पत्रकारिता एक नशा है जिसे हो जाता है फिर हो जाता है, यह बड़ी आसानी से छूटने वाला नहीं है, अब हमें ही देख लो आधा सैकड़ा कामों में किस्मत आजमाने के बाद बार-बार पत्रकारिता की तरफ खींचे चले आए। लोगों ने कहा पत्रकारिता में खूब पैसे बरसते हैं, सोशल मीडिया में बहुत सारे जाने-पहचाने पत्रकारों की आमदनी लाखों-करोड़ों में बताई गई तो एक हम ऐसे रहे जिसे कई-कई महीने बोहनी करने के लिए इंतजार करना पड़ा। हमारे सामने हमारे साथी बड़ी-बड़ी चारपहिया गाड़ी में घुमते रहे और हमें अपनी 6 साल पुरानी प्लेटिना को बिना सर्विसिंग कराए ही कई-कई महीने तक घसीटना पड़ रहा। पत्रकारिता के अट्ठारह वर्षो में एक छोटे से गांव, कस्बे से लेकर राजधानी तक के कई पत्रकारांे से मिलने, उनके समक्ष बैठने और उनके सुख-दुख को जानने का अवसर प्राप्त हुआ जिसमें से अधिकांश पत्रकार अपनी आय को लेकर असंतुष्ट ही नजर आए। पत्रकारिता के अपने लंबे कैरियर में हमारा सामना कई तरह के पत्रकारों से हुआ, यहां लिखने वाले भी नजर आए तो बिकने वाले भी दिखे, प्रतिदिन हजारो लाखों कमाने वाले मिले तो ऐसे लोग भी मिले जिनकी महीने भर की आमदनी भी एक हजार नहीं पंहुच पा रही है, लेकिन सभी अपने-अपने तरीके से पत्रकारिता के पेशे का झंडा बुलंद कर कदमताल करते दिखे।
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पत्रकारों की आय के मामले में मुझे वेतनभोगी और गैरवेतन भोगी पत्रकारों में एक बड़ा अंतर दिखाई पड़ा, ये अंतर शहरी और ग्रामीण होने के कारण भी देखा गया। रायपुर-बिलासपुर जैसे शहरों के लगभग अधिकांश पत्रकार वेतनभोगी होते हैं जिन्हें अपने काम के एवज में अपने संस्थानों से एक निश्चित राशि प्रतिमाह प्राप्त होती है वहीं इन जिला मुख्यालयों से परे ग्रामीण इलाकों, तहसील और ब्लाक मुख्यालयों में जो पत्रकार काम करते हैं वो काम तो पत्रकारों का करते हैं लेकिन मीडिया संस्थान इन्हें अपना एजेंट मानते हैं जो कि एक निश्चित राशि देकर उस क्षेत्र में उस संस्थान के प्रतिनिधि के रूप में कार्य कर रहे होते हैं। काम के दौरान पत्रकारों के समक्ष किस प्रकार की चुनौतियां आती है इसका अध्ययन करना हो तो इनके करीब जाकर इन्हें जानने समझने से सारी स्थिति स्पष्ट हो जाती है। ऐसे लोग ज्यादातर ग्रामीण क्षेत्रों से होते हैं इसलिए हम इन्हें ग्रामीण पत्रकार के रूप में भी परिभाषित कर सकते हैं। ऐसे लोेगों को अपने क्षेत्र में संबंधित अखबारों की प्रतियों का वितरण करना होता है तथा समाचार और विज्ञापन प्राप्त करना होता है। प्रतियों और विज्ञापन में इन्हें कमीशन प्राप्त होते हैं जो कि संस्थान के हिसाब से 10 प्रतिशत से प्रारंभ होकर 50 प्रतिशत तक हो सकती है। मेरे हिसाब से ग्रामीण क्षेत्र में पत्रकारिता आज भी जोखिम भरा काम होता है क्योकि इसमें मान-सम्मान तो खूब मिलता है लेकिन उनकी यही खूबी भविष्य में कई स्थानों पर उनके लिए घातक साबित होती है क्यांेकि युवा अवस्था में पत्रकार के रूप में पहचान