कहानी: राजेश सिंह क्षत्रीआसमान से टपकती बारिश की रिमझिम फुहारें गुलाब के पत्तों पर पड़ मोतियों के समान बारीक टुकड़ों में बंट भूमि पर झर रहे थे। बारिश की इन चंचल बूंदों की तरह ही तो है उसकी आंखें, बड़ी अजीब सी कशिश है उन आंखों में, एक बार वो जी भर कर देख ले तो सीधा दिल के भीतर तक उतरते चली जाती है। उसकी मासूम आंखे जब भी मुझे देखती भोले बाबा की कसम हर बार उस पर मर मिटने को जी चाहता। कुछ तो खास है उसकी आंखों में जब भी उनसे नजरें मिलती एक नशा सा छा जाता, उसकी मदहोश आंखें देख मैं खुद को संभाल नहीं पाता, लाख कोशिश करता उससे कुछ न कंहू, पर न जाने क्या क्या कह जाता। अभी पिछले बरस की ही तो बात है, अक्टूबर का महीना था, बारिश का मौसम जैसे बीत चुका था, पर ठंड अभी प्रारंभ भी नहीं हो पायी थी। दोपहर के लगभग दो बजे का वक्त रहा होगा। मांगलिक भवन में आयोजित एक घरेलू कार्यक्रम में मैं अपनी धुन में इधर से उधर भागे जा रहा था इसी बीच जब मैं उसके पास से गुजरा तब पहली बार उसकी आंखों की कशिश मुझे अपनी ओर खिंचती हुई महसूस हुई। मैं अपनी धुन में मगन उसे नजरअंदाज कर आगे बढ़ गया। दिन बीती, रात आ गई। मैं बिस्तर पर लेट आंखें बंद कर सोने की कोशिश कर ही रहा था कि एक बार फिर बरसात के दिनों में पहाड़ की चोटी से गिरते चंचल झरने की तरह उसकी आंखों की खूबसूरती मुझे अपने आस पास महसूस होने लगी। उसको याद करने भर से ही मन रोमांचित हो उठा, वहीं होठों पर भी अनायास ही मुस्कान तैर उठी। दोपहर के समय जब मैं उसके पास से गुजर रहा था, तब पहली बार उसे अपनी ओर देखते हुए पाया। वहां मेरा काम ही कुछ ऐसा था कि मुझे अर्धचन्द्राकार अवस्था में उसके आधे चक्कर लगाने पड़ गए, इस बीच मुझे अपलक निहारती मेरे साथ साथ ही घुमती हुई उसकी चंचल आंखें जैसे मेरे दिल की गहराइयों में उतरते चली गई। उसकी कंधे से कुछ नीचे तक लटकते खुले हुए बाल, और गालों को चुमती हुई उसकी लटें मुझे स्कूल के दिनों की याद दिलाने लगी। उन दिनों जब कभी तस्वीर बनाने का मन होता, मैं कुछ मिनटों में अपनी रफ कापी के आखरी पन्नों पर या फिर फटे हुए किसी कागज पर एक लडक़ी की तस्वीर उकेरता जो बिल्कुल ऐसे ही तो दिखती थी । इन चंचल नैनों से मैं जितना पीछा छुड़ाने की कोशिश करता वो मुझे उतना ही ज्यादा अपनी ओर खींचती महसूस होती। नैना की नैनों को याद करते निंदिया रानी कब मेरे नैनों में सवार हो गई पता ही नहीं चला। सुबह जब नैना से मुलाकात हुई वो हमेशा की तरह ही बेहद खूबसूरत लग रही थी, सचमुच ऊपर वाले ने उसे बहुत ही फुर्सत से बनाया था, फूल, खुशबू, झील, चांद, इन सब का अक्स मानों उसमें समाया था। मैंने झट उसके सामने दोस्ती का प्रस्ताव रखते हुए कहा, मुझसे दोस्ती करोगेे। वों बिना कुछ कहे आगे बढऩे लगी तो मैंने जोर देकर फिर कहा, प्लीज मेरे दोस्त बन जाओ न नैना ? इस बार नैना ने मुझे धमकाते हुए कहा, तुम शायद मुझे जानते नहीं हो, कौन हूं मैं ? जब तक सीधी हूं तब तक सीधी हूं। मुझे छेडऩे की कोशिश भी किए ना तो तुम्हारा वो हाल करूंगी की कंही मुंह दिखाने के लायक नहीं रहोगे और रही बात दोस्ती की, तुम क्या सलमान खान भी आकर मुझसे कहे ना तब भी मैं किसी लडक़े से दोस्ती नहीं करूंगी।
