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Mono Dainik Chhattisgarh Express |
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दैनिक छत्तीसगढ़ एक्सप्रेस का हेडर सामने आया - Mono Dainik Chhattisgarh Express
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दैनिक समाचार पत्र छत्तीसगढ़ एक्सप्रेस Chhattisgarh Express को विज्ञापन मैनेजर की आवश्यकता है
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ग्रामीण पत्रकारों के लिए बंपर दीपावली आफर
दीपावली खुशियों का त्यौहार है। माना जाता है कि दीपावली के अवसर पर घर में लक्ष्मी की बरसात होती है। ग्रामीण क्षेत्रों में बसने वाले पत्रकारों को लगता है कि यह बरसात उनके अपने समाचार पत्र में शहर में बसने वाले पत्रकारों के घर पर ही होती है और लक्ष्मी उनके घर को छोड़ देती है। लेकिन अब ग्रामीण पत्रकार चाहे तो अपने घर पर भी लक्ष्मी की बरसात कर सकते हैं।
आज व्यावसायिकता की दौड़ में एक पत्रकार को विज्ञापन भी करने होते हैं। ग्रामीण पत्रकारों की तो आजीविका का मुख्य साधन ही यह विज्ञापन ही होता है क्योंकि उनके समाचार पत्र उन्हें किसी भी प्रकार का मानदेय अथवा वेतन पत्रकारिता के एवज में नहीं देते। माना जाता है कि ग्रामीण क्षेत्रों में जो भी विज्ञापन निकलता है वह पत्रकार के बैनर को देख के कम मिलता है और पत्रकार के व्यक्तिगत संबंधों के चलते ज्यादा मिलता है। ग्रामीण पत्रकार इन विज्ञापनों को लाने के लिए काफी मेहनत करता है और उसके एवज में उसे विज्ञापन की एक छोटी सी राशि लगभग पन्द्रह प्रतिशत तक कमीशन के रूप में मिलता है। ऐसे पत्रकार इस दीपावली में थोड़ा सा रिस्क ले और अपने विज्ञापन छत्तीसगढ़ एक्सप्रेस के साथ साझा करे तो उनके घर में इस दीपावली लक्ष्मी की बरसात हो सकती है। ग्रामीण पत्रकार चाहे तो थोड़े से रिस्क से उन्हें 75 प्रतिशत तक की राशि उन्हें प्राप्त हो सकती है। इसके लिए ग्रामीण पत्रकार दैनिक समाचार पत्र छत्तीसगढ़ एक्सप्रेस में बहुत ही कम दामों में एडवांस देकर अपने पेज बुक करवा ले और फिर उन पेजों में जितने के चाहे विज्ञापन लगवाएं। ऐसा कर वो अपने द्वारा लाए गए कुल विज्ञापन का 75 प्रतिशत राशि स्वयं प्राप्त कर सकते हैं। विज्ञापन का प्रकाशन होने के बाद आप उस पेज में छपे विज्ञापनों की जितनी-जितनी राशि का बिल चाहेंगे वह कंपनी आपको दे देगी जिससे कि आप अपने विज्ञापनदाताओं से उतनी राशि ले सकते हैं। विज्ञापन के प्रकाशन के बाद उसे आप तक पंहुचाने की जवाबदारी भी छत्त्तीसगढ़ एक्सप्रेस की रहेगी। दैनिक छत्तीसगढ़ एक्सप्रेस (Dainik Chhattisgarh Express) में पेज बुक करने के लिए संपादक से उनके मोबाईल नंबर 7489405373 पर संपर्क किया जा सकता है।
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2016 में दैनिक छत्तीसगढ़ एक्सप्रेस के दो और संस्करण होंगे प्रकाशित
छत्तीसगढ़ के जांजगीर-चांपा जिले से प्रकाशित दैनिक समाचार पत्र छत्तीसगढ़ एक्सप्रेस के दो और संस्करण के प्रकाशन की तैयारियां प्रारंभ हो गई है। आगामी एक वर्ष के भीतर छत्तीसगढ़ एक्सप्रेस के दो और संस्करण प्रकाशित होने प्रारंभ हो जायेंगे। छत्तीसगढ़ एक्सप्रेस के संपादक राजेश सिंह क्षत्री ने बताया कि सितंबर 2015 में दैनिक समाचार पत्र छत्तीसगढ़ एक्सप्रेस का प्रकाशन जांजगीर से प्रारंभ किया गया जिसे जनता का बेहतर प्रतिसाद मिला। वरिष्ठ पत्रकार अरूण कुमार बंछोर छत्तीसगढ़ एक्सप्रेस के रायपुर ब्यूरो, रतन जैसवानी बिलासपुर संभागीय ब्यूरो और उमेश डहरिया इसके कोरबा ब्यूरो हैं। जांजगीर के बाद छत्तीसगढ़ एक्सप्रेस का अगला संस्करण छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से प्रारंभ करने की योजना है जिस पर कार्य भी प्रारंभ हो गया है वहीं इसके बाद बिलासपुर, रायगढ़, कोरबा अथवा बस्तर में इसका तीसरा संस्करण प्रारंभ किया जाएगा। दिसंबर 2016 तक छत्तीसगढ़ से दैनिक छत्तीसगढ़ एक्सप्रेस के दो और संस्करणों का प्रकाशन प्रारंभ हो जाएगा।
राजेश सिंह क्षत्री
संपादक, छत्तीसगढ़ एक्सप्रेस
मो. 7489405373
ईमेल - dainikchhattisgarhexpress@gmail.com
राजेश सिंह क्षत्री
संपादक, छत्तीसगढ़ एक्सप्रेस
मो. 7489405373
ईमेल - dainikchhattisgarhexpress@gmail.com
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New year 2016 Calendar - नव वर्ष 2016 कैलेंडर
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टेक्नोलाजी के कमाल से बेसुरों को मिलेगा मौका: अभिजीत
अभिजीत से खास मुलाकात
जांजगीर-चांपा/छत्तीसगढ़ एक्सप्रेस
जाज्वल्यदेव लोक महोत्सव में स्टार नाइट में प्रस्तुति देने मुंबई से पहुंचे अभिजीत ने सर्किट हाऊस में कार्यक्रम से पहले कहा कि हिंदी फिल्मो के गाने और संगीत पर लगातार बदलाव आ रहा है, लेकिन हर दौर में अच्छा और बुरा होता है। उनके समय में भी लोग कहते थे कि केएल सहगल का जमाना अच्छा है। उन्होंने कहा कि बहुत से लोग उनको और उनकी गायकी को पसंद करते है पर बहुत से लोग ऐसे भी जो पसंद नहीं करते पर ऐसे लोगों की परवाह किए बगैर वे काम कर रहे है। अभिजीत ने कहा कि आज संगीत और गायकी का ऐसा दौर है कि लोग आते है और जाते है। ऐसे में कुछ अच्छे कलाकारों की अहमियत बरकरार है। उन्होंने कहा कि किशोर कुमार के समय में ही उन्होंने उन सा बनने का सपना देखा था और उनके समय में ही उन्होंने गाना प्रारंभ कर दिया था। अभिजीत ने बताया कि जब भी कभी उनके पास छत्तीसगढ़ से किसी शो का आफर आता है तो वे प्राथमिकता में लेते है। क्योंकि जबलपुर में उनके ताऊ रहते थे तथा अविभाजित मध्यप्रदेश में वे वहां काफी वक्त बीताते थे जिससे उन्हें इस क्षेत्र से बचपन से ही लगाव रहा है। उन्होंने कहा कि छत्तीसगढ़ व बंगाल उनके दो सबसे पसंदीदा स्थान है। अभिजीत ने बताया कि छत्तीसगढ़ बनने के बाद बनी पहली फिल्म में उन्होंने छत्तीसगढ़ी गाना गा चुके हैं। तथा वे तीन साल से लगातार छत्तीसगढ़ में कहीं न कहीं किसी न किसी कार्यक्रम में प्रस्तुति देने पहुंच रहे है। कंट्रोवर्सी में अभिजीत ने कहा कि नरेन्द्र मोदी व राहुल गांधी जैसे लोगों के साथ भी कंट्रोवर्सी जुड़ा है, लोग महात्मा गांधी और नेताजी का नाम भी जोड़ते रहते हैं ऐसे में अगर अभिजीत के साथ कोई कंट्रोवर्सी होती है तो इसमें क्या खास बात है। उन्होंने छत्तीसगढ़ के बारे में कहा कि यहां आज भी लोगों ने अपने संस्कार बचा के रखा है। बचपन में वो भी मां-पिताजी के साथ मेला घूमने जाते थे तथा मक्खी लगे खाजा-गुड़ को खा लेते थे तथा घर पंहुचकर मार भी खाते थे।
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बादशाह से आल द बेस्ट तक अभिजीत के 20 गीतों से झूमे श्रोता
मैं कोई ऐसा गीत गाऊं के आरजू जगाऊं अगर तुम कहो
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जांजगीर-चांपा/छत्तीसगढ़ एक्सप्रेसट्वंटी-ट्वंटी के अंदाज में स्टेज पर उतरे बालीवुड सिंगर अभिजीत भट्टाचार्य ने अपने ट्वंटी गीतों के माध्यम से जांजगीर के श्रोताओं का मन मोह लिया। बादशाह मैं बादशाह गाने से अभिजीत ने अपने गीतों का सफर प्रारंभ किया तो वह 20-20 के आखिरी गीत आल द बेस्ट पर समाप्त हुआ। कायक्रम की खासियत यह रही कि अभिजीत ने यहां अपने अलावा किशोर कुमार के गाने की भी हैट्रिक पूरी की।
जाज्वल्यदेव लोक महोत्सव एवं एग्रीटेक कृषि मेला के पहले दिन बालीवुड पाश्र्व गायक अभिजीत के गीतों ने जिले के श्रोताओं को झूमने पर मजबूर कर दिया वहीं जिले के शांत श्रोताओं को देखकर अभिजीत भी गदगद होते रहे। कुछ एक मौकों को छोड़कर अभिजीत भी पूरे कार्यक्रम का लुत्फ उठाते रहे। यहां अभिजीत ने अपने एक से एक यादगार गीत सुनाए।
बादशाह बन मंच पर दाखिल हुए अभिजीत
गायक अभिजीत अपने हर कार्यक्रम का शुभारंभ शाहरूख खान की फिल्म बादशाह के टाईटल गीत से करते हैं, जांजगीर में भी अभिजीत आशिक हूं मैं कातिल भी हूं, सबके दिलों में शामिल भी हूं, दिल को चुराना नींदे उड़ाना बस यही मेरा कसूर, वादों से अपने मुकरता नहीं मरने से मैं कभी डरता नहीं बादशा मैं बादशाह गाते हुए मंच पर दाखिल हुए उसके बाद अभिजीत ने छत्तीसगढ़ के श्रोताओं की तारीफ करते हुए संजयदत्त की फिल्म खूबसूरत का शीर्षक गीत बड़ी ताजा खबर है कि तुम खूबसूरत हो सुनाया। अभिजीत के शुरूआती दो गीतों से ही दर्शक पर अपने लोकप्रिय गायक की खुमारी चढ़नी प्रारंभ हो गई थी तथा दर्शकों ने धड़कन और ओले-ओले की फरमाईश प्रारंभ कर दी थी लेकिन अभिजीत उन गानों को आखरी दौर के लिए बचाकर रखे रहे। संजय दत्त के गानों के बाद अभिजीत एक बार फिर से शाहरूख के गीतों की ओर वापस लौटे और अंजाम फिल्म का गीत बड़ी मुश्किल है खोया मेरा दिल है कोई उसे ढूंढ के लाओ न, बिल्लू बारबर का गीत खुदाया खैर, यश बाॅस के गीत चांद तारे तोड़ लाऊं सारी दुनिया को झुकाऊं बस इतना सा ख्वाब है, फिल्म चलते-चलते का गीत तौबा तुम्हारें ये ईशारे सुनाया। एलबम तेरे बिना के गीत कभी यादों में आऊं कभी ख्वाबों में आऊं, चलते-चलते के गीत सुनो ना सुनो ना सुन लो न, मैं हूं ना के तुम्हें जो मैंने देखा, धड़कन के तुम दिल की धड़कन में रहती हो, यश बास के मैं कोई ऐसा गीत गाऊं, तेरे बिना एलबम के चलने लगी है हवाएं सागर भी लहराए, सैफ अली की ये दिल्लगी के गीत जब भी कोई लड़की देखूं मेरा दिल दिवाना बोले ओले-ओले गाने के बाद अभिजीत ने कोई हीरो यहां कोई जीरो यहां आल द बेस्ट गीत से सुरीली रात का समापन किया।
किशोर के गानों की हैट्रिक
जाज्वल्यदेव लोक महोत्सव के मंच पर अभिजीत ने अपने चुनिंदा लोकप्रिय गीत तो गाए ही वहीं उन्होंने अपने फेवरेट गायक किशोर कुमार के तीन अलग-अलग स्टाईल के गाने की हैट्रिक भी पूरी की। किशोर कुमार के गीतों में अभिजीत ने सबसे पहले परिचय का गीत मुसाफिर हूं यारो न घर है ठिकाना गाया उसके बाद कालेज के दिनों की यादें ताजा करते हुए सहगायिका जाॅली के साथ जवानी-दीवानी का गीत जाने जां ढूंढता फिर रहा हूं तुम्हें रात दिन मैं यहां से वहां गाया तो वहीं कायक्रम के समापन दौर में दो गीत पहले लोक संगीत पर आधारित ओ माझी रे अपना किनारा नदिया की धारा है गाया। अभिजीत ने अपने लोकप्रिय एलबम तेरे बिना, फिल्म चलते-चलते और यश बास के दो-दो गीत सुनाए।
छत्तीसगढि़या सबसे बढि़या
एक गीत बाद से ही अभिजीत का छत्तीसगढि़या सबले बढि़या नारा प्रारंभ हो गया था जो आखिरी तक चला। एक दौर ऐसा भी आया जब उन्होंने छत्तीसगढि़या सबसे बढि़या को अलग-अलग अंदाज में गीतों के रूप में लोगों को सुनाया। अभिजीत यहां के श्रोताओं की तारीफ करते रहे तो वहीं वे इस बात की शिकायत भी करते रहे कि इतने वर्षो से चल रहे इस ऐतिहासिक महोत्सव में उन्हें इतने विलंब से याद किया गया। ओले-ओले और धड़कन के श्रोताओं की अलग-अलग टोली बनाकर भी अभिजीत दर्शकों से लगातार जुड़े रहे और उनका मनोरंजन करते रहे।
रेडियो को बताया गुरू