बना चुके ये लोग जब पर्याप्त आमदनी नहीं होने पर किसी अन्य पेशे को अपनाना चाहते हैं तो लोग इन्हें पत्रकार मानते हुए अन्य कामों में लेने को तैयार नहीं होते। ग्रामीण पत्रकारों को प्रतियों में जो आमदनी होती है वो तो उनके हाकरों को देने के लायक भी नहीं होती तथा घर से कुछ पैसे लगाकर ही हाकर रखा जा सकता है ऐसी स्थिति में उनके समक्ष आमदनी का सबसे बड़ा साधन विज्ञापन भी रह जाता है, लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों मंे जो सबसे बड़ी दिक्कत होती है वह वर्ष भर नियमित रूप से मिलने वाले विज्ञापनों की होती है। ग्रामीण क्षेत्रों में विज्ञापन का मतलब पन्द्रह अगस्त, छब्बीस जनवरी, और दीपावली ही होता है जिसमें ग्रामीण पत्रकारों को कुछ विज्ञापन नसीब होते हैं। इसके अतिरिक्त आजकल सांसद, विधायक अथवा प्रमुख नेताओं के जन्मदिवस, पुण्यतिथि, शाला प्रवेशोत्सव और बाबा साहेब डा. भीमराव अंबेडकर तथा गुरूघासीदास बाबा जयंती जैसे कुछ अन्य अवसरों पर भी विज्ञापन प्राप्त होने लगे हैं।
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ग्रामीण पत्रकारों को मिलने वाले ये वो विज्ञापन होते हैं जो किसी संस्थान के नाम पर कम और पत्रकारों की खुद की छवि के आधार पर ज्यादा प्राप्त होते हैं। सही तरीके से कार्य करने पर ब्लाक अथवा तहसील स्तर का पत्रकार भी अपने नाम के सहारे कम से कम 50 हजार का विज्ञापन प्राप्त कर लेता है। बड़े बैनरों में इन पत्रकारों के इसके एवज मेें दस से पन्द्रह प्रतिशत तक ही कमीशन प्राप्त होते हैं अर्थात 50 हजार के विज्ञापन करने पर उन्हें साढ़े सात हजार रूपए तक आय प्राप्त हो सकते हैं वो भी पूरे 100 प्रतिशत वसूली होने के बाद। साल में ऐसे तीन ही अवसर आते हैं पहला छब्बीस जनवरी, फिर स्वतंत्रता दिवस और फिर दीपावली मतलब विज्ञापन को लेकर उस ग्रामीण पत्रकार की पूरी आमदनी 22 हजार से 25 हजार वार्षिक की ही होती है उसमें भी पेट्रोल और मोबाईल का खर्चा उसका खुद का। जाहिर सी बात है ऐसी स्थिति में पत्रकार का खुद का पाकिट खर्च ही निकल पाना मुश्किल होता है, घर परिवार को पालना और सूखी रखना तो बहुत दूर की बात है। ऐसी स्थिति में पत्रकारों के समक्ष सबसे अच्छी स्थिति पेज खरीदने की रहती है।
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क्या होता है पेज खरीदना
पेज खरीदने से आशय किसी पेज में विज्ञापन छापने के लिए बोली लगाने से है। अधिकांश मीडिया संस्थान आजकल अपने प्रतिनिधियों को इस तरह की पेज एक निश्चित राशि लेकर दे-दे रहे हैं।
क्या होता है फायदा