सुबह जब नैना से मुलाकात हुई वो हमेशा की तरह ही बेहद खूबसूरत लग रही थी, सचमुच ऊपर वाले ने उसे बहुत ही फुर्सत से बनाया था, फूल, खुशबू, झील, चांद, इन सब का अक्स मानों उसमें समाया था।
नैना के चेहरे को अपलक निहारते मन में विचार आया काश मैं हवा का झोंका होता तो इन खूबसूरत गालों को छूकर हल्के से सहलाते हुए निकल जाता, नैना के दिल के बेहद करीब रहने वाला कोई दोस्त होता तो वुगली-वुगली करते बड़ी जोर से इन गालों को दबाता।नैना का ये रूप मैंने पहली बार देखा था। मैं तो नैना को जंगल में खड़े साल के वृक्षों की तरह शांत ही समझता था, पर वो तो जंगल में स्वतंत्र रूप से विचरण करते जंगल की महारानी शेरनी निकली। चांद की तरह शांत नजर आने वाला उसका मासूम चेहरा गुस्से में सूरज की तरह दमकने लगा था लेकिन इससे उसकी खूबसूरती जैसे और भी ज्यादा खिल उठी थी, मन में आ रहा था जैसे मैं बार-बार खता करता रहूं, वो बार-बार इसी तरह गुस्सा करती रहे। ये नैना के नैनों का ही जादू था कि उसके धमकाने के बाद भी उसके प्रति कशिश कम होने की बजाय और भी बढ़ते जा रही थी। नैना उस दिन अकेले कहीं जा रही थी, उसका चेहरा खिले हुए गुलाब की तरह दमक रहा था तो वहीं उसके होंठ खिलती हुई कलियों के समान मुस्कुराती हुई जान पड़ रही थी। मैंने उसे आवाज देते हुए कहा, ऐ दुश्मन ...! नैना ने एकदम धीमी स्वर में बड़ी ही मासूमियत से जवाब दिया, मैं दुश्मन नही हूं न ... ! उस वक्त उसके चेहरे की चमक कुछ ऐसी थी कि उसके सामने सब कुछ जैसे फीका फीका सा नजर आने लगा, वो तो अच्छा हुआ कि उस वक्त सूर्य देव ने दिन का उजाला फैला रखा था, रात होती तो शायद उसकी खूबसूरती देख चांद भी जलकर बादलों के पीछे छिप जाता। नैना के चेहरे को अपलक निहारते मन में विचार आया काश मैं हवा का झोंका होता तो इन खूबसूरत गालों को छूकर हल्के से सहलाते हुए निकल जाता, नैना के दिल के बेहद करीब रहने वाला कोई दोस्त होता तो वुगली-वुगली करते बड़ी जोर से इन गालों को दबाता। शायद पवन देव ने मेरे मन की बात सुन ली थी। नैना के गालों को सहलाते पवनदेव को तो मैं नहीं देख पाया लेकिन उसके चेहरे पर लटकती बेपरवाह सी जुल्फें हवा के मद्धम झोंको में ही उसके गालों को चूमने झुलने लगी थी।
