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पंचतंत्र की प्रसिद्ध कथा

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एकबार एक पिता पुत्र अपने गधे को साथ लेकर बाजार जाने के लिए घर से निकले, गधे के साथ वे पैदल चलने लगे, एक मील आगे रास्ते के किनारे खड़े कुछ लोगों ने उन्हें देखा, वे कहने लगे, देखो कैसे लोग हैं, गधे की सवारी करना छोड़ उसे साथ लेकर चल रहे हैं, उनकी बातें सुनकर पिता ने पुत्र को गधे पर बैठा दिया और स्वयं पैदल चलने लगा...
   
कुछ दूर जाने के बाद राह किनारे खड़े कुछ अन्य लोगों ने उन्हें देखा, वे कहने लगे देखो कैसा मूर्ख बेटा है, स्वयं गधे पर आराम से बैठा है और बुजुर्ग बाप को पैदल चला रहा है, यह सुनकर पुत्र लज्जित हो गया, उसने गधे पर पिता को बैठा दिया और स्वयं पैदल चलने लगा, आगे एक कुंए के पास कुछ महिलाएं खड़ी थीं, पिता पुत्र को देख वे कहने लगीं, देखो कितना निर्लज्ज बाप है, फूल से बेटे को पैदल चला रहा है और स्वयं आराम से गधे पर बैठा हुआ है...


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महिलाओं की बातें सुनकर पिता ने पुत्र को भी गधे पर बैठा लिया, आगे जाने पर कुछ लोग दिखे, वे कहने लगे देखो कितने दुष्ट लोग हैं, एक ही गधे पर दो लोग सवार हो गए हैं, बेचारा इनका भार वहन नहीं कर पा रहा है, हांफता जा रहा है। उनकी बातें सुनकर पिता पुत्र फिर गधे की पीठ से नीचे उतर गए...

लोगों के तानों से परेशान पिता ने गधे के चारों पैरों को रस्सी से बांध दिया, फिर उसे उल्टा कर चारों पैरों के बीच एक बांस लगा दिया, अब पिता पुत्र बांस के एक एक छोर को कंधे पर उठाए गधे को लादकर आगे जाने लगे, चलते चलते वे एक पुल पर पहुंचे, यहां भी कुछ लोग खड़े गप्पें हांक रहे थे, लोग पिता पुत्र को देखकर हंसने लगे, कहने लगे, देखो कैसे मूर्ख लोग हैं, जिस गधे की सवारी करनी चाहिए, उसे ये कंधे पर लादकर चल रहे हैं...

लोगों की बातें सुनकर पिता पुत्र ठिठककर खड़े हो गए, इस बीच उल्टा टंगे टंगे परेशान हो चुके गधे ने कसमसाना शुरू किया, उसने पैरों को जोर का झटका दिया तो रस्सियां टूट गईं, गधा दूर छिटककर नदी में जा गिरा और मर गया...पिता पुत्र दुखी मन से वापस घर लौट गए...

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तात्पर्य...
इस संसार में आप कुछ भी करें, लोग आपकी आलोचना अवश्य करेंगे, इसलिए कुछ भी करने के पहले एकबार यह विचार कीजिए कि आप जो करने जा रहे हैं, वह उचित है या अनुचित, यदि आपको अपनी कार्ययोजना उचित प्रतीत होती है, तो फिर लोग कुछ भी कहें, आप अपनी योजना के अनुसार कार्य करते जाइए...यदि लोगों के कहने के अनुसार कार्य करेंगे, तो पिता पुत्र जैसी हालत होगी...

एक बात और...
अक्सर हम किसी व्यक्ति, वस्तु, स्थान, कार्य आदि के संबंध में अपनी पूर्व धारणा या मस्तिष्क में पहले से बनी इमेज के अनुसार विचार व्यक्त करते हैं, यदि किसी के प्रति हमारे मस्तिष्क में यह इमेज बनी हुई है कि यह व्यक्ति गलत है, तो हम उसके अच्छे कार्य को भी गलत साबित करने लगते हैं, वहीं जब हमें यह लगता है कि फलां व्यक्ति सही है, तो हम उसके गलत कार्य को सही साबित करने में ताकत लगा देते हैं...

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जब हम अपनी पूर्व धारणा को किनारे रखकर तटस्थता से सही और गलत पर विचार करते हैं, व्यक्ति को दरकिनार कर कार्य के औचित्य और उसके संभावित परिणामों पर ध्यान देते हैं, तभी सही निर्णय पर पहुंचते हैं.....अतः किसी भी व्यक्ति के किसी कार्य की आलोचना के पहले अपनी पूर्व धारणा व तटस्थता का ध्यान अवश्य रखें....

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