आम तौर पर मीडिया में जो विज्ञापन लगते हैं उसमें विज्ञापन प्रकाशित होने के बाद संबंधित कस्टमर को विज्ञापन की बिल थमाई जाती है जिसके बाद विज्ञापन की राशि का भुगतान किया जाता है, कुछ स्थानों पर विज्ञापन का भुगतान हफ्ते भर के भीतर हो जाता है वहीं अधिकांश मामलों में इसके लिए महीने से लेकर वर्ष भर का इंतजार करना पड़ता है, पेज बेचने के मामले में मीडिया संस्थान अपने उस प्रतिनिधि से उस पेज की राशि एडवांस में लेता है जिससे उसे नगद राशि तुरंत प्राप्त हो जाती है वहीं प्रतिनिधियों का ये फायदा होता है कि उस पेज को एक निश्चित राशि में खरीदने के बाद वो उसमंे जितनी राशि का चाहे विज्ञापन लगा सकता है। हालांकि ऐसे मामलांे में अपने संस्थान को नगद भुगतान करना पड़ता है लेकिन अधिकांश मामलों मंे आमदनी सामान्य आमदनी से बहुत ज्यादा होती है।
ऐसे समझे पेज खरीदने के गणित को
दैनिक समाचार पत्र छत्तीसगढ़ एक्सप्रेस में वर्तमान में विज्ञापन का बेसिक दर 35 रूपए वर्ग सेंटीमीटर अथवा 140 रूपए कालम सेंटीमीटर है जिसके आधार पर एक पेज में लगे विज्ञापन का मूल्य 54 हजार रूपए होता है, दो पेज मतलब 1 लाख आठ हजार रूपए। विज्ञापनदाताओं के द्वारा मोलभाव की स्थिति में इसमें 19-20 संभव है। अब हम किसी ब्लाक संवाददाता की बात करते हैं जिसके अपने ब्लाक मुख्यालय में आने वाले सभी सरपंच तथा सचिवों से बेहतर संबंध है। अमूमन हर ब्लाक में 50 से 100 तक ग्राम पंचायत शामिल रहती है। यहां हम 50 पंचायतांें वाले ब्लाक की बात करते हैं। ग्रामीण संवाददाता 50 सरपंचों से दो-दो हजार रूपए के विज्ञापन लेता है तो उसकी राशि एक लाख होती है। अब इन दो पेजों में सीधे विज्ञापन देने पर उसे एक लाख रूपए संस्थान को देना होता है तथा 25 हजार रूपए ग्रामीण संवाददाता के लिए बचते हैं। वहीं संवाददाता अगर इन पेजों को हमें नगर राशि देकर खरीद लेता है तो अपने ग्रामीण संवाददाताआंे की बेहतरी के लिए हम 15 हजार रूपए में अपने संवाददाता को यह पेज उपलब्ध करा देते हैं ऐसी स्थिति में इन दो पेजों में उसके सभी विज्ञापन आ जाते हैं तथा वो पंचायतों से दो-दो हजार ही लेता है लेकिन उसे हमें 30 हजार ही देने होते हैं तथा शेष 70 हजार उसके खुद के होते हैं।
तो है ना पेज खरीदना ग्रामीण पत्रकारों के लिए फायदे का काम। किसी प्रमुख अवसर पर देश भर के हमारे ग्रामीण पत्रकार अपने विज्ञापन को दैनिक छत्तीसगढ़ एक्सप्रेस में लगवाने चाहे तो वो हमें मोबाईल नंबर 7489405373 पर संपर्क कर सकते हैं।
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पत्रकारों की आय के मामले में मुझे वेतनभोगी और गैरवेतन भोगी पत्रकारों में एक बड़ा अंतर दिखाई पड़ा, ये अंतर शहरी और ग्रामीण होने के कारण भी देखा गया। रायपुर-बिलासपुर जैसे शहरों के लगभग अधिकांश पत्रकार वेतनभोगी होते हैं जिन्हें अपने काम के एवज में अपने संस्थानों से एक निश्चित राशि प्रतिमाह प्राप्त होती है वहीं इन जिला मुख्यालयों से परे ग्रामीण इलाकों, तहसील और ब्लाक मुख्यालयों में जो पत्रकार काम करते हैं वो काम तो पत्रकारों का करते हैं लेकिन मीडिया संस्थान इन्हें अपना एजेंट मानते हैं जो कि एक निश्चित राशि देकर उस क्षेत्र में उस संस्थान के प्रतिनिधि के रूप में कार्य कर रहे होते हैं। काम के दौरान पत्रकारों के समक्ष किस प्रकार की चुनौतियां आती है इसका अध्ययन करना हो तो इनके करीब जाकर