उस दिन जब नैना मुझे धमका रही थी तब उसकी आवाज बरसात में प्रचण्ड वेग से गिरते झरने के समान तीव्र थी, वहीं आज गर्मी के दिनों में पानी के कम हो जाने के बाद बूंद बूंद टपकती जल की धारा के समान मधुर और इतनी धीमी हो गई थी की हवा का हल्का सा शोर भी उसे कानों तक पंहुचने से जैसे रोक रही थी।नैना के खूबसूरत चेहरे पर नजर जमाए मैंने वापस उससे प्रतिप्रश्न किया, जो दोस्त न हो उसे क्या कहेंगे, दुश्मन ही न ...? अपनी नाजुक ऊंगली से चेहरे पर झुलती अपनी जुल्फों को कानों के पीछे डालते नैना फिर बोली, न मैं आपकी दोस्त, न दुश्मन ... ! उस दिन जब नैना मुझे धमका रही थी तब उसकी आवाज बरसात में प्रचण्ड वेग से गिरते झरने के समान तीव्र थी, वहीं आज गर्मी के दिनों में पानी के कम हो जाने के बाद बूंद बूंद टपकती जल की धारा के समान मधुर और इतनी धीमी हो गई थी की हवा का हल्का सा शोर भी उसे कानों तक पंहुचने से जैसे रोक रही थी। मैं नैना का दोस्त नहीं बन पाया था पर उसके हाव भाव बता रहे थे कि अब दुश्मन भी नहीं रहा था। धीरे धीरे नैना से मुलाकातें बढ़ते गई, बातें बढ़ते गई। मुझे महसूस हुआ मेरी आंखों नेे भी बड़ी अजीब सी हसरत पाल रखी है, उन्हें जागने के बाद सबसे पहले नैना को देखना होता तो सोने से पहले भी ये नैना का ही दीदार करना चाहती। सब कहते हैं कि लड़कियां बातूनी होती है, बहुत बात करती है, पर हमारा मामला इसके उलट था, यहां बक बक मैं करता था और नैना बस सुनते रहती थी। वो बहुत जरूरी होने पर ही बहुत सोच विचार कर गिने चुने शब्दों में अपनी बातें रखती थी मानो उसके शब्द बेहद कीमती हो। नैना की कई बातें इतनी गंभीर होती कि लगता ही नहीं कि वो आज के जमाने की नवयुवती है, ऐसा अहसास होता इतनी छोटी उमर में भी कई पीढ़ीयों का अनुभव उन्होंने अपने भीतर समेट रखा है। तब झरनों की तरह चंचल उसकी आंखें सागर की तरह गंभीर हो जाती, इतनी गंभीर की उसकी आवाज सुनने तक को ये कान तरस जाते। कई बार ऐसा होता था जब सिर्फ और सिर्फ वो मेरी ही बातेें सुनती, अपनी ओर से एक शब्द भी नहीं कहती। उसकी बातें सुनने की व्याकुलता में मैं उसे उकसाने की कोशिश करता लेकिन वो मौन ही साधे रहती मानों उसने मुझसे बातें न करने की कसम खा ली हो। पर जब कभी मैं उससे रूठने, नाराज होने अथवा बात नहीं करने की बात छेड़ता वह चूल्हें में चढ़े गरम दूध की तरह तुरंत ही अपनी खामोशी तोड़ देती।
उस दिन नैना बेहद खूबसुरत नजर आ रही थी, ऐसे जैसे सावन के आते ही जंगल में पंख फैलाए मोर नजर आता है। आज तो उसके मासूम चेहरे से नजर हटाना जैसे मेरे लिए मुश्किल हो रहा था, उसकी आंखों को निहारते ऐसा महसूस हो रहा था मानों पूरी मधुशाला यहीं पर आ गयी हो, उसकी आंखों का नशा धीरे-धीरे मुझे मदहोश किए जा रहा था।एक दिन मेरे किसी बकबक से परेशान हो यूं ही बोल पड़ी थी वह, तुम बात मत करना मुझसे...! तब तक नैना की मोहब्बत में जैसे मैं भी दीवाना हो गया था, ऐसा दीवाना जो उसके मुख से निकले हर शब्द को पत्थर की लकीर मान उसका पालन करे, बिना एक पल की देरी किए मैं भी बोल पड़ा, ठीक है नैना तुम अगर यही चाहते हो तो तुम्हारी कसम, आज के बाद मैं तुमसे कभी बात नहीं करूंगा ...! नैना एक बार जो सोच लेती थी, उस पर अडिग रहती, और मैं ... मैं तो नैना से मिलते ही