गाने के अपने शौक, जुनुन और अपने गुरू को याद करते हुए अभिजीत ने रोचक जानकारी दी कि पड़ोसी के घर बजने वाला मरफी रेडियो ही उनका गुरू रहा जिसकी बदौलत उन्हें कुंदन लाल सहगल, मोहम्मद रफी, किशोर कुमार, लता मंगेशकर जैसे सारे महान गायक-गायिकाओं के गीत एक ही जगह पर सुनने को मिली। अभिजीत ने बताया कि उनके पिताजी का मानना था कि घर में रेडियो होने से बच्चे बिगड़ जाते थे इसलिए उनके घर में रेडियो भी नहीं था। उन्होंने कहा कि उन्होंने किशोर कुमार के समय में ही गाना प्रारंभ कर दिया था तथा लता मंगेश्कर के साथ भी उन्हें गाने का अवसर मिला।
बीबी के लिए ले गए कोसा सिल्क
अभिजीत ने कहा कि जांजगीर से कार्यक्रम कर घर जाने पर पहली बार उन्हें डांट नहीं खानी पड़ेगी तथा बीबी को सफाई भी नहीं देनी पड़ेगी क्योंकि वो बीबी के लिए कोसा सिल्क लेकर जा रहे हैं जिसे पाकर वो खुश हो जाएगी।
कभी डिस्टर्ब तो कभी हैरान हुए अभिजीत
कार्यक्रम के दौरान कई बार अभिजीत डिस्टर्ब होते रहे। अभिजीत सबसे ज्यादा डिस्टर्ब मीना बाजार की ओर से आते तेज आवाज से हुए। मंच से कई बार उन्होंने मीना बाजार की ओर से आ रही आवाज को बंद कराने की गुजारिश की तो वहीं यह तक कहा कि पहले उनका सुन लो तब तक वो चुप रहते हैं। पुलिस अधीक्षक प्रशांत अग्रवाल जब कार्यक्रम में पंहुचे उसके बाद उनके बैठने के लिए सोफे का इंतजाम किया गया उस समय भी अभिजीत ने कुछ पलों के लिए कार्यक्रम को रोक दिया और उनसे आवाजाही रोकने की गुजारिश करते रहे। सामने वीआईपी दीर्घा में बार-बार चाय-बिस्कीट के लिए हो रही आवाजाही से भी उनकी तंद्रा भंग होते रही तथा वो उसे बंद कराने की बातें करते रहे। एक बार उन्होंने उस पर भी कड़े संदेश देते हुए कहा कि बीच में खाने का सामान उनके सामने न लाए क्योंकि उन्हें भी भूख लगती है तथा वो भी गाना छोड़ खाने लग जायेंगे। मरफी रेडियो को अपना गुरू बताने के बाद अभिजीत ने किशोर कुमार का गाना मुसाफिर हूं यारो गाकर सुनाया उसके बाद रेडियो की तर्ज पर ही डा. परस शर्मा की ओर से उद्घोषणा हुई कि अभी आप बालीवुड गायक अभिजीत भट्टाचार्य को सुन रहे थे। अचानक हुई इस उद्घोषणा से अभिजीत हतप्रभ तो उसके साथ आए म्यूजिशियन अवाक रह गए। तब तक अभिजीत बमुश्किल आधा दर्जन गीत ही गा पाए थे। उस समय कार्यक्रम को बीच में रोककर अतिथियों द्वारा अभिजीत को स्मृति चिन्ह भेंट किया गया तथा उदघोषक ने भी अपनी गलती सुधारते हुए कहा कि अभिजीत अभी उन्हें और गीत सुनायेंगे।
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मां दुर्गा के 52 शक्तिपीठों में से एक है चन्द्रहासिनी
महानदी के तट पर विराजमान चन्द्रपुर में विराजमान मां चन्द्रहासिनी मां दुर्गा के 52 शक्तिपीठों में से एक है। प्रतिवर्ष देश विदेश से लाखों श्रद्धालू मां चन्द्रहासिनी देवी के दर्शन के लिए चन्द्रपुर पंहुचते हैं। बासंतीय एवं शारदेय नवरात्रि पर्व पर यहां भक्तों की भारी भीड़ लगी होती है वहीं दोनों गुप्त नवरात्रि पर्व पर भी विशेष पूजा का आयोजन किया जाता है।
देश में 52 शक्तिपीठ है। शक्तिपीठ के बारे में मान्यता है कि अपने पिता के मुख से अपने पति भगवान शंकर के बारे में अपमानजनक शब्द सुनने के बाद सती यज्ञ की अग्नि में कूद जाती है। जानकारी होने पर भगवान शंकर सती के शरीर को कांधे में रख चलते हैं तब सती के अंग जहां-जहां धरती पर गिरे थे, वहां मां दुर्गा के शक्तिपीठ माने जाते हैं। महानदी व माण्ड नदी के बीच बसे चंद्रपुर में मां दुर्गा के 52 शक्तिपीठों में से एक स्वरूप मां चंद्रहासिनी के रूप में विराजित है। चंद्रमा की आकृति जैसा मुख होने के कारण इसकी प्रसिद्धि चंद्रहासिनी और चंद्रसेनी मां के नाम जगत में फैल रही है, लेकिन इसका स्वरूप चंद्रमा से भी सुंदर है। माता चंद्रसेनी के दर्शनमात्र से शरीर में ऊर्जा का संचार होता है और मां अपने भक्तों की मनोकामनाएं दो अगरबत्ती व फूल से ही पूर्ण कर देती है।
चंद्रपुर जिला मुख्यालय जांजगीर से 120 किलोमीटर तथा रायगढ़ से 32 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। आसपास के लोग इसे चंद्रसेनी देवी भी कहते हैं। चारों ओर प्राकृतिक सुंदरता से घिरे चंद्रपुर की फिजां बहुत ही मनोरम है। एक ओर जहां महानदी अपने स्वच्छ जल से माता चंद्रसेनी के पांव पखारती है, वहीं दूसरी ओर माण्ड नदी क्षेत्र के लिए जीवनदायिनी से कम नहीं है। कुछ वर्ष पूर्व चंद्रपुर मंदिर पुराने स्वरूप में था, लेकिन जब से ट्रस्ट का गठन हुआ, इसके बाद से मंदिर व परिसर का स्वरूप पूरी तरह बदल चुका है। मंदिर का मुख्यद्वार इतना आकर्षक और भव्य है कि यहां पहुंचने वाले श्रद्धालु उसकी तारीफ किए बगैर नहीं रहते। मंदिर परिसर में अर्द्धनारीश्वर, महाबलशाली पवन पुत्र, कृष्ण लीला, चीरहरण, महिषासुर वध, चारों धाम, नवग्रह की मूर्तियां, सर्वधर्म सभा, शेष शैया तथा अन्य देवी-देवताओं की भव्य मूर्तियां जीवन्त लगती हैं। इसके अलावा मंदिर परिसर में ही स्थित चलित झांकी महाभारत काल का सजीव चित्रण है, जिसे देखकर महाभारत के चरित्र और कथा की विस्तार से जानकारी भी मिलती है। दूसरी ओर भूमि के अंदर बनी सुरंग रहस्यमयी लगती है और इसका भ्रमण करने पर रोमांच महसूस होता है। वहीं माता चंद्रसेनी की चंद्रमा आकार प्रतिमा के एक दर्शन मात्र से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। चंद्रहासिनी माता का मुख मंडल चांदी से चमकता है, ऐसा नजारा देश भर के अन्य मंदिरों में दुर्लभ है। चंद्रहासिनी मंदिर के कुछ दूर आगे महानदी के बीच मां नाथलदाई का मंदिर स्थित है। कहा जाता है कि मां चंद्रहासिनी के दर्शन के बाद माता नाथलदाई के दर्शन भी जरूरी है। यह भी कहा जाता है कि महानदी में बरसात के दौरान लबालब पानी भरे होने के बाद भी मां नाथलदाई का मंदिर नहीं डूबता। एक किंवदंति के अनुसार हजारों वर्षो पूर्व सरगुजा की भूमि को छोड़कर माता चंद्रसेनी देवी उदयपुर और रायगढ़ होते हुए चंद्रपुर में महानदी के तट पर आती हैं। महानदी की पवित्र शीतल धारा से प्रभावित होकर यहां पर वह विश्राम करने लगती हैं। वर्षों व्यतीत हो जाने पर भी उनकी नींद नहीं खुलती। एक बार संबलपुर के राजा की सवारी यहां से गुजरती है, तभी अनजाने में चंद्रसेनी देवी को उनका पैर लग जाता है और माता की नींद खुल जाती है। फिर स्वप्न में देवी उन्हें यहां मंदिर निर्माण और मूर्ति स्थापना का निर्देश देती हैं। संबलपुर के राजा चंद्रहास द्वारा मंदिर निर्माण और देवी स्थापना का उल्लेख मिलता है। देवी की आकृति चंद्रहास जैसे होने के कारण उन्हें ‘‘चंद्रहासिनी देवी’’ भी कहा जाता है। राजपरिवार ने मंदिर की व्यवस्था का भार यहां के जमींदार को सौंप दिया। यहां के जमींदार ने उन्हें अपनी कुलदेवी स्वीकार करके पूजा अर्चना की। इसके बाद से माता चंद्रहासिनी की आराधना जारी है। यहां वर्ष भर श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है। वहीं वर्ष के दोनों नवरात्रि पर्वो पर मेले जैसा माहौल रहता है तथा दोनों गुप्त नवरात्रि को भी यहां विशेष पूजा अर्चना का आयोजन किया जाता है। छत्तीसगढ़ के अलावा अन्य राज्यों के श्रद्धालु यहां नवरात्रि में ज्योति कलश प्रज्जवलित कराकर मां से अपने सुख-समृद्धि की कामना करते हैं। कई श्रद्धालु मनोकामना पूरी करने के लिए यहां बकरे व मुर्गी की बलि देते हैं।
देश में 52 शक्तिपीठ है। शक्तिपीठ के बारे में मान्यता है कि अपने पिता के मुख से अपने पति भगवान शंकर के बारे में अपमानजनक शब्द सुनने के बाद सती यज्ञ की अग्नि में कूद जाती है। जानकारी होने पर भगवान शंकर सती के शरीर को कांधे में रख चलते हैं तब सती के अंग जहां-जहां धरती पर गिरे थे, वहां मां दुर्गा के शक्तिपीठ माने जाते हैं। महानदी व माण्ड नदी के बीच बसे चंद्रपुर में मां दुर्गा के 52 शक्तिपीठों में से एक स्वरूप मां चंद्रहासिनी के रूप में विराजित है। चंद्रमा की आकृति जैसा मुख होने के कारण इसकी प्रसिद्धि चंद्रहासिनी और चंद्रसेनी मां के नाम जगत में फैल रही है, लेकिन इसका स्वरूप चंद्रमा से भी सुंदर है। माता चंद्रसेनी के दर्शनमात्र से शरीर में ऊर्जा का संचार होता है और मां अपने भक्तों की मनोकामनाएं दो अगरबत्ती व फूल से ही पूर्ण कर देती है।

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पहाड़ी में गुफा के भीतर विराजमान है खंभदेश्वरी दाई
जांजगीर-चांपा जिले के आखरी छोर पर छाता जंगल के बीच पहाड़ी पर गुफा के भीतर खंभे के रुप में विराजी खंभदेश्वरी के प्रति श्रद्धालुओं की अटूट आस्था है। पहाड़ी ऊपर गुफा के अंदर एक खंभे के रूप में विराजमान होने के कारण इसका नाम खमदाई अर्थात खंभदेश्वरी होने की मान्यता है वहीं किवदंती के अनुसार गुफा में शेर का निवास माना जाता है जो माता के दर्शन के लिए आते हैं। साक्षात् रूप में विराजी माता के दर्शन मात्र से दुख-दर्द दूर हो जाते हैं।
खंभदेश्वरी (खमदाई) जिला मुख्यालय से ३३ किलोमीटर की दूरी पर बलौदा ब्लाक के ग्राम लेवई, नवापारा, खिसोरा और बगडबरी के बीच स्थित है। पहाड़ की चोंटी पर एक गुफा है। गुफा के लगभग 10 फीट के भीतर खंभे की आकृति में देवी विराजमान है। खंभे की शक्ल में होने के चलते ही इसका नाम खमदाई पड़ा। जिसका नाम बाद में खंभदेश्वरी प्रचलित हुआ। इस गुफा के बाएं और दाएं तरफ भी सुरंग हैं। दाईं ओर स्थित एक सुरंग की गहराई लगभग 10 फीट तथा दूसरे की गहराई 8 फीट है। ग्रामीणों का मानना है कि यहां साक्षात देवी विराजमान है। ऐसी मान्यता है कि आसपास के गांवों में किसी भी प्रकार की विपत्ति का पूर्वाभास खंभदेश्वरी द्वारा करा दी जाती है। पहले यहां तक पहुंचने के लिए लोगों को दुर्गम पहाड़ी के रास्ते से जाना पड़ता था, लेकिन 1992 में खंभदेश्वरी पर्वत गुफा आदि शक्ति पीठ समिति का गठन हुआ और चांपा के धनजी देवांगन ने यहां सीढ़ी का निर्माण कराया। खंभदेश्वरी चारों ओर से वन क्षेत्रों से घिरा है। पहाड़ के नीचे एक पुराना कुंआ है, जिसे मंदिर के पहले पुजारी गणेश राम भारद्वाज ने बनवाया था। उन्होंने पहाड़ी स्थित शिव मंदिर का जीर्णोद्धार कराया था।
ग्रामीणों के अनुसार यह काफी प्राचीन गुफा है और इसके संबंध में पूरी जानकारी किसी को नहीं है। फिर भी बताया जाता है कि कुछ साल पहले एक बालक गाय चराते हुए मां खंभदेश्वरी मंदिर जा पहुंचा और जिज्ञासावश वह गुफा के अंदर घुस गए। इसके बाद वह बाहर नहीं निकला। बालक के गुम होने पर ग्रामीणों ने उसकी खोजबीन शुरू की, परन्तु उसका पता नहीं चला। दो दिन बाद वह मंदिर के नीचे सुरंग से सकुशल बाहर निकला, जिसे जीवित देखकर ग्रामीण अचरज में पड़ गए। बालक ने बताया कि वह दो दिनों तक मां खंभदेश्वरी के शरण में था, जहां उसे माता ने अपने पुत्र से ज्यादा स्नेह दिया। मान्यता है कि सुरंग में घुसने वाले लोगों को माता के दर्शन होते हैं। यहां प्रतिवर्ष क्वांर व चैत्र नवरात्रि पर्व के तीसरे दिन ज्योति कलश प्रज्वलित किए जाते हैं और पूरे नौ दिनों तक माता सेवा, जसगीत व देवी की पूजा अर्चना की जाती है।