इन्हें जानने समझने से सारी स्थिति स्पष्ट हो जाती है। ऐसे लोग ज्यादातर ग्रामीण क्षेत्रों से होते हैं इसलिए हम इन्हें ग्रामीण पत्रकार के रूप में भी परिभाषित कर सकते हैं। ऐसे लोेगों को अपने क्षेत्र में संबंधित अखबारों की प्रतियों का वितरण करना होता है तथा समाचार और विज्ञापन प्राप्त करना होता है। प्रतियों और विज्ञापन में इन्हें कमीशन प्राप्त होते हैं जो कि संस्थान के हिसाब से 10 प्रतिशत से प्रारंभ होकर 50 प्रतिशत तक हो सकती है। मेरे हिसाब से ग्रामीण क्षेत्र में पत्रकारिता आज भी जोखिम भरा काम होता है क्योकि इसमें मान-सम्मान तो खूब मिलता है लेकिन उनकी यही खूबी भविष्य में कई स्थानों पर उनके लिए घातक साबित होती है क्यांेकि युवा अवस्था में पत्रकार के रूप में पहचान बना चुके ये लोग जब पर्याप्त आमदनी नहीं होने पर किसी अन्य पेशे को अपनाना चाहते हैं तो लोग इन्हें पत्रकार मानते हुए अन्य कामों में लेने को तैयार नहीं होते। ग्रामीण पत्रकारों को प्रतियों में जो आमदनी होती है वो तो उनके हाकरों को देने के लायक भी नहीं होती तथा घर से कुछ पैसे लगाकर ही हाकर रखा जा सकता है ऐसी स्थिति में उनके समक्ष आमदनी का सबसे बड़ा साधन विज्ञापन भी रह जाता है, लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों मंे जो सबसे बड़ी दिक्कत होती है वह वर्ष भर नियमित रूप से मिलने वाले विज्ञापनों की होती है। ग्रामीण क्षेत्रों में विज्ञापन का मतलब पन्द्रह अगस्त, छब्बीस जनवरी, और दीपावली ही होता है जिसमें ग्रामीण पत्रकारों को कुछ विज्ञापन नसीब होते हैं। इसके अतिरिक्त आजकल सांसद, विधायक अथवा प्रमुख नेताओं के जन्मदिवस, पुण्यतिथि, शाला प्रवेशोत्सव और बाबा साहेब डा. भीमराव अंबेडकर तथा गुरूघासीदास बाबा जयंती जैसे कुछ अन्य अवसरों पर भी विज्ञापन प्राप्त होने लगे हैं।
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ग्रामीण पत्रकारों को मिलने वाले ये वो विज्ञापन होते हैं जो किसी संस्थान के नाम पर कम और पत्रकारों की खुद की छवि के आधार पर ज्यादा प्राप्त होते हैं। सही तरीके से कार्य करने पर ब्लाक अथवा तहसील स्तर का पत्रकार भी अपने नाम के सहारे कम से कम 50 हजार का विज्ञापन प्राप्त कर लेता है। बड़े बैनरों में इन पत्रकारों के इसके एवज मेें दस से पन्द्रह प्रतिशत तक ही कमीशन प्राप्त होते हैं अर्थात 50 हजार के विज्ञापन करने पर उन्हें साढ़े सात हजार रूपए तक आय प्राप्त हो सकते हैं वो भी पूरे 100 प्रतिशत वसूली होने के बाद। साल में ऐसे तीन ही अवसर आते हैं पहला छब्बीस जनवरी, फिर स्वतंत्रता दिवस और फिर दीपावली मतलब विज्ञापन को लेकर उस ग्रामीण पत्रकार की पूरी आमदनी 22 हजार से 25 हजार वार्षिक की ही होती है उसमें भी पेट्रोल और मोबाईल का खर्चा उसका खुद का। जाहिर सी बात है ऐसी स्थिति में पत्रकार का खुद का पाकिट खर्च ही निकल पाना मुश्किल होता है, घर परिवार को पालना और सूखी रखना तो बहुत दूर की बात है। ऐसी स्थिति में पत्रकारों के समक्ष सबसे अच्छी स्थिति पेज खरीदने की रहती है।