जैसे अपना सुध बुध सब कुछ खो बैठता। इतने दिनों में नैना इतना तो समझ ही गई थी कि चाहे जो हो जाए पर मैं उसकी झूठी कसम कभी नहीं खाऊंगा, वह तुरंत बोल पड़ी, बात कर सकते हो, पर यूं अकेले में नहीं सबके सामने, ज्यादा नहीं, बस थोड़ा-थोड़ा ...! उस दिन नैना बेहद खूबसुरत नजर आ रही थी, ऐसे जैसे सावन के आते ही जंगल में पंख फैलाए मोर नजर आता है। आज तो उसके मासूम चेहरे से नजर हटाना जैसे मेरे लिए मुश्किल हो रहा था, उसकी आंखों को निहारते ऐसा महसूस हो रहा था मानों पूरी मधुशाला यहीं पर आ गयी हो, उसकी आंखों का नशा धीरे-धीरे मुझे मदहोश किए जा रहा था। यूं ही अपलक उसकी आंखों में झांकते मैंने पूछा, आपकी तारीफ करूं। इंकार में सिर इलाते हुए नैना ने कहा, मत करो, क्या कहोगे मुझे सब पता है... मैं सीआईडी में हूं न ... ! नैना की बातें सच भी थी, मेरी रोज रोज की बकबक सुनने के बाद वो मुझे इतना ज्यादा जानने लगी थी जितना मैं अपने आपको नहीं जानता था। बहुत बार तो ऐसा लगता जैसे मेरे बोलने से पहले ही उसे अहसास हो जाता है कि मैं क्या कहने वाला हूं। उसकी नशीली आंखों के मद से मदहोश मैं फिर बोल पड़ा, अरे यार एक बार सुन तो लो ...? इस तरह खुलकर यार कहने पर थोड़ा सा मुंह फुलाते हुए नैना ने कहा, मैं आपकी दोस्त नहीं हूं ना ? नैना की कमजोरी मैं समझने लगा था, मुझे परेशान देख वो मुझसे ज्यादा परेशान हो जाती थी, इतनी की कभी कभी तो उसकी तबियत भी खराब हो उठती। धीरे धीरे ही सही पर शायद नैना को भी मेरी आदत होने लगी थी तभी तो वह मुझे नाराज भी नहीं करना चाहती थी, इसलिए जानबूझकर मैंने थोड़ी सी नाराजगी का भाव प्रकट करते हुए कहा, दोस्त नहीं हो तो फिर क्या हो दु ... ?
नैना की नजरें आज अलसाई हुई थी, हल्की सी लाल और थोड़ी सी सूजी हुई भी लग रही थी, मानों वो रात भर जागी हो, रात में एक पल के लिए भी न सोई हो, और जैसे रोयी भी हो काफी देर तक।मैं दुश्मन बोल पाता इससे पहले ही मुस्कुराते हुए वो बोल पड़ी, ना मैं आपकी दोस्त, ना दुश्मन ? नैना बहुत कम बोलती, लेकिन जब भी बोलती, अपनी बातें पूरी करती। आज नैना बोल रही थी इसलिए मैंने भी उसे छेड़ते हुए कहा, ना दोस्त ना दुश्मन तो तुम्हीं बता दो तुम क्या हो ? मैं पत्थर हूं ? इस बार अपने चेहरे पर बिना कोई भाव लाए नैना एक ही सांस में बोल पड़ी। हां ऐसी पत्थर जिसकी मैं पूजा करता हूं, जिसे शायद प्यार भी करता हूं? मैं अपनी ही रौं में बहता कहता चला गया। नैना के लिए प्यार शब्द मेरे मुख से अनायास ही निकल गया था, मैं नैना को नाराज नहीं करना चाहता था इसलिए उसकी प्रतिक्रिया जानने उसकी ओर देखना चाहा तो नैना वहां नहीं थी। अपने आपको पत्थर कहने के बाद ही वह वहां से चली गयी थी। नैना की नजरें आज अलसाई हुई थी, हल्की सी लाल और थोड़ी सी सूजी हुई भी लग रही थी, मानों वो रात भर जागी हो, रात में एक पल के लिए भी न सोई हो, और जैसे रोयी भी हो काफी देर