खंभदेश्वरी (खमदाई) जिला मुख्यालय से ३३ किलोमीटर की दूरी पर बलौदा ब्लाक के ग्राम लेवई, नवापारा, खिसोरा और बगडबरी के बीच स्थित है। पहाड़ की चोंटी पर एक गुफा है। गुफा के लगभग 10 फीट के भीतर खंभे की आकृति में देवी विराजमान है। खंभे की शक्ल में होने के चलते ही इसका नाम खमदाई पड़ा। जिसका नाम बाद में खंभदेश्वरी प्रचलित हुआ। इस गुफा के बाएं और दाएं तरफ भी सुरंग हैं। दाईं ओर स्थित एक सुरंग की गहराई लगभग 10 फीट तथा दूसरे की गहराई 8 फीट है। ग्रामीणों का मानना है कि यहां साक्षात देवी विराजमान है। ऐसी मान्यता है कि आसपास के गांवों में किसी भी प्रकार की विपत्ति का पूर्वाभास खंभदेश्वरी द्वारा करा दी जाती है। पहले यहां तक पहुंचने के लिए लोगों को दुर्गम पहाड़ी के रास्ते से जाना पड़ता था, लेकिन 1992 में खंभदेश्वरी पर्वत गुफा आदि शक्ति पीठ समिति का गठन हुआ और चांपा के धनजी देवांगन ने यहां सीढ़ी का निर्माण कराया। खंभदेश्वरी चारों ओर से वन क्षेत्रों से घिरा है। पहाड़ के नीचे एक पुराना कुंआ है, जिसे मंदिर के पहले पुजारी गणेश राम भारद्वाज ने बनवाया था। उन्होंने पहाड़ी स्थित शिव मंदिर का जीर्णोद्धार कराया था।
ग्रामीणों के अनुसार यह काफी प्राचीन गुफा है और इसके संबंध में पूरी जानकारी किसी को नहीं है। फिर भी बताया जाता है कि कुछ साल पहले एक बालक गाय चराते हुए मां खंभदेश्वरी मंदिर जा पहुंचा और जिज्ञासावश वह गुफा के अंदर घुस गए। इसके बाद वह बाहर नहीं निकला। बालक के गुम होने पर ग्रामीणों ने उसकी खोजबीन शुरू की, परन्तु उसका पता नहीं चला। दो दिन बाद वह मंदिर के नीचे सुरंग से सकुशल बाहर निकला, जिसे जीवित देखकर ग्रामीण अचरज में पड़ गए। बालक ने बताया कि वह दो दिनों तक मां खंभदेश्वरी के शरण में था, जहां उसे माता ने अपने पुत्र से ज्यादा स्नेह दिया। मान्यता है कि सुरंग में घुसने वाले लोगों को माता के दर्शन होते हैं। यहां प्रतिवर्ष क्वांर व चैत्र नवरात्रि पर्व के तीसरे दिन ज्योति कलश प्रज्वलित किए जाते हैं और पूरे नौ दिनों तक माता सेवा, जसगीत व देवी की पूजा अर्चना की जाती है।
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सच्चे दिल से मांगी हर विनती पूरी करती है जांजगीर की मड़वारानी
जांजगीर चांपा के हृदयस्थल चंदनिया पारा डबरीपार जांजगीर में पीपल वृक्ष के नीचे मां मड़वारानीविराजमान है। कुछ वर्षो पूर्व पीपल वृक्ष के नीचे खुले में विराजमान मातारानी का आशियाना आज एक छोटा सा मंदिर हो चुका है वहीं इस नवरात्रि में उसके ठीक बगल में ज्योतिकक्ष भी बनकर तैयार हो गया है जहां शुक्रवार से भक्तों के द्वारा मनोकामना ज्योति कलश की स्थापना की जाएगी। मां मड़वारानीसच्चे दिल से मांगी हर विनती पूरी करती है।
स़च्चे मन से मा मंड़वारानीके दरबार में सिर झंुकाने वाले सभी लोग इसकी महिमा से अच्छी तरह से वाकिफ हैं। मातारानी से काफी करीब से जु़ड़े होने की वजह से जिंदगी के हर मोड़ पर मैंने स्वयं मां मड़वारानी की शक्ति का अहसास किया है। एक चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी के घर जन्म लेने से लेकर दैनिक समाचार पत्र के संपादक होने तक मेरे जीवन में बहुत सारी कठिनाईयां, ढेरों चुनौतियां आई। जांजगीर के डबरीपारा में विराजमान मां मड़वारानी के दरबार में माथा टेकते हुए सच्चे मन से मैनंे अपनी हर छोटी-बड़ी परेशानियों को मां मड़वारानी के हवाले कर दिया। मातारानी ने भी कभी मुझे निराश नहीं किया और वो भी सच्चे दिल से मांगी मेरी हर विनती को कबूल करते गई। साधारण परिवार में जन्म लेने के बाद भी मासिक पत्रिका पंचायत की मुस्कानका लगातार पांच वर्ष से प्रकाशन और सितंबर 2015 से बारह पृष्ठीय दैनिक समाचार पत्र छत्तीसगढ़ एक्सप्रेस के प्रकाशन की मूल ताकत मेरे इष्टदेव दूल्हादेव, मेरे ग्राम की चण्डीदेवी और जांजगीर के मड़वारानीकी कृपा रही है। चूंकि मेरा पूरा बचपन मां मड़वारानीके आंचल की छांव में बीता है इसलिए मुश्किल वक्त में जुबान पर आने वाला पहला नाम भी उन्हीं का रहता है।
जब पहली बार हुआ मां की शक्ति का अहसास
मेरे घर परिवार सहित डबरीपारा जांजगीर में रहने वाले लोगों के हर शुभ काम की शुरूवात मातारानी के पूजा अर्चना और आशिर्वाद से ही होती है जिससे काम निर्विध्न संपन्न होते हैं। बचपन में हर साल डबरीपारा में हम लोग मटका फोड़ का आयोजन करते थे। टोली में उपस्थिति साथियों की मस्ती, उत्साह में मोहल्लेवासियों के द्वारा पानी डालने से ऊपर चैथे-पांचवे ग्रुप में मौजूद लोगों के गिरने और चोट लगने का खतरा हमेशा बना रहता था। ऐसे ही एक वर्ष जब टोली भरभराकर गिरी तो सबसे ऊपर मौजूद दोनों साथी योगेश यादव और विकास साव बेहोश हो गए। आनन फानन में कुछ लोग योगेश को मातारानी के पास लेकर आए वहीं कुछ लोग विकास को सीधे हास्पिटल लेकर चले गए। मातारानी के पास लेटते ही योगेश तुरंत उठकर खड़ा हो गया जैसे उसे कुछ हुआ ही नहीं हो वहीं हास्पिटल में तमाम कोशिशों के बाद भी किसी तरह की प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं करने पर डा. यू.सी. शर्मा ने उसे यह कहते हुए बिलासपुर रेफर कर दिया कि सिर में अंदरूनी चोट लगने की वजह से वह कोमा में चला गया है। तब मित्रगण जहां विकास को बिलासपुर ले जाने के लिए गाड़ी की तलाश में जुट गए वहीं एक मित्र के साथ वापस मंदिर आकर हमने मां मड़वारानीके दरबार में माथा टेका। हमारे वापस हास्पिटल पंहुचते तक विकास पूरी तरह से होश में आ चुका था ।
पूजा के बाद चालू हो गया मिक्सर मशीन
मालती देवी रात्रे जब पहली बार नगर पालिका परिषद नैला जांजगीर की अध्यक्ष बनी तब उपाध्यक्ष ब्यास कश्यप और वार्ड पार्षद नानू देवी यादव थे। तब पहली बार मोहल्ले में सीसी रोड की स्वीकृति हुई और नैला सिवनी के मजदूर मिक्सर मशीन लेकर सीसी रोड बनाने के लिए पंहुचे। कार्य के पहले दिन एक घंटे की कोशिश के बाद भी मिक्सर मशीन प्रारंभ नहीं हो पाया तब किसी ने मजाक में कहा कि मातारानी के दरबार में उनकी अनुमति के बिना कैसे कार्य प्रारंभ करोगे जिस पर मिक्सर मशीन चलाने वाले ने अगरबत्ती मंगाकर मातारानी की पूजा की उसके बाद वाकई मिक्सर मशीन प्रारंभ हो गया। दूसरे दिन फिर जब वो काम पर पंहुचे तो आधे घंटे तक मिक्सर मशीन को चालू करने की असफल कोशिश करते रहे इतने में एक मजदूर ने याद दिलाया कि कल तो माता रानी की पूजा करने के बाद ही मिक्सर मशीन प्रारंभ हुआ था आज पूजा किए या नहीं, फिर माता रानी की पूजा की गई और पूजा होते ही मिक्सर मशीन प्रारंभ हो गया। उसके बाद जितने दिन भी मजदूर आए मां मड़वारानीकी पूजा के बाद ही काम प्रारंभ करते।
जब चोर ने कबूल की चोरी
एक बारमां मड़वारानीका चांदी का मुकुट चोरी हो गया तब हम सभी दोस्त बेरोजगार थे वहीं कोई भी दोस्त आर्थिक रूप से इतने सक्षम नहीं थे कि चांदी का मुकुट ले सके इसलिए सभी दोस्त आपस में थोड़े-थोड़े पैसे जुटाकर दूसरा मुकुट खरीद लाए। एक सुबह मां मड़वारानी के पास मौजूद शिवलिंग भी कहीं चली गई। तब वहां दूसरा शिवलिंग भी लाया गया, इसी बीच आश्चर्यजनक रूप से पहली शिवलिंग डबरी की पचरी में मिल गया। इस घटना के कुछ माह बाद मेरे पास आकर एक युवक ने अपना गुनाह कबूल कर लिया। मुझे ही ये बातें क्यों बता रहे हो पूछने पर उसने कहा कि वही जानता है कि घटना के बाद से वह कितनी तकलीफ में है। उसके शरीर के अंदरूनी हिस्सों में कई फोड़े हो गए हैं जिसकी वजह से वह न तो कहीं बैठ पा रहा है और न ही चैन से सो पा रहा है चूंकि मंदिर में तब कोई पुजारी नहीं रहता था और उसकी पूजा आदि हम लोग ही करते थे इसलिए उसने मेरे सामने अपना जुर्म कबूलते हुए माता रानी से अपने किए के लिए माफी मांगी।
और एक सप्ताह बाद वापस मिल गया मोबाईल
एक वर्ष जब हम सभी मित्र मां मड़वारानी मंदिर में नवरात्रि की तैयारियों मे लगे थे नवरात्रि के पहले दिन हमारे घर का मोबाईल कहीं गायब हो गया। घरवालों और मित्रों ने सिम का दुरूपयोग रोकने थाने में जाकर सूचना देने और सिम को बंद कराने के लिए कहा जिस पर मैंने मातारानी पर विश्वास करते हुए दृढ़तापूर्वक कहा कि नवरात्रि के पहले दिन मातारानी की सेवा में जुटे रहने के समय यदि मोबाईल गायब हुआ है तो वह नवरात्रि की समाप्ति के पूर्व मिल भी जाएगा। सप्तमी की रात जब हम मातारानी के दरबार में बैठे हुए थे मुझे अहसास हुआ मानो उस मोबाईल से कोई उस वक्त बात कर रहा है। दोस्तों ने हंसी मजाक करते जब मेरे नंबर पर काल किया तो वह व्यस्त मिला। हंसी मजाक करते उस वक्त वहां मौजूद सालिक यादव, पंकज यादव, शिवम कटकवार आदि अपने साथियों का नंबर डायल कर जांचने लगे कि उनके परिचितों में और किसका मोबाईल बिजी है। उनके एक साथी का नंबर व्यस्त मिलने पर थोड़ी देर में उसके आने पर दोस्तों ने सीधे उनसे मोबाईल की मांग कर दी जबकि वह युवक ऐसी गतिविधियों से हमेशा दूर ही रहता था। सीधे मोबाईल मांगे जाने से हड़बड़ाए युवक ने अपने एक अन्य साथी के द्वारा दिए गए सिम से बात करना स्वीकार कर लिया। इस तरह नवरात्रि के पहले दिन गुमा मोबाईल सप्तमी की रात मिल गया।
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शेरू हमारा रिश्तेदार, उसने स्वेच्छा से हमें पैसे देकर घर भेजा
जांजगीर-चांपा जिले की तीनों लड़कियों ने किया देह व्यापार एवं मानव तस्करी से इंकार
छत्तीसगढ़ एक्सप्रेस के संपादक राजेश सिंह क्षत्री से बातचीत करती तीनों लड़कियां, लड़कियों की पहचान छिपाने के लिए फोटो को धुंधला किया गया है। |
राजेश सिंह क्षत्री
जांजगीर-चांपा/छत्तीसगढ़ एक्सप्रेस
बालोद पुलिस जांजगीर-चांपा जिले की जिन तीन लड़कियों को देह व्यापार एवं मानव तस्करी से छुड़ाकर लाने की बातें कर रही है उन लड़कियों का कहना है कि शेरू उनका रिश्तेदार है तथा वो उनके गांव से उन्हें लेकर के गया था, शेरू ने उनके सहित कोरबा जिले की तीनों लड़कियों को खुद पैसे देते हुए घर जाने को कहा जहां से वो दो दिन पहले ही सारनाथ एक्सप्रेस से वापस आ गए थे जहां से जिले की तीन लड़कियों में से एक लड़की अपने घर तो दो अपनी दीदी के घर पंहुच गए थे जहां से उन्हें आज सुबह पुलिस के जवान जिला मुख्यालय ले आए, सीडब्लूसी मेंबर इन्हें मानसिक विकास संस्थान में छोड़ गए हैं जहां उनके परिजनों के पहचान दिखाने और सीडब्लूसी की संतुष्टि के बाद वापस उन्हें उनके परिजनों के सुपुर्द कर दिया जाएगा।
बालोद पुलिस ने रविवार को पे्रस कांफ्रेंस के माध्यम से छत्तीसगढ़ की 7 लड़कियों के मानव तस्करी के मामले का खुलासा करते हुए देह व्यापार में धकेले जाने की बातें कही थी उसमें कोरबा जिले की तीन तथा जांजगीर-चांपा जिले की तीन लड़कियां भी शामिल थी। बालोद की लड़की कैसे शेरू के चंगुल में फंसी इसका खुलासा बालोद पुलिस के द्वारा किया गया था वहीं जांजगीर-चांपा जिले से शेरू के पास गई तीनों लड़कियों की दास्तान उनसे अलग है। जिले से जो तीन लड़कियां शेरू के पास से वापस लौटी है शेरू उन तीनों का रिश्तेदार है। छत्तीसगढ़ एक्सप्रेस के संपादक से बात करते हुए उन लड़कियों का कहना है कि रिश्तेदार होने की वजह से शेरू उनके घर पहले से आता जाता रहा है तथा क्षेत्र की एक विशेष जाति की लड़कियां उनके साथ पहले भी जाती रही है।
शेरू रिश्तेदार, उसका ससुराल बिर्रा में
