सभी शॉट पूरे होते जा रहे हैं। घर के भीतर गौटिया जय प्रकाश यादव खाट पर बैठे हुए हैं, गले में पड़ी ढेरो मालाए उनके व्यक्तित्व को खास बना रही है। उनके दोनों किनारे पर लगी कुर्सियों में मैं और घांसीराम बंजारे बैठ जाते हैं। पीछे एक अन्य ग्रामीण होरीलाल दिव्य एक अन्य कुर्सी पर बैठे हुए हैं। गौटिया के सामने नाचते गाते देवार पूरे गाने की शूटिंग एक ही लोकेशन पर करते हैं। नाच पसंद आने पर गौटिया बीच बीच में देवारों पर पैसे उड़ाते जा रहा है। गाने के बीच में गौटिया की बहन बनी संगीता दिव्य पानी लेकर आती है, पानी देने के बाद वह भी देवारों के नाच देखते हुए मगन हो पीछे खड़े हो जाती है, वहीं गौटिया को अपनी ओर देखता देख वह फिर चली जाती है। गाना समाप्त होने से पहले देवारों को सूपा में दाल, चांवल, नमक, मिर्ची आदि डाल देने वह एक बार फिर आती है। गाने में मुखड़े से पहले म्यूजिक की शूटिंग आसानी से पूरी हो जाती है, जिसके बाद मुखड़े की शूटिंग शुरू होती है, देवार गीत में स्वर डॉ. सूरज श्रीवास और सुश्री डॉ. लक्ष्मी करियारे की है, डॉ. सूरज श्रीवास के स्वर वाली पंक्तियों को परदे पर डॉ. सूरज श्रीवास के साथ साथ सत कुमार खरे को भी अभिनीत करना है ऐसे में पहली बार के फिल्मांकन में सूरज संतुष्ट नहीं होते तथा सत कुमार को गाने के बोल का हिस्सा समझाने लगते हैं, बड़ दूरिहा ले आए हव मालिक आए हव तोर दुवार, में दुवार को रिपीट करना है, नई मांगौ मैं ह अन्न धन दुकान नइ मांगौ मय रूपिया हजार, में हजार को रिपीट करना है, दू मुठा चाउर मया के दे दे अउ चटनी बर दू ठ पताल, देवार हावंव गीत गावत हव मालिक मया के दे दे जोहार में पताल मांगते हुए थोड़ा कामेडी का पुट लाना है आदि आदि ... इस दौरान दोनों नायिका प्रतिभा कुजुर और चांदनी खरे नाचने की प्रेक्टिस करते रहती है। मुखड़े की शूटिंग के बाद अंतरे की बारी आती है। बाजे चिकारा देवार के भइया गावय गाना झूम झूम, झुमर झुमर नाचे देवारी पइरी बाचे रूम झूम, किसिम किसिम के गोदना गोदाए हे आनि बानी के श्रृंगार, देवार हावव गीत गावत हव मालिक मया के दे दे जोहार दू मुठा चाउर मया के दे दे अउ चटनी बर दू ठ पताल ... एक दो रिटेक के साथ शूटिंग आगे बढ़ती गई और इस तरह एक ही लोकेशन पर पूरे गाने की शूटिंग कम्पलीट कर बेकअप किया गया। श्रृंगार, माधुर्य के साथ कॉमेडी का भी पुटदेवार गीत में श्रृंगार और माधुर्य के साथ साथ दर्शकों को बांधे रखने के लिए बीच बीच में कॉमेडी का भी पुट डाला गया है। एक दृश्य में छत जाने वाली सीढ़ीयों के ऊपर डांस कर रहे सत कुमार गिरने को हो जाते हैं तो वहीं घूंघटे के भीतर रहकर नाचते नाचते नायिकाएं घूंघट उठा गौटिया को देखने की कोशिश करती है। नव