तक। आज बात करना तो दूर वो तो नजरे भी नहीं मिला रही थी। नैना का ये रूप मेरे दिल को चोटिल कर रहा था, मैं उसे इस तरह नहीं देख सकता था, मैनें बिना लाग लपेट के उससे सीधा पूछा, नैना नाराज हो मुझसे ? ना मैं किसी की दोस्त, ना दुश्मन फिर मैं क्यों किसी से नाराज रहूंगी, इतने दिनों की पहचान में पहली बार थोड़ी सी बेरूखी दिखाते हुए उसने पूरी संजीदगी से कहा। नैना की ये बेरूखी मैं सहन नहीं कर पा रहा था। मैंने कहा, मेरी उस दिन की बातों से नाराज हो न ? अपने पापा को बताना है... ? पुलिस को बताना है... ? मेरे घरवालों को बताना है...? तो बता दो न सब को। मैं खुद पुलिस को फोन कर देेता हूं ... अपने घर वालों को आपके पास लेकर आ जाता हूं, उसके सामने मेरी खूब शिकायत करना! मुझे बदनाम करना है, मुझे बरबाद करना है तो कर दो न... पर प्लीज मुझसे नाराज मत रहो न ..., प्लीज ...! मैं आपका बहुत रिस्पेक्ट करती हूं, आप निश्चितं रहो, मैं कभी किसी से आपके बारे में कुछ नहीं कहूंगी, कभी आपकी किसी से शिकायत नहीं करूंगी। नैना जैसे मुझे आश्वस्त करते हुए बोली। नैना के साथ रहने, उससे बात करने की मुझे इतनी आदत हो चुकी थी कि उसकी हल्की सी बेरूखी भी भीतर तक दिल को तोड़ दे रही थी, उसके बिना एक पल जीने की कल्पना करना भी तब बेमानी सा लगता था, नैना की बेरुखी से परेशान मैनें वापस उससे निवेदन करते हुए कहा, नैना प्लीज मान जाओ न, प्लीज यार? शायद नैना भी मुझे बेइंतहा प्यार करने लगी थी, मेरी आंखों में हल्की सी नमी देखना भी उसे गवारा नहीं था तभी तो जब वह देखी कि इससे ज्यादा में मेरी आंखों से आंसू छलक सकते हैं तुरंत अपने आपको नार्मल करते हुए वह बोल पड़ी, मैं आपसे नाराज नहीं हूं ना, पर आपसे दोस्ती नहीं कर सकती? मुझे पता है आप मुझसे दोस्ती नहीं कर सकती, नैना के होंठो पर हल्की सी मुस्कान देख मैं भी पूरी तरह नार्मल होते हुए कहा। क्यों ...? इस एक शब्द के माध्यम से वह बहुत कुछ समझने की कोशिश करते हुए एकदम गंभीर होकर बोली। क्योंकि एक बार जब किसी से प्यार हो जाए फिर उसके बाद उससे दोस्ती नहीं होती। नैना की नजरों से नजरें मिलाते हुए मैंने अपने दिल की बात कह दी। कुत्ता पालो, बिल्ली पालो पर वहम मत पालो। मैं किसी से प्यार नहीं करती, किसी की दोस्त भी नहीं हूं। किसी का दिल दुखाना मुझे अच्छा नहीं लगता है। मुझसे नजरें चुराते हुए नैना दूसरी ओर देखते हुए बोली। एक पल पहले तक मेरी बेहद परवाह करते हुए नजर आ रही नैना को अनायास क्या हो गया था ये मैं भी नहीं समझ पाया। पर मैं तो करता हूं ना, मैं तुमसे बेइंतहा प्यार करता हूं ... इतना कहते कहते मेरा गला रूंधने लगा, मन में आया कि मैं नैना से कहूं, नैना तुम तो सीआईडी हो ना, हर चीज में तुम्हें सबूत चाहिए, एक बार मेरा दिल चीर कर देखो नैना, इसमें बस तुम्हारी ही तस्वीर नजर आएगी। पर मेरे ये शब्द जैसे मेरे हलक में ही अटक कर रह गए। मैं