जो तीन लड़कियां शेरू के पास से इलाहाबाद से वापस लौटी है उसमें से एक लड़की जिले के नवागढ़ क्षेत्र की तो दो लड़कियां जैजैपुर-बम्हनीडीह क्षेत्र के एक ही गांव की आपस में रिश्तेदार है तथा दूसरी लड़की पहली लड़की के मामा की बेटी है। जैजैपुर बम्हनीडीह क्षेत्र की जो लड़कियां इलाहाबाद से लौटी है शेरू उनका फूफा है तो वहीं नवागढ़ क्षेत्र से लौटी लड़की का वह मौसा है।एक कमरे में रहते थे 20-25 लड़कियां
जिले से गई लड़कियांे का कहना है कि सारी लड़कियां उत्तरप्रदेश के बरावं में एक ही घर में रहती थी। लड़कियां अपना खाना खुद बनाती थी। एक ही कमरे में सभी 20 से 25 लड़कियां रहती थी, इन लड़कियांे का कहना था कि वहां उनपर किसी तरह का बंधन नहीं था तथा वो आजादी से उनके साथ थी।दीवाली-होली के समय गई लड़कियां
जैजैपुर-बम्हनीडीह क्षेत्र से शेरू के साथ गई दोनों लड़कियां दीवाली के समय शेरू के साथ गई थी। नवागढ़ क्षेत्र से उसके साथ गई लड़की होली के समय शेरू के साथ गई। शेरू इनका रिश्तेदार था इसलिए घर वालों ने भी बड़ी ही आसानी से उसे उनके साथ भेज दिया।शादी-बर्थडे में डांस करती थी
लड़कियों का कहना है कि शेरू वहां उन्हें डांस कराने के लिए लेकर के गया था तथा वो शादी, बर्थडे तथा अन्य उत्सवों में वहां जाकर डांस करती थी। एक आयोजन में तीन से चार लड़कियों को डांस के लिए शेरू भेजता था।वापसी के लिए शेरू ने दिए पैसे
जिले की तीनों लड़कियां का कहना है कि जाने से पहले उनके घर वालों को शेरू ने कुछ पैसे दिए थे वहीं वापस आने के लिए भी उनके द्वारा तीनों लड़कियांे को एक हजार, चार हजार और सात हजार रूपए देते हुए वापस अपने गांव जाने के लिए कहा गया जिससे कि वो सारनाथ एक्सप्रेस मंे बैठकर कोरबा जिले के अन्य तीन लड़कियों के साथ सभी 6 लड़की दो दिन पहले ही बिलासपुर तक आए। कोरबा जिले की तीनों लड़कियां बहन थी इसलिए वो एक साथ अपने घर के लिए निकल गई वहीं जांजगीर जिले की लड़कियों में से नवागढ़ क्षेत्र की लड़की अपने घर तो जैजैपुर-बम्हनीडीह क्षेत्र की लड़की बम्हनीडीह के पास अपने रिश्तेदार के घर में लौट आई।पुलिस उन्हें वापस जिला मुख्यालय ले आई
लड़कियों का कहना था कि दो दिन तक घर में रहने के बाद वो जहां पर थी वहां से पुलिस उन्हें वापस आज जिला मुख्यालय जांजगीर ले आई सीडब्लूसी मेंबर सुरेश कुमार जायसवाल उन्हें मानसिक विकास संस्थान के सुपुर्द में छोड़कर चले गए।दिन भर परेशान होते रहे परिजन
नवागढ़ क्षेत्र की जो लड़की उत्तरप्रदेश से वापस लौटी है उनके संपर्क में छत्तीसगढ़ एक्सप्रेस की टीम दो दिन पहले से ही थी लेकिन चूंकि लड़कियां एकदम गरीब परिवार की है तथा पूरा मामला संवेदनशील है इसलिए हमारे द्वारा पूरी गोपनियता बरती गई। मामले की संवेदनशीलता को देखते हुए पुलिस जवान उन्हें उनके घर से ले आए तथा लड़कियों से जुड़े पहचान चिन्ह दिखाने के बाद उन्हें ले जाने की बातें कही जिसके बाद दो लड़कियों के परिजन जांजगीर थाने तथा पुलिस कंट्रोल रूम के इर्द गिर्द पूरा दिन भटकते रही जिसके बाद उन्होंने एक बार फिर से छत्तीसगढ़ एक्सप्रेस की टीम से संपर्क किया। परिजनों के हाथ में बाल कल्याण समिति के अध्यक्ष दूजराम ज्योति का मोबाईल नंबर था जिससे संपर्क कर छत्तीसगढ़ एक्सप्रेस की टीम ने लड़कियों के परिजनों को अपनी बेटियों तक पंहुचाया।लड़कियां अपने परिवार तक कब पंहुचेगी पता नहीं
बाल कल्याण समिति के अध्यक्ष दूजराम ज्योति ने छत्तीसगढ़ एक्सप्रेस को बताया कि लड़कियों को अभी मानसिक विकास संस्थान के सुपुर्द किया गया है, उन्हें वहां तक सीडब्लूसी मेंबर सुरेश कुमार जायसवाल छोड़कर गए। दूजराम ज्योति ने बताया कि लड़कियों के परिजनों को कहा गया है कि वो लड़कियों के शिक्षा संबंधी प्रमाण पत्र तथा अन्य प्रमाण पत्र दिखाकर अपने साथ ले जाने के लिए उनके परिजनों को कहा गया है। तीनों लड़कियों ने छत्तीसगढ़ एक्सप्रेस से बातचीत में कभी स्कूल जाने से इंकार किया है तो वहीं लड़की के परिजनों ने बताया कि वो घुमंतू जाति के लोग हैं तथा सुपा, टुकना आदि बनाने के लिए परिवार सहित गांव से कहीं भी निकल जाते हैं, वो लोग स्वयं अभी पन्द्रह दिन तक जिला मुख्यालय के एक समीप के गांव में रूके हुए थे। सबसे बड़ी बात ये है कि जो तीन लड़कियां वापस लौटी है उसमें से एक लड़की के परिजन रोजी रोटी के लिए इसी तरह से कहीं निकले हुए हैं, वो कहां है इसकी जानकारी अन्य दो लड़कियों के परिजनों सहित उस लड़की को भी नही है। अन्य दो परिजनों के द्वारा बताया गया कि उसके संबंध में कोई भी दस्तावेज उनके माता-पिता के पास ही होंगे ऐसे में वह लड़की अपने घर किन परिस्थितियों में कब पंहुचेगी इसका पता किसी को नहीं है।जिले की पांच लड़की शेरू के पास
नवागढ़ क्षेत्र की लौटी लड़की का कहना है कि उनके गांव की पांच लड़कियां अभी भी शेरू के पास है। उसका कहना है कि पहले भी उसकी बहन शेरू के पास गई थी जो कि वापस लौट आई थी। शेरू के परिवार के बारे में इन लड़कियों का कहना है कि उसके स्वयं के चार बच्चे हैं लेकिन वो अभी छोटे हैं जिसकी वजह से नाच-गाने से दूर हैं।↧
नाच-गाना देवार लोगों का पेशा है साहब, उन्हें शिक्षा और रोजगार दो सजा नहीं
संदर्भ: पांचवे दिन अपने घर पंहुची इलाहाबाद से लौटी गरीब बेटियां
राजेश सिंह क्षत्री/संपादक, दैनिक छत्तीसगढ़ एक्सप्रेस
आखिरकार छत्तीसगढ़ एक्सप्रेस और मीडिया के अन्य साथियों के हस्तक्षेप के बाद इलाहाबाद से लौटी जांजगीर-चांपा जिले की तीनों बेटियां शुक्रवार की देर रात को अपने परिजनों के पास वापस लौट सकी। नाचने गाने के लिए अपने राज्य की सीमा से परे दूर इलाहाबाद जाने के लिए इन बेटियों की आलोचना से पहले इनके वहां जाने की पड़ताल और वापस लौटने के बाद हुई दिक्कतों की बातें कर लें तो ज्यादा बेहतर होगा। जांजगीर-चांपा जिले की ये बेटियां मानव तस्करी की शिकार नहीं हुई और न ही उन्होंने तथा उनके परिजनो ने मानव तस्करी अथवा उनसे देह व्यापार कराए जाने की शिकायत की है, जिले की ये बेटियां देवार जाति की है। देवार जाति के इन लोगों की आजीविका कैसे चलती है, इन लड़कियों में से एक की मां ने एक ही सांस में सारी बातें यह कहते हुए स्पष्ट कर दी कि साहब हम लोगों का तो पेसा ही नाच-गाकर अपना और अपने परिवार का पेट पालने की रही है, हमारे समाज के लोग गांव-गांव शहर-शहर जाकर गोदना गोदते थे, सुपा टुकना बनाते थे। गौर करें मशीनी युग में आज गोदना भी लोग इन देवार लोगों से नहीं गुदवाते मशीन से टेटू बनवाते हैं। नाचा-गम्मत जैसे छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक धरोहर टीवी, विडियो के आने के बाद से ही इतिहास की बातें हो गई है तो सूपा, टुकना पर प्लास्टिक के सामान भारी पड़ रहे हैं। ऐसे में इस समाज के अशिक्षित लोगांे का मुख्य पेसा भीख मांगकर जीवन यापन करना और सुअर चराना ही रह गया है। ऐसे में यदि उनका ही कोई रिश्तेदार (जिले से गई तीनों लड़कियों का शेरू फूफा और मौसा है) शादी-ब्याह का सीजन शुरू होने से पहले उन्हें नाच गाने के लिए लेकर जाए और सीजन समाप्त होने के बाद सकुशल घर तक छोड़ दे तो उसमें इन बेटियों का क्या दोष है। पिछले कई वर्षो से दर्जनों बेटियां शेरू के साथ जाकर वापस लौट चुकी है वहीं इन बेटियों के अनुसार भी उन्हें इलाहाबाद से पुलिस ने वापस नहीं लाया है बल्कि वो अपने दम पर वापस अपने घर लौट चुके थे जहां से उठाकर पुलिस ने उन्हें बाल कल्याण समिति के हवाले कर दिया था।
‘‘भारत डिस्कव्हरी’’ में देवार जाति के संबंध में उल्लेख है कि देवार छत्तीसगढ़ की भ्रमणशील, घुमंतू जाति है। छत्तीसगढ़ के प्रसिद्ध देवार लोकगीत इसी जाति के लोगों द्वारा गाये जाते हैं। देवार अधिकांशतः यहाँ-वहाँ घूमने वाली भ्रमणशील जाति है। संभवतः इसीलिए इनके गीतों में रोचकता दिखाई देती है। इस जाति के लोगों के बारे में अनेकों कहानियाँ प्रचलित हैं, जैसे एक कहानी में कहा जाता है कि देवार जाति के लोग गोंड राजाओं के दरबार में गाया करते थे। किसी कारणवश इन्हें राजदरबार से निकाल दिया गया और तब से घुमंतू जीवन अपनाकर ये कभी इधर तो कभी उधर घूमते रहते हैं। जिन्दगी को और नजदीक से देखते हुए गीत रचते हैं, नृत्य करते हैं। इनके गीतों में संघर्ष, आनन्द और मस्ती का भाव है। रेखा देवार तथा बद्री सिंह कटारिया प्रमुख देवार गीत गायकों में से है। देवार लोगों द्वारा गाये जाने वाले गीत रुजू, ठुंगरु, मांदर के साथ गाये जाते हैं। गीत मौखिक परम्परा पर आधारित होते हैं। बेटियों को उनके घर से उठाकर बाल कल्याण विभाग के अधिकारियों के सुपुर्द कर दिए जाने के बाद सबसे बड़ा संकट इनके माता-पिता को अपने आपको इनके माता-पिता साबित करने में हो रही थी क्योंकि स्कूल का मुख इन बेटियों ने कभी देखा नहीं है तो शासन की योजनाओं की पंहुच इनसे कोसो दूर है, और तो और बेहद गरीब तबके के होने के बाद भी इनको सही तरीके से पीडीएस का सस्ता चांवल तक नहीं मिल पा रहा है। क्योकि इनके मुखिया के पास तो कार्ड है लेकिन उनमें इन बेटियों का नाम ही दर्ज नहीं है। पहले एक राशन कार्ड में पैंतीस किलो चांवल मिलता था लेकिन अब तो प्रति सदस्य सात किलो चांवल दिया जा रहा है और जब इनका नाम ही राशन कार्ड में दर्ज नहीं है तो फिर इन्हें चांवल मिलने का सवाल ही नहीं है। ‘‘दसमत कैना’’ में रमाकांत श्रीवास्तव की पंक्तियों को इनकी निरक्षरता के संबंध में समझा जा सकता है। दसमत कैना की कथा देवार गायन परंपरा की अचूक पहचान हैं। यह गाथा पीढ़ी दर पीढ़ी देवार गायक गाते रहे हैं। अन्य जाति के लोक कलाकारों की तुलना में देवार कलाकार नितांत निरक्षर रहे हैं और उनका उच्चारण भी छत्तीसगढ़ की अन्य जातियों के कलाकारों से भिन्न रहा है। देवार जनजाति का अध्ययन करने वालों ने उन्हें स्थानों के आधार पर वर्गीकृत करते हुए यह सूचित किया है कि रायपुरिया देवारों का नाटय सारंगी और रतनपुरिया देवारों का वाद्य ढुंगरु कहलाता था। इस वाद्य को रुंझू वाद्य भी कहा जाता है। यह वाद्य गज (हाथा) से बजाया जाता है। इस वाद्य की संगत के कारण विशेष प्रकार का सुर लगाये बिना देवारों की गायन पध्दति से न्याय नहीं किया जा सकता। घुमन्तू जाति होने के कारण कथा के पाठ में परिवर्तन होना स्वाभाविक है। ‘‘लोक कथागायन और परिवर्तन का दौर’’ में रमाकांत श्रीवास्तव इनके नाचने-गाने पर लिखते हैं, देवार जाति की स्त्रियां गायन में अपने पुरुषों की संगिनी थीं। नृत्य, गान उनका जातिगत गुण था फिर भी सारंगी पर कथागायन का कार्य अधिकतर पुरुष ही करते थे किन्तु स्त्रियां भी सहज रुप से इस कला को आत्मसात करती थी। यही कारण है कि स्मृतिलोप के इस दौर में कथागायन की देवार कला आज कुकुसदा की रेखा देवार तथा कुछ अन्य कलाकारों के पास विद्यमान है।