वर्ष के पहले दिन होगा रिलीजदेवार गीत बड़ दूरिहा ले आए हव मालिक को नववर्ष के प्रथम दिवस एक जनवरी 2025 की सुबह 6 बजे यूट्यूब चौनल संस्कृति स्टूडियो पर रिलीज किया जाएगा। इसके गीतकार सुश्री डॉ. लक्ष्मी करियारे, संगीतकार रामगोपाल कैवर्त, निर्माता अनुज करियारे, निर्देशक डॉ. जेपी यादव, कैमरामेन कृष्ण कुमार दिव्य, कलाकार डॉ. सूरज श्रीवास, सतकुमार खरे, प्रतिभा कुजूर, चांदनी खरे, डॉ. जय प्रकाश यादव, राजेश सिंह क्षत्री, संगीता दिव्य, घांसीराम बंजारे, होरीलाल दिव्य, मीडिया पार्टनर दैनिक छत्तीसगढ़ एक्सप्रेस है। रील और रियल लाइफ दोनों में मनाया गया जन्मदिनएल्बम में गौटिया बने डॉ. जय प्रकाश यादव के जन्मदिन के अवसर पर उनके घर में देवार गीत गाने आते हैं। 22 दिसंबर को जब कुटराबोड़ में देवार गीत की शूटिंग हो रही थी उस दिन रियल लाइफ में भी जय प्रकाश यादव का जन्मदिन था ऐसे में रील लाइफ और रियल लाइफ दोनों में जन्मदिन की खुशियां बांटी गई। शूटिंग लोकेशन की झलकियां
शूटिंग स्थल कुटराबोड़ की गली और घर के आंगन में शूटिंग देखने के लिए बड़ी मात्रा में बच्चे तथा आस पास के ग्रामीण जमा हो गए थे ऐसे में दर्शकों को फ्रेम से बाहर रखने के लिए कैमरामेन कृष्ण कुमार दिव्य को काफी मशक्कत करनी पड़ी।शूटिंग के दौरान सूरज श्रीवास तथा सत कुमार खरे के बीच मजाकिया नोक झोंक भी चलते रहा। सूरज ने सत से कहा कि मेरे साथ उतना अच्छा डांस नहीं करते जितना अच्छा हिरोइन के साथ करते हो इस पर सत कुमार ने कहा तोर संग का फिलिंग आही। एलबम की दोनों हीरोइनों के साथ जब सूरज अपने डांस सीन देने लगे तो हल्की सी मजाकिया नाराजगी जाहिर करते हुए सत कुमार ने कहा दूनो हीरोइन करा तही नाचबे त मैं जात हव और वो जाने की एक्टिंग करने लगे जिसके बाद सूरज उसे हीरोइन करा तहूं ल नचवाहूं बोल वापस लाए।सत कुमार के कद के हिसाब से ढोलक भारी हो जा रहा था जिस पर शूटिंग के तुरंत बाद वो ढोलक को उतार कर रख देते थे। नायिकाओं में प्रतिभा कुजूर शुरूआत से ही चंचल नजर आई तो वहीं नई नवेली चांदनी खरे शूटिंग आगे बढऩे के साथ साथ खुलते हुए नजर आई।गीत के बड़े हिस्से में दोनों नायिकाएं प्रतिभा कुजूर और चांदनी खरे घुंघट ओढ़े हुए ही अभिनय एवं डांस करते नजर आई वहीं गौटिया के द्वारा उनका घूंघट उठाने के लिए इशारा करने के बाद आखिर के हिस्से में उनका चेहरा नजर आया। लक्ष्मी करियारे की आवाज वाले आखरी अंतरे हाय रे हाय रे हमर करमा ददरिया ... पर शुरूआत में दोनों नायिकाएं लिप्सिंग करने वाली थी लेकिन प्रतिभा के खुलकर अभिनय करने के चलते अंत में अकेले प्रतिभा ने ही इस अंतरे को कम्पलीट किया।
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