धीमे शब्दों में आई लव यू नैना ... बस इतना ही कह पाया। कभी नैना से सिर्फ दोस्ती की बात कहने भर से ही उसका चेहरा गुस्से से लाल हो गया था, पर आज इतना सब सुनने के बाद भी उसके चेहरे पर कोई भाव नहीं थे, न मोहब्बत के भाव... न नफरत के भाव... न खुशी के भाव ... न गम के भाव ...। नैना को गंभीरता से अपनी बातें सुनते मैंने कई बार देखा था तब नैना के होंठों पर हल्की-हल्की मुस्कान तैरते रहती थी, पर आज ... आज तो उसके होंठों से जैसे वो मुस्कान भी रूठ कर कहीं चली गई थी। नैना को इतना गंभीर मैंने पहले कभी नहीं देखा था। आज पहली बार नैना की खामोशी से मुझे डर लग रहा था। मन में आ रहा था नैना मुझसे प्यार न करें, न सही। वो मुझ पर चिखे ... चिल्लाए ... अपने मन की सारी भड़ास मुझ पर निकाल दे ... कुछ तो बात करे वह, लेकिन इस तरह खामोश मत रहे। नैना के जीवन में कुछ तो ऐसा था जो उसके लिए मेरे प्यार से भी बहुत बड़ा था। जिसके सामने मेरा प्यार भी बहुत बौना था, बहुत तुच्छ था। शायद सच कह रही थी नैना, पत्थर थी वो ...! पत्थर दिल ...! नैना के बिना एक-एक पल भारी लगनेे लगा था, जब किसी चीज में मन नहीं लगा तो कदम खुद ब खुद भोलेनाथ से प्रार्थना करने मंदिर की ओर चल पड़े। नैना वहां पहले से मौजूद थी जो अपने दोनों हाथ जोड़ अपने घुटने के बल बैठ भगवान शंकर से कह रही थी, बाबा इस तरह से आप मुझे दुविधा में मत डालो न .. ? आप तो जानते हो न, मेरे माता पिता मुझ पर कितना विश्वास करते हैं, कितना भरोसा है उनका मुझ पर... मैं अपने परिवार, अपने माता-पिता के भरोसे को कैसे तोड़ दूं बाबा ...। ये दुनिया, ये समाज के लोग मेरे माता पिता को क्या कहेंगे? प्लीज ... इस तरह से मुझे दुविधा में मत डालो बाबा ... प्लीज... !
कहते हैं ना, इबादत के समय बोला नहीं करते इसलिए मन हो रहा था बस खामोश रहकर उसे इसी तरह देखता रहूं। उसकी जुल्फें उसके चेहरे पर कुछ इस तरह से परदा किए हुए थी मानों अंधेरी रात में बादलों ने चांद को छिपा लिया हो।नैना बाबा भोलेनाथ की भक्ति में इतना लीन थी कि उसे मेरे वहां पर होने का अहसास तक नहीं हुआ। मैं बाबा भोलेनाथ और नैना की भक्ति के बीच में नहीं आना चाहता था, वैसे भी मुझे मेरे सवालों के जवाब मिल चुके थे। नैना से तो वैसे ही मुझे कभी कोई शिकायत नही रही, अब तो भगवान भोलेनाथ से भी कोई शिकायत नहीं रह गयी थी। मैं वहीं से बाबा भोलेनाथ को प्रणाम कर चुपचाप वापस लौट आया। नैना धीरे धीरे चलती हुई मंदिर से वापस लौट रही थी, वो अपने में इतना गुम थी कि मेरे पास से गुजरते हुए भी उसे मेरे पास में होने का अहसास तक नहीं हो रहा था। उसकी दशा कुछ ऐसी थी मानों साजों श्रृंगार को उन्होंने कई दिनों से हाथ भी नहीं लगाया हो, लेकिन उसकी ये सादगी भी किसी खूबसूरत दुल्हन के सोलह श्रृंगार पर भारी थे। कहते हैं ना, इबादत के समय बोला नहीं करते इसलिए मन हो रहा था बस खामोश रहकर उसे इसी