‘‘देवार गीत म संस्कृति के महक’’ इस छत्तीसगढ़ी आलेख में देवचंद बंजारे देवार जाति के संबंध में सारी बातें स्पष्ट कर देते हैं। देवचंद बंजारे इसमें लिखते हैं कि ‘‘देवार छत्तीसगढ़ म घुमक्कड़ जाति आवय ये मन ह कोनो जगा म खाम गाड़ के नइ राहय। घुमक्कड़ परम्परा अउ संगीत नाचा के धरोहर ह जिनगी म परान बरोबर जुरे हे। गरीबी अनपढ़ अउ अंधियारी जिनगी के दुख पीरा ल भोगत हे। देवार मन ह अपन लोक गीत के सांस्कृतिक पहचान ल विदेशी डिंगवा गीत म गवां डारिन अउ पेट बिकाली म भुलावत हे भटरी के समान घुमइया अउ एक जगा ले दूसर जगा म उसलत बसत रहिथे। एतिहासिक पन्ना म राजा कल्याण साय के बेरा म देवार जाति के जनम ल माने गेहे। जउन ह मुगल शासक शाहजहाँ के जमाना के रहिन हे। कतको देवार मन ह अपन ल गोपाल राय अउ हीरा खाम क्षत्रिय वंश के मानथे। देवार गीत म अइसन गोठ हा समाये हे। गाय पेट के गोंड गौरहा। देव। पेट म देवार। ये देवार गोंड राजा अउ ऊंखर शासन काल से अब्बड़ परभावित रिहिस। ऊंखर दरबार म बिकट बढ़ाई करत रिहिस। अइसन लगथे कि कोनो गलती म दण्ड या राजद्रोही के दोष म राजदरबार ले बाहर कर दिस होहि। देवार अपन जाति के महिमा ल बखान गीत म करत हे ।
स्वतंत्र पत्रकार अक्षय दुबे साथी देवार जाति के बारे में लिखते है, ‘‘जब मैं अपने बचपने को खंगालता हूँ तो आज भी कुछ धुंधली सी तस्वीरें किसी मोंटाज की तरह आँखों के सामने गुजरने लगती हैं। कभी मृदंग की थाप पर थिरकती हुई एक महिला दिखाई देती है, कभी उनके श्रृंगारिक गीतों के बोल कान में कुछ बुदबुदाने से लगते हैं, कभी गोदना (एक किस्म का टेंटू) गुदती एक बुढ़िया, कभी रीठा और सील-लोढ़ा बेचने के लिए गलियों में गीत अलापती उनकी टोलियाँ, तो कभी सारंगी या चिकारा बजाते उस बड़े बाबा के हाथों को निहार पाता हूँ जो शायद युगों-युगों से संगीत साधना में मग्न है।’’ इसी लेख में स्वतंत्र पत्रकार उनकी आज की स्थिति पर आगे लिखते हैं कि ‘‘गीत-संगीत तो केवल अब उनकी बूढ़ी आँखों और आवाजों में कैद है जो शायद कुछ सालों में दम तोड़ देगी। लेकिन मायूसी, तंगहाली और कूड़े के ढेर में रहने को विवश इन कलाकारों की वर्त्तमान पीढ़ियाँ अशिक्षा, मुफलिसी, बीमारियों से त्रस्त शासन के योजनाओं से दूर हाशिए पर हैं, कला का सरंक्षण तो छोड़िए, इनकी सुध लेने वाला कोई नहीं है। वो बूढ़ी दादी सही बोलती है कि “नाचने गाने से अब खुशी नहीं मिलती।” दर-दर की ठोकरे खाते वे ‘देवार’ जाति के लोग अब संगीत से अलग-थलग और मुख्यधारा से कोसो दूर कचरे के ढेर में जीने के लिए विवश हैं।’’
राजेश सिंह क्षत्री/संपादक, दैनिक छत्तीसगढ़ एक्सप्रेस
कलेक्टोरेट में बैठे देवार जाति के लोग |
‘‘भारत डिस्कव्हरी’’ में देवार जाति के संबंध में उल्लेख है कि देवार छत्तीसगढ़ की भ्रमणशील, घुमंतू जाति है। छत्तीसगढ़ के प्रसिद्ध देवार लोकगीत इसी जाति के लोगों द्वारा गाये जाते हैं। देवार अधिकांशतः यहाँ-वहाँ घूमने वाली भ्रमणशील जाति है। संभवतः इसीलिए इनके गीतों में रोचकता दिखाई देती है। इस जाति के लोगों के बारे में अनेकों कहानियाँ प्रचलित हैं, जैसे एक कहानी में कहा जाता है कि देवार जाति के लोग गोंड राजाओं के दरबार में गाया करते थे। किसी कारणवश इन्हें राजदरबार से निकाल दिया गया और तब से घुमंतू जीवन अपनाकर ये कभी इधर तो कभी उधर घूमते रहते हैं। जिन्दगी को और नजदीक से देखते हुए गीत रचते हैं, नृत्य करते हैं। इनके गीतों में संघर्ष, आनन्द और मस्ती का भाव है। रेखा देवार तथा बद्री सिंह कटारिया प्रमुख देवार गीत गायकों में से है। देवार लोगों द्वारा गाये जाने वाले गीत रुजू, ठुंगरु, मांदर के साथ गाये जाते हैं। गीत मौखिक परम्परा पर आधारित होते हैं। बेटियों को उनके घर से उठाकर बाल कल्याण विभाग के अधिकारियों के सुपुर्द कर दिए जाने के बाद सबसे बड़ा संकट इनके माता-पिता को अपने आपको इनके माता-पिता साबित करने में हो रही थी क्योंकि स्कूल का मुख इन बेटियों ने कभी देखा नहीं है तो शासन की योजनाओं की पंहुच इनसे कोसो दूर है, और तो और बेहद गरीब तबके के होने के बाद भी इनको सही तरीके से पीडीएस का सस्ता चांवल तक नहीं मिल पा रहा है। क्योकि इनके मुखिया के पास तो कार्ड है लेकिन उनमें इन बेटियों का नाम ही दर्ज नहीं है। पहले एक राशन कार्ड में पैंतीस किलो चांवल मिलता था लेकिन अब तो प्रति सदस्य सात किलो चांवल दिया जा रहा है और जब इनका नाम ही राशन कार्ड में दर्ज नहीं है तो फिर इन्हें चांवल मिलने का सवाल ही नहीं है। ‘‘दसमत कैना’’ में रमाकांत श्रीवास्तव की पंक्तियों को इनकी निरक्षरता के संबंध में समझा जा सकता है। दसमत कैना की कथा देवार गायन परंपरा की अचूक पहचान हैं। यह गाथा पीढ़ी दर पीढ़ी देवार गायक गाते रहे हैं। अन्य जाति के लोक कलाकारों की तुलना में देवार कलाकार नितांत निरक्षर रहे हैं और उनका उच्चारण भी छत्तीसगढ़ की अन्य जातियों के कलाकारों से भिन्न रहा है। देवार जनजाति का अध्ययन करने वालों ने उन्हें स्थानों के आधार पर वर्गीकृत करते हुए यह सूचित किया है कि रायपुरिया देवारों का नाटय सारंगी और रतनपुरिया देवारों का वाद्य ढुंगरु कहलाता था। इस वाद्य को रुंझू वाद्य भी कहा जाता है। यह वाद्य गज (हाथा) से बजाया जाता है। इस वाद्य की संगत के कारण विशेष प्रकार का सुर लगाये बिना देवारों की गायन पध्दति से न्याय नहीं किया जा सकता। घुमन्तू जाति होने के कारण कथा के पाठ में परिवर्तन होना स्वाभाविक है। ‘‘लोक कथागायन और परिवर्तन का दौर’’ में रमाकांत श्रीवास्तव इनके नाचने-गाने पर लिखते हैं, देवार जाति की स्त्रियां गायन में अपने पुरुषों की संगिनी थीं। नृत्य, गान उनका जातिगत गुण था फिर भी सारंगी पर कथागायन का कार्य अधिकतर पुरुष ही करते थे किन्तु स्त्रियां भी सहज रुप से इस कला को आत्मसात करती थी। यही कारण है कि स्मृतिलोप के इस दौर में कथागायन की देवार कला आज कुकुसदा की रेखा देवार तथा कुछ अन्य कलाकारों के पास विद्यमान है।
‘‘देवार गीत म संस्कृति के महक’’ इस छत्तीसगढ़ी आलेख में देवचंद बंजारे देवार जाति के संबंध में सारी बातें स्पष्ट कर देते हैं। देवचंद बंजारे इसमें लिखते हैं कि ‘‘देवार छत्तीसगढ़ म घुमक्कड़ जाति आवय ये मन ह कोनो जगा म खाम गाड़ के नइ राहय। घुमक्कड़ परम्परा अउ संगीत नाचा के धरोहर ह जिनगी म परान बरोबर जुरे हे। गरीबी अनपढ़ अउ अंधियारी जिनगी के दुख पीरा ल भोगत हे। देवार मन ह अपन लोक गीत के सांस्कृतिक पहचान ल विदेशी डिंगवा गीत म गवां डारिन अउ पेट बिकाली म भुलावत हे भटरी के समान घुमइया अउ एक जगा ले दूसर जगा म उसलत बसत रहिथे। एतिहासिक पन्ना म राजा कल्याण साय के बेरा म देवार जाति के जनम ल माने गेहे। जउन ह मुगल शासक शाहजहाँ के जमाना के रहिन हे। कतको देवार मन ह अपन ल गोपाल राय अउ हीरा खाम क्षत्रिय वंश के मानथे। देवार गीत म अइसन गोठ हा समाये हे। गाय पेट के गोंड गौरहा। देव। पेट म देवार। ये देवार गोंड राजा अउ ऊंखर शासन काल से अब्बड़ परभावित रिहिस। ऊंखर दरबार म बिकट बढ़ाई करत रिहिस। अइसन लगथे कि कोनो गलती म दण्ड या राजद्रोही के दोष म राजदरबार ले बाहर कर दिस होहि। देवार अपन जाति के महिमा ल बखान गीत म करत हे ।
चिरई म सुन्दर रे पतरेंगवा
सांप सुन्दर मनिहार।
राजा सुन्दर गोंड रे राजा।
जात सुन्दर देवार।
दूसर विद्वान सुशील यदु कहिथे, देवार जात के परमुख तेलासी - देवार जात के जनम मानत हे, देवी देवता मन के किरपा म उंखर जात के नाम देवार होईस। उंखर पुरखा पानाबरस राजू (गीदम) ले आय हवय अउ छत्तीसगढ़ म कई ठन जघा म खरसिया, चन्द्रपुर, कवर्धा, नांदगांव, दुर्ग, पिपरिया आन जघा म घलो छरियाय हवय। आज शहर नगर म देवार डेरा के ठिकाना नइ हे। चिरहा भोगरा अउ छिदिर बिदिर छरियाय हवय अउ नइ लगे लोक कलाकार होहि चिरहा फ टहा अउ मंइला ह पतलूंग ल पहिरे रहिथे। अलकरहा झलक हे अनुभव होथे कि गरीबी अशिक्षा के पर्रा म जिनगी पहावत हे घुमन्तु जिनगी।’’ समाज में देवार जाति के लोगों की खस्ताहाल स्थिति पर कटाक्ष करते हुए देवचंद बंजारे आगे लिखते हैं, देवार जाति ल शासन ह अनुसूचित जनजाति म आरक्षण (सुरक्षित) दे हवय फेर एकोझन मन लाभ नई पा सकिन। बिकास के रद्दा ह कई कोस दूर हवय। देवार जाति म साक्षरता ह बहुत कम हे। देवार अपन समाज ल सभ्य सुसंस्कारित करे बर बीड़ा उठाये के पहली रद्दा म भटकगे। पेट के खातिर दर-दर भटकते सुरा पालना, बंदर नचाना, देवारिन मन के नाच अउ गांव-गांव म किंजर के गोदना गोदत जिनगी चलाथे। गोदना गोदय के परम्परा ह बंद होय के कगार म आ गेहे।’’ देवार लोगों के आजीविका के विषय में देवचंद बंजारे लिखते हैं, ‘‘नोनी पीला मन ह गोदना गोदने अउ रीठा बेचने का काम करत हे। दिन ह बदलत हवय अउ अपन धंधा म रूचि नइ हे लोगन मन गोदना ल पसंद नई करे। देवार समाज म आय के साधन ह नइहे, मरद ह सारंगी बजाकर धंधा करथे। इही ह सामाजिक अउ धन आय के साधन म शामिल हे । माईलोगीन हा कागज, झिल्ली, प्लास्टिक बिनकर पेट पालथे। मरद ह कबाड़ी के धंधा करके आघू बढ़त हवय।’’ नाच-गाने में देवार लोगों की प्रवीणता के बारे में देवचंद बंजारे लिखते हैं, ‘‘देवार छत्तीसगढ़ के बसंती अउ पदमा देवार परमुख कलाकार रिहिस हे ऊंखर गाये गीत म गोंडवानी, कर्णदानी, पलवानी, केंवटीन राउत के गीत, नगेसर कन्या परमुख देवार गाथा म एके ठन आवय। इखर दशा बिगड़ गे अउ मांदर के संग औरत नृत्य करत लोगमन के मनोरंजन करत रिहिस। कलाकारी इखर धंधा रिहिस। बड़का-बड़का दाऊ मालगुजार मन ह मनोरंजन करे बर गाव ले जावत रिहिस। इखर जात म परसिध औरत कलाकार रिहिस हे जिकर नाव गैंदाबाई कलाकार बैलगाड़ी के चक्के में दीया जला के नाच करत रिहिस अउ एक्कीस लोटे ल एक के ऊपर एक रखकर आरे में नाचे के बिशेष दक्षता रिहिस। छत्तीसगढ़ी लोक गीत के रानी ददरिया ह देवार गीत म समाय हे। ददरिया ल देवार संस्कृति के परिणय घलो कहिथे अउ एला गाये बिना मन म जोस नइ आवय।’’ इस समाज के प्रमुख लोगों के बारे में देवचंद बंजारे लिखते हैं कि, ‘‘आज ले 50 साल पहलि बालकी अपने नृत्य अउ गाना गाये बर छत्तीसगढ़ म विख्यात रिहिस हे। इंखर जाति म फि दा बाई, किस्मत बाई देवार, बसंती अउ पदमा छत्तीसगढ़ के परमुख कलाकार रिहिस हे।’’![]() |
देवार जाति की प्रसिद्ध लोक गायिका रेखा देवार |
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दैनिक छत्तीसगढ़ एक्सप्रेस ( Daily Chhattisgarh Express ) का आकर्षक कैटलाग बनकर तैयार
दैनिक छत्तीसगढ़ एक्सप्रेस का आकर्षक कैटलाग |
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दैनिक छत्तीसगढ़ एक्सप्रेस का आकर्षक कैटलाग |
अंतिम पेज में ऊपर छत्तीसगढ़ एक्सप्रेसके मोनो के नीचे इसके बारे में महत्वपूर्ण जानकारी 01 सितंबर 2015 से प्रकाशित, राज्य के 12 से अधिक जिलों में प्रसारित एवं संपूर्ण छत्तीसगढ़ के लिए एक एडिशन होने की जानकारी है जिसके नीचे छत्तीसगढ़ एक्सप्रेसमें प्रकाशित होने वाले विज्ञापनों का रेट कार्ड दिया गया है। कैटलाग के चैथे पन्ने में सबसे नीचे इसके प्रदेश कार्यालय, संभागीय कार्यालय और संपादकीय कार्यालय का पता दिया गया है। कुल मिलाकर कैटलाग में कम शब्दों में दैनिक छत्तीसगढ़ एक्सप्रेस को बेहतरीन तरीके से लोगों को समझाने की कोशिश की गई है जो आकर्षक बन पड़ा है।
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फ्रेंचाइजी ( Franchise ) लेकर बने दैनिक समाचार पत्र के मालिक
Chhattisgarh Express has come up with a franchise model that could set your path as a successful entrepreneur...Explore!