इसे भी पढ़ें : प्रिंट मीडिया में एक बेहतरीन ब्रांड के साथ काम करने का बेहतर अवसर
क्या होता है पेज खरीदना
पेज खरीदने से आशय किसी पेज में विज्ञापन छापने के लिए बोली लगाने से है। अधिकांश मीडिया संस्थान आजकल अपने प्रतिनिधियों को इस तरह की पेज एक निश्चित राशि लेकर दे-दे रहे हैं।
क्या होता है फायदा
आम तौर पर मीडिया में जो विज्ञापन लगते हैं उसमें विज्ञापन प्रकाशित होने के बाद संबंधित कस्टमर को विज्ञापन की बिल थमाई जाती है जिसके बाद विज्ञापन की राशि का भुगतान किया जाता है, कुछ स्थानों पर विज्ञापन का भुगतान हफ्ते भर के भीतर हो जाता है वहीं अधिकांश मामलों में इसके लिए महीने से लेकर वर्ष भर का इंतजार करना पड़ता है, पेज बेचने के मामले में मीडिया संस्थान अपने उस प्रतिनिधि से उस पेज की राशि एडवांस में लेता है जिससे उसे नगद राशि तुरंत प्राप्त हो जाती है वहीं प्रतिनिधियों का ये फायदा होता है कि उस पेज को एक निश्चित राशि में खरीदने के बाद वो उसमंे जितनी राशि का चाहे विज्ञापन लगा सकता है। हालांकि ऐसे मामलांे में अपने संस्थान को नगद भुगतान करना पड़ता है लेकिन अधिकांश मामलों मंे आमदनी सामान्य आमदनी से बहुत ज्यादा होती है।
ऐसे समझे पेज खरीदने के गणित को
दैनिक समाचार पत्र छत्तीसगढ़ एक्सप्रेस में वर्तमान में विज्ञापन का बेसिक दर 35 रूपए वर्ग सेंटीमीटर अथवा 140 रूपए कालम सेंटीमीटर है जिसके आधार पर एक पेज में लगे विज्ञापन का मूल्य 54 हजार रूपए होता है, दो पेज मतलब 1 लाख आठ हजार रूपए। विज्ञापनदाताओं के द्वारा मोलभाव की स्थिति में इसमें 19-20 संभव है। अब हम किसी ब्लाक संवाददाता की बात करते हैं जिसके अपने ब्लाक मुख्यालय में आने वाले सभी सरपंच तथा सचिवों से बेहतर संबंध है। अमूमन हर ब्लाक में 50 से 100 तक ग्राम पंचायत शामिल रहती है। यहां हम 50 पंचायतांें वाले ब्लाक की बात करते हैं। ग्रामीण संवाददाता 50 सरपंचों से दो-दो हजार रूपए के विज्ञापन लेता है तो उसकी राशि एक लाख होती है। अब इन दो पेजों में सीधे विज्ञापन देने पर उसे एक लाख रूपए संस्थान को देना होता है तथा 25 हजार रूपए ग्रामीण संवाददाता के लिए बचते हैं। वहीं संवाददाता अगर इन पेजों को हमें नगर राशि देकर खरीद लेता है तो अपने ग्रामीण संवाददाताआंे की बेहतरी के लिए हम 15 हजार रूपए में अपने संवाददाता को यह पेज उपलब्ध करा देते हैं ऐसी स्थिति में इन दो पेजों में उसके सभी विज्ञापन आ जाते हैं तथा वो पंचायतों से दो-दो हजार ही लेता है लेकिन उसे हमें 30 हजार ही देने होते हैं तथा शेष 70 हजार उसके खुद के होते हैं।
तो है ना पेज खरीदना ग्रामीण पत्रकारों के लिए फायदे का काम। किसी प्रमुख अवसर पर देश भर के हमारे ग्रामीण पत्रकार अपने विज्ञापन को दैनिक छत्तीसगढ़ एक्सप्रेस में लगवाने चाहे तो वो हमें मोबाईल नंबर 7489405373 पर संपर्क कर सकते हैं।
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