तरह देखता रहूं। उसकी जुल्फें उसके चेहरे पर कुछ इस तरह से परदा किए हुए थी मानों अंधेरी रात में बादलों ने चांद को छिपा लिया हो। एक पल को मन में आया मैं नैना से कहूं जो वो अपने घर-परिवार, माता-पिता और समाज के बारे में सोच रही है न, वो रिस्पेक्ट है ... और वो जो मुझसे करती है वही प्यार है ... सच्चा प्यार ...। कहने को तो नैना से दिल और भी बहुत कुछ कहना चाहता था, वैसे भी नैना से कहने को इतनी बातें थी कि नैना पूरी उम्र मेरी बातें सुनती रहे तब भी मेरी बातें खतम ही न हो, पर आज नैना वो सब सुनने की स्थिति में नहीं लग रही थी। मैंने धीरे से नैना का नाम लेकर पुकारा, वह ठिठककर रूक गई। उसकी आँखों से बाहर निकलने को छटपटाती आंसू की बूंदों में खुद को ढूंढने की कोशिश करते हुवे मैंने कहा, नैना आज के बाद मैं तुम्हें फिर कभी परेशान नहीं करूंगा। हो सकता है आज तुम्हें अपने प्यार का अहसास नहीं हो रहा हो ... हो सकता है इसका अहसास तुम्हें दो-चार दिन बाद हो ... हो सकता है दो-चार माह बाद या फिर या दो चार साल बाद हो ... हो सकता है मेरे जीते जी तुम्हें इस बात का अहसास न हो, मेरे मरने के बाद हो ... पर मैं अपनी अंतिम सांस तक तुम्हारे प्यार का इंतजार करूंगा। इतना कह मैं आगे निकल आया। पीछे पलट तब नैना को देखने की हिम्मत नहीं रह गई थी मुझमें।
वो गुलाब सा खिला हुआ चेहरा, वो कलियों के समान नजर आते खूबसूूरत होंठ, वो मदहोश कर देने वाली आंखें ... वों आंखे जो मुझे अब भी निहार रही है तिरछी नजरों से... जैसे उस दिन निहार रही थी, उस मांगलिक भवन में ... जो मेरे साथ ही घूम जा रही थी ... जैसे वो कोई जादूगर हो, जैसे उन नैनों में कोई जादू हो।नैना से मिले सात दिन बीत गए हैं, अब तक उसकी ओर से कोई जवाब नहीं आया है, शायद अब तक उसे अपने प्यार का अहसास नहीं हुआ है या फिर वो मुझसे अपने प्यार को जताना ही नहीं चाहती। मैंने भी अपनी ओर से नैना की कोई खोज खबर नहीं की है। पहले कुछ पल भी नैना को नहीं देख पाता तो मन बेचैन हो उठता, ऐसा लगता मानो नैना के बिना एक दिन तो क्या एक पल भी मैं नहीं जी पाऊंगा, पर मैं अब भी जी रहा हूँ, मरना तो दूर हल्का सा बुखार तक नहीं आया मुझे। इधर बारिश थमने के बाद अब मौसम भी साफ हो चुका है, हल्की-हल्की सूर्य की किरणें धरती पर पडऩे लगी है, इन किरणों को देख ऐसा अहसास हो रहा है मानों दूर कहीं बैठ नैना मुस्कुरा रही है। नैना की याद आते ही मन पुनरू रोमांचित हो उठा, उसके साथ गुजरे हुए पल एक एक कर आंखों के सामने आने लगे, उसकी एक-एक बातें याद आने लगी। वो गुलाब सा खिला हुआ चेहरा, वो कलियों के समान नजर आते खूबसूूरत होंठ, वो मदहोश कर देने वाली आंखें ... वों आंखे जो मुझे अब भी निहार रही है तिरछी नजरों से... जैसे उस दिन निहार रही थी, उस मांगलिक भवन में ... जो मेरे साथ ही घूम जा रही थी ... जैसे वो कोई जादूगर हो, जैसे उन नैनों में कोई जादू हो।