Chhattisgarh Express is Daily News Paper. The company has an unrivalled success story.
Why choose us?
1. Reputed name
2. Trusted brand
3. Low risk with high returns on investment business module
Franchise Facts:
1. Area Required: min. 500 sq ft
2. Investment: Rs. 20lac - Rs. 30lac
Desired Franchisee Profile:
1. Someone who believes that personalization is a great business to be in for the large margins it has to offer
2. Someone who has the zest of youth
3. Someone who can invest into the business
4. Leadership experience in related field will be a benefit
5. A track record of success in providing the highest level of customer service
6. The commitment and resources essential to market
7. Entrepreneurial excellence with zeal to become successful
What Franchisee can expect?
1. Ongoing assistance to franchisee
2. Benefit of a reputed brand name and trust of people
3. Marketing assistance
4. Advertisement support
5. Lucrative returns for investment
Date Commenced Franchising / Distribution : 2016
Franchise Details
Area Investment Franchise/Brand Fee Royalty/Commission
Store Wise Rs. 20lac - 30lac 300000 10%
North New Delhi, Himachal Pradesh, Punjab, Uttaranchal, Uttar Pradesh
South -
East Orissa
West Gujarat, Rajasthan, Maharashtra
Center Chhattisgarh, Madhya Pradesh, Bihar, Jharkhand
Union Territories -
Want to expand International, Nationwide
Exclusive territorial rights to a unit Yes
Performance guarantee to unit franchisee No
Anticipated percentage return on investment 10
Likely pay back period of capital for a unit franchise --
Other investment requirements No
Type of property required for this franchise opportunity Rented
Floor area requirement 400 - 500 Sq.ft . (1 Sq Meter = 10.76 Sq Ft.)
Preferred location of unit franchised outlet -
Detailed operating manuals for franchisees Yes
Where is franchisee training provided? -
Is field assistance available for franchisee? Yes
Will someone from Head Office provides assistance to franchisee in opening the franchise? Yes
What IT systems do you presently have that will be included in the franchise? Yes
How long is the franchise term for? 3 years
Is the term renewable? Yes
Contect _ Rajesh Singh Kshatri, Editor, Chhattisgarh Express
Mo. 07489405373, EMail - hr.chhattisgarhexpress@gmail.com
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1. Area Required: min. 500 sq ft
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Desired Franchisee Profile:
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2. Someone who has the zest of youth
3. Someone who can invest into the business
4. Leadership experience in related field will be a benefit
5. A track record of success in providing the highest level of customer service
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What Franchisee can expect?
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Chhattisgarh Express Team
Chhattisgarh Express : Investment Details
Commenced Dates
Date Commenced Operations : 2015Date Commenced Franchising / Distribution : 2016
Franchise Details
Units
Area Investment Franchise/Brand Fee Royalty/CommissionStore Wise Rs. 20lac - 30lac 300000 10%
Expansion Locations
North New Delhi, Himachal Pradesh, Punjab, Uttaranchal, Uttar PradeshSouth -
East Orissa
West Gujarat, Rajasthan, Maharashtra
Center Chhattisgarh, Madhya Pradesh, Bihar, Jharkhand
Union Territories -
Franchise Details (Optional)
Want to expand International, NationwideExclusive territorial rights to a unit Yes
Performance guarantee to unit franchisee No
Anticipated percentage return on investment 10
Likely pay back period of capital for a unit franchise --
Other investment requirements No
Chhattisgarh Express : Property Details
Type of property required for this franchise opportunity RentedFloor area requirement 400 - 500 Sq.ft . (1 Sq Meter = 10.76 Sq Ft.)
Preferred location of unit franchised outlet -
Chhattisgarh Express Training Details
Detailed operating manuals for franchisees YesWhere is franchisee training provided? -
Is field assistance available for franchisee? Yes
Will someone from Head Office provides assistance to franchisee in opening the franchise? Yes
What IT systems do you presently have that will be included in the franchise? Yes
Chhattisgarh Express Agreement & Term Details
Do you have a standard franchise agreement? YesHow long is the franchise term for? 3 years
Is the term renewable? Yes
Contect _ Rajesh Singh Kshatri, Editor, Chhattisgarh Express
Mo. 07489405373, EMail - hr.chhattisgarhexpress@gmail.com
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लाखों कमाए पत्रकार पेज खरीदकर
पत्रकारिता एक नशा है जिसे हो जाता है फिर हो जाता है, यह बड़ी आसानी से छूटने वाला नहीं है, अब हमें ही देख लो आधा सैकड़ा कामों में किस्मत आजमाने के बाद बार-बार पत्रकारिता की तरफ खींचे चले आए। लोगों ने कहा पत्रकारिता में खूब पैसे बरसते हैं, सोशल मीडिया में बहुत सारे जाने-पहचाने पत्रकारों की आमदनी लाखों-करोड़ों में बताई गई तो एक हम ऐसे रहे जिसे कई-कई महीने बोहनी करने के लिए इंतजार करना पड़ा। हमारे सामने हमारे साथी बड़ी-बड़ी चारपहिया गाड़ी में घुमते रहे और हमें अपनी 6 साल पुरानी प्लेटिना को बिना सर्विसिंग कराए ही कई-कई महीने तक घसीटना पड़ रहा। पत्रकारिता के अट्ठारह वर्षो में एक छोटे से गांव, कस्बे से लेकर राजधानी तक के कई पत्रकारांे से मिलने, उनके समक्ष बैठने और उनके सुख-दुख को जानने का अवसर प्राप्त हुआ जिसमें से अधिकांश पत्रकार अपनी आय को लेकर असंतुष्ट ही नजर आए। पत्रकारिता के अपने लंबे कैरियर में हमारा सामना कई तरह के पत्रकारों से हुआ, यहां लिखने वाले भी नजर आए तो बिकने वाले भी दिखे, प्रतिदिन हजारो लाखों कमाने वाले मिले तो ऐसे लोग भी मिले जिनकी महीने भर की आमदनी भी एक हजार नहीं पंहुच पा रही है, लेकिन सभी अपने-अपने तरीके से पत्रकारिता के पेशे का झंडा बुलंद कर कदमताल करते दिखे।
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पत्रकारों की आय के मामले में मुझे वेतनभोगी और गैरवेतन भोगी पत्रकारों में एक बड़ा अंतर दिखाई पड़ा, ये अंतर शहरी और ग्रामीण होने के कारण भी देखा गया। रायपुर-बिलासपुर जैसे शहरों के लगभग अधिकांश पत्रकार वेतनभोगी होते हैं जिन्हें अपने काम के एवज में अपने संस्थानों से एक निश्चित राशि प्रतिमाह प्राप्त होती है वहीं इन जिला मुख्यालयों से परे ग्रामीण इलाकों, तहसील और ब्लाक मुख्यालयों में जो पत्रकार काम करते हैं वो काम तो पत्रकारों का करते हैं लेकिन मीडिया संस्थान इन्हें अपना एजेंट मानते हैं जो कि एक निश्चित राशि देकर उस क्षेत्र में उस संस्थान के प्रतिनिधि के रूप में कार्य कर रहे होते हैं। काम के दौरान पत्रकारों के समक्ष किस प्रकार की चुनौतियां आती है इसका अध्ययन करना हो तो इनके करीब जाकर इन्हें जानने समझने से सारी स्थिति स्पष्ट हो जाती है। ऐसे लोग ज्यादातर ग्रामीण क्षेत्रों से होते हैं इसलिए हम इन्हें ग्रामीण पत्रकार के रूप में भी परिभाषित कर सकते हैं। ऐसे लोेगों को अपने क्षेत्र में संबंधित अखबारों की प्रतियों का वितरण करना होता है तथा समाचार और विज्ञापन प्राप्त करना होता है। प्रतियों और विज्ञापन में इन्हें कमीशन प्राप्त होते हैं जो कि संस्थान के हिसाब से 10 प्रतिशत से प्रारंभ होकर 50 प्रतिशत तक हो सकती है। मेरे हिसाब से ग्रामीण क्षेत्र में पत्रकारिता आज भी जोखिम भरा काम होता है क्योकि इसमें मान-सम्मान तो खूब मिलता है लेकिन उनकी यही खूबी भविष्य में कई स्थानों पर उनके लिए घातक साबित होती है क्यांेकि युवा अवस्था में पत्रकार के रूप में पहचान बना चुके ये लोग जब पर्याप्त आमदनी नहीं होने पर किसी अन्य पेशे को अपनाना चाहते हैं तो लोग इन्हें पत्रकार मानते हुए अन्य कामों में लेने को तैयार नहीं होते। ग्रामीण पत्रकारों को प्रतियों में जो आमदनी होती है वो तो उनके हाकरों को देने के लायक भी नहीं होती तथा घर से कुछ पैसे लगाकर ही हाकर रखा जा सकता है ऐसी स्थिति में उनके समक्ष आमदनी का सबसे बड़ा साधन विज्ञापन भी रह जाता है, लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों मंे जो सबसे बड़ी दिक्कत होती है वह वर्ष भर नियमित रूप से मिलने वाले विज्ञापनों की होती है। ग्रामीण क्षेत्रों में विज्ञापन का मतलब पन्द्रह अगस्त, छब्बीस जनवरी, और दीपावली ही होता है जिसमें ग्रामीण पत्रकारों को कुछ विज्ञापन नसीब होते हैं। इसके अतिरिक्त आजकल सांसद, विधायक अथवा प्रमुख नेताओं के जन्मदिवस, पुण्यतिथि, शाला प्रवेशोत्सव और बाबा साहेब डा. भीमराव अंबेडकर तथा गुरूघासीदास बाबा जयंती जैसे कुछ अन्य अवसरों पर भी विज्ञापन प्राप्त होने लगे हैं।
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ग्रामीण पत्रकारों को मिलने वाले ये वो विज्ञापन होते हैं जो किसी संस्थान के नाम पर कम और पत्रकारों की खुद की छवि के आधार पर ज्यादा प्राप्त होते हैं। सही तरीके से कार्य करने पर ब्लाक अथवा तहसील स्तर का पत्रकार भी अपने नाम के सहारे कम से कम 50 हजार का विज्ञापन प्राप्त कर लेता है। बड़े बैनरों में इन पत्रकारों के इसके एवज मेें दस से पन्द्रह प्रतिशत तक ही कमीशन प्राप्त होते हैं अर्थात 50 हजार के विज्ञापन करने पर उन्हें साढ़े सात हजार रूपए तक आय प्राप्त हो सकते हैं वो भी पूरे 100 प्रतिशत वसूली होने के बाद। साल में ऐसे तीन ही अवसर आते हैं पहला छब्बीस जनवरी, फिर स्वतंत्रता दिवस और फिर दीपावली मतलब विज्ञापन को लेकर उस ग्रामीण पत्रकार की पूरी आमदनी 22 हजार से 25 हजार वार्षिक की ही होती है उसमें भी पेट्रोल और मोबाईल का खर्चा उसका खुद का। जाहिर सी बात है ऐसी स्थिति में पत्रकार का खुद का पाकिट खर्च ही निकल पाना मुश्किल होता है, घर परिवार को पालना और सूखी रखना तो बहुत दूर की बात है। ऐसी स्थिति में पत्रकारों के समक्ष सबसे अच्छी स्थिति पेज खरीदने की रहती है।
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क्या होता है पेज खरीदना
पेज खरीदने से आशय किसी पेज में विज्ञापन छापने के लिए बोली लगाने से है। अधिकांश मीडिया संस्थान आजकल अपने प्रतिनिधियों को इस तरह की पेज एक निश्चित राशि लेकर दे-दे रहे हैं।
क्या होता है फायदा
आम तौर पर मीडिया में जो विज्ञापन लगते हैं उसमें विज्ञापन प्रकाशित होने के बाद संबंधित कस्टमर को विज्ञापन की बिल थमाई जाती है जिसके बाद विज्ञापन की राशि का भुगतान किया जाता है, कुछ स्थानों पर विज्ञापन का भुगतान हफ्ते भर के भीतर हो जाता है वहीं अधिकांश मामलों में इसके लिए महीने से लेकर वर्ष भर का इंतजार करना पड़ता है, पेज बेचने के मामले में मीडिया संस्थान अपने उस प्रतिनिधि से उस पेज की राशि एडवांस में लेता है जिससे उसे नगद राशि तुरंत प्राप्त हो जाती है वहीं प्रतिनिधियों का ये फायदा होता है कि उस पेज को एक निश्चित राशि में खरीदने के बाद वो उसमंे जितनी राशि का चाहे विज्ञापन लगा सकता है। हालांकि ऐसे मामलांे में अपने संस्थान को नगद भुगतान करना पड़ता है लेकिन अधिकांश मामलों मंे आमदनी सामान्य आमदनी से बहुत ज्यादा होती है।
ऐसे समझे पेज खरीदने के गणित को
दैनिक समाचार पत्र छत्तीसगढ़ एक्सप्रेस में वर्तमान में विज्ञापन का बेसिक दर 35 रूपए वर्ग सेंटीमीटर अथवा 140 रूपए कालम सेंटीमीटर है जिसके आधार पर एक पेज में लगे विज्ञापन का मूल्य 54 हजार रूपए होता है, दो पेज मतलब 1 लाख आठ हजार रूपए। विज्ञापनदाताओं के द्वारा मोलभाव की स्थिति में इसमें 19-20 संभव है। अब हम किसी ब्लाक संवाददाता की बात करते हैं जिसके अपने ब्लाक मुख्यालय में आने वाले सभी सरपंच तथा सचिवों से बेहतर संबंध है। अमूमन हर ब्लाक में 50 से 100 तक ग्राम पंचायत शामिल रहती है। यहां हम 50 पंचायतांें वाले ब्लाक की बात करते हैं। ग्रामीण संवाददाता 50 सरपंचों से दो-दो हजार रूपए के विज्ञापन लेता है तो उसकी राशि एक लाख होती है। अब इन दो पेजों में सीधे विज्ञापन देने पर उसे एक लाख रूपए संस्थान को देना होता है तथा 25 हजार रूपए ग्रामीण संवाददाता के लिए बचते हैं। वहीं संवाददाता अगर इन पेजों को हमें नगर राशि देकर खरीद लेता है तो अपने ग्रामीण संवाददाताआंे की बेहतरी के लिए हम 15 हजार रूपए में अपने संवाददाता को यह पेज उपलब्ध करा देते हैं ऐसी स्थिति में इन दो पेजों में उसके सभी विज्ञापन आ जाते हैं तथा वो पंचायतों से दो-दो हजार ही लेता है लेकिन उसे हमें 30 हजार ही देने होते हैं तथा शेष 70 हजार उसके खुद के होते हैं।
तो है ना पेज खरीदना ग्रामीण पत्रकारों के लिए फायदे का काम। किसी प्रमुख अवसर पर देश भर के हमारे ग्रामीण पत्रकार अपने विज्ञापन को दैनिक छत्तीसगढ़ एक्सप्रेस में लगवाने चाहे तो वो हमें मोबाईल नंबर 7489405373 पर संपर्क कर सकते हैं।
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पत्रकारों की आय के मामले में मुझे वेतनभोगी और गैरवेतन भोगी पत्रकारों में एक बड़ा अंतर दिखाई पड़ा, ये अंतर शहरी और ग्रामीण होने के कारण भी देखा गया। रायपुर-बिलासपुर जैसे शहरों के लगभग अधिकांश पत्रकार वेतनभोगी होते हैं जिन्हें अपने काम के एवज में अपने संस्थानों से एक निश्चित राशि प्रतिमाह प्राप्त होती है वहीं इन जिला मुख्यालयों से परे ग्रामीण इलाकों, तहसील और ब्लाक मुख्यालयों में जो पत्रकार काम करते हैं वो काम तो पत्रकारों का करते हैं लेकिन मीडिया संस्थान इन्हें अपना एजेंट मानते हैं जो कि एक निश्चित राशि देकर उस क्षेत्र में उस संस्थान के प्रतिनिधि के रूप में कार्य कर रहे होते हैं। काम के दौरान पत्रकारों के समक्ष किस प्रकार की चुनौतियां आती है इसका अध्ययन करना हो तो इनके करीब जाकर इन्हें जानने समझने से सारी स्थिति स्पष्ट हो जाती है। ऐसे लोग ज्यादातर ग्रामीण क्षेत्रों से होते हैं इसलिए हम इन्हें ग्रामीण पत्रकार के रूप में भी परिभाषित कर सकते हैं। ऐसे लोेगों को अपने क्षेत्र में संबंधित अखबारों की प्रतियों का वितरण करना होता है तथा समाचार और विज्ञापन प्राप्त करना होता है। प्रतियों और विज्ञापन में इन्हें कमीशन प्राप्त होते हैं जो कि संस्थान के हिसाब से 10 प्रतिशत से प्रारंभ होकर 50 प्रतिशत तक हो सकती है। मेरे हिसाब से ग्रामीण क्षेत्र में पत्रकारिता आज भी जोखिम भरा काम होता है क्योकि इसमें मान-सम्मान तो खूब मिलता है लेकिन उनकी यही खूबी भविष्य में कई स्थानों पर उनके लिए घातक साबित होती है क्यांेकि युवा अवस्था में पत्रकार के रूप में पहचान बना चुके ये लोग जब पर्याप्त आमदनी नहीं होने पर किसी अन्य पेशे को अपनाना चाहते हैं तो लोग इन्हें पत्रकार मानते हुए अन्य कामों में लेने को तैयार नहीं होते। ग्रामीण पत्रकारों को प्रतियों में जो आमदनी होती है वो तो उनके हाकरों को देने के लायक भी नहीं होती तथा घर से कुछ पैसे लगाकर ही हाकर रखा जा सकता है ऐसी स्थिति में उनके समक्ष आमदनी का सबसे बड़ा साधन विज्ञापन भी रह जाता है, लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों मंे जो सबसे बड़ी दिक्कत होती है वह वर्ष भर नियमित रूप से मिलने वाले विज्ञापनों की होती है। ग्रामीण क्षेत्रों में विज्ञापन का मतलब पन्द्रह अगस्त, छब्बीस जनवरी, और दीपावली ही होता है जिसमें ग्रामीण पत्रकारों को कुछ विज्ञापन नसीब होते हैं। इसके अतिरिक्त आजकल सांसद, विधायक अथवा प्रमुख नेताओं के जन्मदिवस, पुण्यतिथि, शाला प्रवेशोत्सव और बाबा साहेब डा. भीमराव अंबेडकर तथा गुरूघासीदास बाबा जयंती जैसे कुछ अन्य अवसरों पर भी विज्ञापन प्राप्त होने लगे हैं।
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ग्रामीण पत्रकारों को मिलने वाले ये वो विज्ञापन होते हैं जो किसी संस्थान के नाम पर कम और पत्रकारों की खुद की छवि के आधार पर ज्यादा प्राप्त होते हैं। सही तरीके से कार्य करने पर ब्लाक अथवा तहसील स्तर का पत्रकार भी अपने नाम के सहारे कम से कम 50 हजार का विज्ञापन प्राप्त कर लेता है। बड़े बैनरों में इन पत्रकारों के इसके एवज मेें दस से पन्द्रह प्रतिशत तक ही कमीशन प्राप्त होते हैं अर्थात 50 हजार के विज्ञापन करने पर उन्हें साढ़े सात हजार रूपए तक आय प्राप्त हो सकते हैं वो भी पूरे 100 प्रतिशत वसूली होने के बाद। साल में ऐसे तीन ही अवसर आते हैं पहला छब्बीस जनवरी, फिर स्वतंत्रता दिवस और फिर दीपावली मतलब विज्ञापन को लेकर उस ग्रामीण पत्रकार की पूरी आमदनी 22 हजार से 25 हजार वार्षिक की ही होती है उसमें भी पेट्रोल और मोबाईल का खर्चा उसका खुद का। जाहिर सी बात है ऐसी स्थिति में पत्रकार का खुद का पाकिट खर्च ही निकल पाना मुश्किल होता है, घर परिवार को पालना और सूखी रखना तो बहुत दूर की बात है। ऐसी स्थिति में पत्रकारों के समक्ष सबसे अच्छी स्थिति पेज खरीदने की रहती है।
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क्या होता है पेज खरीदना
पेज खरीदने से आशय किसी पेज में विज्ञापन छापने के लिए बोली लगाने से है। अधिकांश मीडिया संस्थान आजकल अपने प्रतिनिधियों को इस तरह की पेज एक निश्चित राशि लेकर दे-दे रहे हैं।
क्या होता है फायदा
आम तौर पर मीडिया में जो विज्ञापन लगते हैं उसमें विज्ञापन प्रकाशित होने के बाद संबंधित कस्टमर को विज्ञापन की बिल थमाई जाती है जिसके बाद विज्ञापन की राशि का भुगतान किया जाता है, कुछ स्थानों पर विज्ञापन का भुगतान हफ्ते भर के भीतर हो जाता है वहीं अधिकांश मामलों में इसके लिए महीने से लेकर वर्ष भर का इंतजार करना पड़ता है, पेज बेचने के मामले में मीडिया संस्थान अपने उस प्रतिनिधि से उस पेज की राशि एडवांस में लेता है जिससे उसे नगद राशि तुरंत प्राप्त हो जाती है वहीं प्रतिनिधियों का ये फायदा होता है कि उस पेज को एक निश्चित राशि में खरीदने के बाद वो उसमंे जितनी राशि का चाहे विज्ञापन लगा सकता है। हालांकि ऐसे मामलांे में अपने संस्थान को नगद भुगतान करना पड़ता है लेकिन अधिकांश मामलों मंे आमदनी सामान्य आमदनी से बहुत ज्यादा होती है।
ऐसे समझे पेज खरीदने के गणित को
दैनिक समाचार पत्र छत्तीसगढ़ एक्सप्रेस में वर्तमान में विज्ञापन का बेसिक दर 35 रूपए वर्ग सेंटीमीटर अथवा 140 रूपए कालम सेंटीमीटर है जिसके आधार पर एक पेज में लगे विज्ञापन का मूल्य 54 हजार रूपए होता है, दो पेज मतलब 1 लाख आठ हजार रूपए। विज्ञापनदाताओं के द्वारा मोलभाव की स्थिति में इसमें 19-20 संभव है। अब हम किसी ब्लाक संवाददाता की बात करते हैं जिसके अपने ब्लाक मुख्यालय में आने वाले सभी सरपंच तथा सचिवों से बेहतर संबंध है। अमूमन हर ब्लाक में 50 से 100 तक ग्राम पंचायत शामिल रहती है। यहां हम 50 पंचायतांें वाले ब्लाक की बात करते हैं। ग्रामीण संवाददाता 50 सरपंचों से दो-दो हजार रूपए के विज्ञापन लेता है तो उसकी राशि एक लाख होती है। अब इन दो पेजों में सीधे विज्ञापन देने पर उसे एक लाख रूपए संस्थान को देना होता है तथा 25 हजार रूपए ग्रामीण संवाददाता के लिए बचते हैं। वहीं संवाददाता अगर इन पेजों को हमें नगर राशि देकर खरीद लेता है तो अपने ग्रामीण संवाददाताआंे की बेहतरी के लिए हम 15 हजार रूपए में अपने संवाददाता को यह पेज उपलब्ध करा देते हैं ऐसी स्थिति में इन दो पेजों में उसके सभी विज्ञापन आ जाते हैं तथा वो पंचायतों से दो-दो हजार ही लेता है लेकिन उसे हमें 30 हजार ही देने होते हैं तथा शेष 70 हजार उसके खुद के होते हैं।
तो है ना पेज खरीदना ग्रामीण पत्रकारों के लिए फायदे का काम। किसी प्रमुख अवसर पर देश भर के हमारे ग्रामीण पत्रकार अपने विज्ञापन को दैनिक छत्तीसगढ़ एक्सप्रेस में लगवाने चाहे तो वो हमें मोबाईल नंबर 7489405373 पर संपर्क कर सकते हैं।
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पैसे तो बहुत होंगे पत्रकार जो है
राजेश सिंह क्षत्री
मेरे एक करीबी रिश्तेदार हैं, आमदनी यही कोई 35 हजार मासिक है। उस महाशय को हमेशा यह लगता रहा है कि मेरे पास बहुत पैसे होंगे, कारण मैं पत्रकार जो हूं। आज से कोई 11 साल पहले पत्रकारिता के नशे में चूर जब मैंने अपने अधिवक्ता के व्यवसाय से पूरी तरह से किनारा करते हुए इलेक्ट्रानिक मीडिया सहारा समय एमपी/सीजी का दामन थामा तब यह मेरी एक वर्ष की आमदनी रहती थी। आज भी बहुत सारे अवसर ऐसे होते हैं जब जेब में एक फूटी कौड़ी नहीं होती और समाचार के कव्हरेज में लगने वाले खर्च को छोड़ दिया जाए तो बहुत सारे अर्जेंट कार्यो को भी मुझे किसी अन्य दिन के लिए अनिश्चित काल के लिए तब तक टालना होता है जब तक मेरे पास उस कार्य को करने के लिए पैसे नहीं आ जाए।
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सिर्फ मेरी ही नहीं यह मुझ जैसे अधिकांश पत्रकारों की कहानी है, क्योंकि अधिकांश पत्रकारों की जिंदगी एक जैसी होती है। किसी को पत्रकारिता का नशा होता है तो पत्रकारिता किसी का धर्म होता है, कोई इसे पूजा समझकर करता है। स्थिति ऐसी होती है कि हम अपनी मजबूरी किसी अन्य को बता भी नहीं सकते। जो अपेक्षा मेरे रिश्तेदार को मुझसे रही वह आपके रिश्तेदार को भी आपसे रहती है।
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जब वह आपके सामने कहता है कि आपके पास तो बहुत पैसा होगा, आपकी तो बात ही निराली है, आप से तो सभी डरते होंगे। आपका तो मजा ही मजा है, आप तो कहीं भी बिंदास आ जा सकते हैं, आपको रोकने वाला कौन है भला। तब उनकी उम्मीदों और अपेक्षाओं को देखकर आपको भी ऐसा महसूस होता होगा कि खींचकर उसे एक झापड़ लगाकर चुप करा दे, या फिर चीख-चीखकर उससे कहे, मेरे पास ऐसा कुछ भी नहीं है, मैं पत्रकार जो ठहरा जो अपनी बेबसी को न तो किसी को बता सकता है और न ही सुना सकता है।
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जो दुनिया की बातों को अपनी कलम के ताकत के माध्यम से सामने लाता है लेकिन अपनी बेबसी की पीड़ा किसी को नहीं कह पाता। हां, हम पत्रकार हैं, पर पैसे ... ये कलम की जो ताकत है वह दूसरों की जेब में रहने वाले लाख-दो लाख से ज्यादा है।
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Paise to bahut honge patrakar jo hai |
मेरे एक करीबी रिश्तेदार हैं, आमदनी यही कोई 35 हजार मासिक है। उस महाशय को हमेशा यह लगता रहा है कि मेरे पास बहुत पैसे होंगे, कारण मैं पत्रकार जो हूं। आज से कोई 11 साल पहले पत्रकारिता के नशे में चूर जब मैंने अपने अधिवक्ता के व्यवसाय से पूरी तरह से किनारा करते हुए इलेक्ट्रानिक मीडिया सहारा समय एमपी/सीजी का दामन थामा तब यह मेरी एक वर्ष की आमदनी रहती थी। आज भी बहुत सारे अवसर ऐसे होते हैं जब जेब में एक फूटी कौड़ी नहीं होती और समाचार के कव्हरेज में लगने वाले खर्च को छोड़ दिया जाए तो बहुत सारे अर्जेंट कार्यो को भी मुझे किसी अन्य दिन के लिए अनिश्चित काल के लिए तब तक टालना होता है जब तक मेरे पास उस कार्य को करने के लिए पैसे नहीं आ जाए।
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सिर्फ मेरी ही नहीं यह मुझ जैसे अधिकांश पत्रकारों की कहानी है, क्योंकि अधिकांश पत्रकारों की जिंदगी एक जैसी होती है। किसी को पत्रकारिता का नशा होता है तो पत्रकारिता किसी का धर्म होता है, कोई इसे पूजा समझकर करता है। स्थिति ऐसी होती है कि हम अपनी मजबूरी किसी अन्य को बता भी नहीं सकते। जो अपेक्षा मेरे रिश्तेदार को मुझसे रही वह आपके रिश्तेदार को भी आपसे रहती है।
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जब वह आपके सामने कहता है कि आपके पास तो बहुत पैसा होगा, आपकी तो बात ही निराली है, आप से तो सभी डरते होंगे। आपका तो मजा ही मजा है, आप तो कहीं भी बिंदास आ जा सकते हैं, आपको रोकने वाला कौन है भला। तब उनकी उम्मीदों और अपेक्षाओं को देखकर आपको भी ऐसा महसूस होता होगा कि खींचकर उसे एक झापड़ लगाकर चुप करा दे, या फिर चीख-चीखकर उससे कहे, मेरे पास ऐसा कुछ भी नहीं है, मैं पत्रकार जो ठहरा जो अपनी बेबसी को न तो किसी को बता सकता है और न ही सुना सकता है।
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पत्रकारिता में योग्यता ही सब कुछ नहीं होता
राजेश सिंह क्षत्री
मेरे बहुत ही करीबी मित्र अनिल तंबोली की एक बार फिर से ईटीव्ही के जांजगीर-चांपा ब्यूरो के रूप में इलेक्ट्रानिक मीडिया में वापसी हुई है। अनिल के पास जैन टीव्ही से लेकर पी-7 तक और जी 24 घंटे छत्तीसगढ़ से लेकर आईबीसी 24 तक इलेक्ट्रानिक मीडिया का लंबा अनुभव रहा है उसके बाद भी आईबीसी 24 से बाहर होने के बाद उन्हें इलेक्ट्रानिक मीडिया में फिर से वापस आने में एक वर्ष से भी ज्यादा का लंबा समय लग गया जबकि मेरे हिसाब से अनिल तंबोली में वो तमाम गुण है जो कि एक इलेक्ट्रानिक मीडिया के पत्रकार में होने चाहिए।
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इसी मामले में छत्तीसगढ़ एक्सप्रेस कार्यालय में चर्चा चल पड़ी कि एक पत्रकार की नियुक्ति आखिर किस आधार पर होती है। इलेक्ट्रानिक मीडिया में जांजगीर-चांपा जिले में मैं ऐसा अकेला पत्रकार रहा हूं जिसने दस साल से भी ज्यादा का समय एक ही संस्थान में गुजारे हैं और उसके बाद जिसने स्वेच्छा से इस्तीफा देकर उस संस्थान को अलविदा कहा है। मेरे सामने सहारा समय में ही हमारे चैनल हेड से लेकर स्टेट ब्यूरो तक बदलते रहे वहीं कई इलेक्ट्रानिक मीडिया के उद्भव से लेकर पराभव तक हुए, लोग आते जाते रहे जिसमें एक से बढ़कर एक धुरंधर भी रहे लेकिन समय के साथ या तो वो निकाल दिए गए या फिर बदल दिए गए। वो उन संस्थानों की अपनी पालिसी रही जिस पर टीका-टिप्पणी करना उचित नहीं है। इन सबके बीच अनुभव बहुत कुछ सीखा गया। सबसे बड़ी बात जो देखने में आई वो यह कि पत्रकारिता में योग्यता ही सब कुछ नहीं होता बल्कि साथ ही साथ आपकी किस्मत और आपके बैनर के प्रमुख व्यक्ति से आपके संबंध भी इसमें एक बड़ा योगदान तय करते हैं।
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उदाहरण के रूप में किसी भी चैनल में यदि ऊपरी स्तर पर फेरबदल होता है तो जो प्रमुख व्यक्ति आता है उसे अपना परफार्मेंस देने के लिए ऐसे लोगों की आवश्यकता महसूस होती है जो उनके अपने हो और जिनकी बदौलत वो अपने समूह के परफार्मेंस को बेहतर बना सके। उस समय उसे लगता है कि पुराने हेड के साथ भी तो यही टीम कार्य कर रही थी जिसके अपेक्षाकृत परीणाम नहीं मिलने पर उन्हें चेंज किया गया है इसलिए वो उनके स्थान पर ऐसे लोगों की टीम सामने लाना चाहते हैं जो कि उनके निकट के हो और जिन्हें वो ज्यादा अच्छे से जानते समझते हो इसलिए वो ऐसे लोगों को अपनी टीम में रखते हैं, वहीं फेरबदल की दूसरी वजह उसके खुद के मन में असुरक्षा की भावना भी होती है जिससे उसको लगता है कि पुराने लोग तो पुराने बास के करीबी होंगे जो मौका देखकर उन्हें कभी भी निपटा सकते हैं इसलिए वो अपने लोगों की टीम बनाना चाहते हैं
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इसलिए अगर आप अपने आपको बेहतर पत्रकार मानते हैं उसके बाद भी आपको आपके संस्थान से हटा दिया जाता है तो अपने काम को लेकर निराश बिल्कुल भी न होइए क्योंकि पत्रकारिता के साथ-साथ सभी व्यवसायों में भी यही फंडा लागू है। हो सकता है ऊपर वाले ने आपके लिए इससे बेहतर सोचा होगा इसलिए मेहनत और संघर्ष जारी रखें, उसके बेहतर परिणाम जरूर सामने आयेंगे।
मेरे बहुत ही करीबी मित्र अनिल तंबोली की एक बार फिर से ईटीव्ही के जांजगीर-चांपा ब्यूरो के रूप में इलेक्ट्रानिक मीडिया में वापसी हुई है। अनिल के पास जैन टीव्ही से लेकर पी-7 तक और जी 24 घंटे छत्तीसगढ़ से लेकर आईबीसी 24 तक इलेक्ट्रानिक मीडिया का लंबा अनुभव रहा है उसके बाद भी आईबीसी 24 से बाहर होने के बाद उन्हें इलेक्ट्रानिक मीडिया में फिर से वापस आने में एक वर्ष से भी ज्यादा का लंबा समय लग गया जबकि मेरे हिसाब से अनिल तंबोली में वो तमाम गुण है जो कि एक इलेक्ट्रानिक मीडिया के पत्रकार में होने चाहिए।
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इसी मामले में छत्तीसगढ़ एक्सप्रेस कार्यालय में चर्चा चल पड़ी कि एक पत्रकार की नियुक्ति आखिर किस आधार पर होती है। इलेक्ट्रानिक मीडिया में जांजगीर-चांपा जिले में मैं ऐसा अकेला पत्रकार रहा हूं जिसने दस साल से भी ज्यादा का समय एक ही संस्थान में गुजारे हैं और उसके बाद जिसने स्वेच्छा से इस्तीफा देकर उस संस्थान को अलविदा कहा है। मेरे सामने सहारा समय में ही हमारे चैनल हेड से लेकर स्टेट ब्यूरो तक बदलते रहे वहीं कई इलेक्ट्रानिक मीडिया के उद्भव से लेकर पराभव तक हुए, लोग आते जाते रहे जिसमें एक से बढ़कर एक धुरंधर भी रहे लेकिन समय के साथ या तो वो निकाल दिए गए या फिर बदल दिए गए। वो उन संस्थानों की अपनी पालिसी रही जिस पर टीका-टिप्पणी करना उचित नहीं है। इन सबके बीच अनुभव बहुत कुछ सीखा गया। सबसे बड़ी बात जो देखने में आई वो यह कि पत्रकारिता में योग्यता ही सब कुछ नहीं होता बल्कि साथ ही साथ आपकी किस्मत और आपके बैनर के प्रमुख व्यक्ति से आपके संबंध भी इसमें एक बड़ा योगदान तय करते हैं।
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उदाहरण के रूप में किसी भी चैनल में यदि ऊपरी स्तर पर फेरबदल होता है तो जो प्रमुख व्यक्ति आता है उसे अपना परफार्मेंस देने के लिए ऐसे लोगों की आवश्यकता महसूस होती है जो उनके अपने हो और जिनकी बदौलत वो अपने समूह के परफार्मेंस को बेहतर बना सके। उस समय उसे लगता है कि पुराने हेड के साथ भी तो यही टीम कार्य कर रही थी जिसके अपेक्षाकृत परीणाम नहीं मिलने पर उन्हें चेंज किया गया है इसलिए वो उनके स्थान पर ऐसे लोगों की टीम सामने लाना चाहते हैं जो कि उनके निकट के हो और जिन्हें वो ज्यादा अच्छे से जानते समझते हो इसलिए वो ऐसे लोगों को अपनी टीम में रखते हैं, वहीं फेरबदल की दूसरी वजह उसके खुद के मन में असुरक्षा की भावना भी होती है जिससे उसको लगता है कि पुराने लोग तो पुराने बास के करीबी होंगे जो मौका देखकर उन्हें कभी भी निपटा सकते हैं इसलिए वो अपने लोगों की टीम बनाना चाहते हैं
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इसलिए अगर आप अपने आपको बेहतर पत्रकार मानते हैं उसके बाद भी आपको आपके संस्थान से हटा दिया जाता है तो अपने काम को लेकर निराश बिल्कुल भी न होइए क्योंकि पत्रकारिता के साथ-साथ सभी व्यवसायों में भी यही फंडा लागू है। हो सकता है ऊपर वाले ने आपके लिए इससे बेहतर सोचा होगा इसलिए मेहनत और संघर्ष जारी रखें, उसके बेहतर परिणाम जरूर सामने आयेंगे।
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जब लोग आपसे जलने लगे मतलब आप सफल हो रहे हो
जीवन और मृत्यु के बीच में एक बहुत ही पतली सी रेखा है, जब तक मनुष्य की सांस चल रही है तब तक वह जीवित है और जिस घड़ी सांस रूक जाए उसकी मृत्यु हो जाती है। ऐसे ही सफलता और असफलता के बीच एक पतली सी महीन सी रेखा है। कई बार लोगों को समझ नहीं आता कि वो सफल हो रहे हैं अथवा असफल हो रहे हैं। चूंकि कई बार सफलता का अहसास काफी विलंब से होता है इसलिए लोगों को यह लगने लगता है कि वह असफल हो गया है और उसी क्षण वह अपनी कोशिशें बंद कर देता है नतीजन उसे हार का मुंह देखना पड़ता है। हाकी, फुटबाल, कबड्डी जैसे खेलों को देखते समय कोई अगर पूछे कि कौन सी टीम आगे चल रही है तो हम तपाक से जवाब दे देते हैं कि अमुक टीम आगे है लेकिन बात जब क्रिकेट की हो तो अंतिम गेंद के फेंके जाने से पहले जवाब देना थोड़ा मुश्किल होता है क्योंकि उसमें पहले किसी एक टीम को अपनी पूरी प्रतिभा दिखाकर रन बनाने का मौका मिलता है फिर दूसरी टीम को उस रन को पार करना होता है।
इसे भी पढ़े: पत्रकारिता में योग्यता ही सब कुछ नहीं होता
पहली पारी खेलने वाली टीम के द्वारा कम स्कोर बनाए जाने पर हम उम्मीद तो करते हैं कि दूसरी टीम जीत जाएगी लेकिन दावे के साथ नहीं कह सकते वहीं पहली पारी खेलने वाली टीम के चार सौ के स्कोर बनाने के बाद भी यही बात लागू होती है क्योंकि दोनों स्थिति में कई मौको पर विरोधी टीम को जीतते देखा गया है वहीं अगर कम स्कोर बनाने पर पहली टीम प्रारंभ से ही हार मान जाए अथवा ज्यादा स्कोर खड़ा करने पर दूसरी टीम के लोगों को जीत नामुमकीन लगे तो उनका सफल होना मुश्किल है।
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यही बात जीवन में भी लागू होता है। कई स्थानों पर जीवन में सफलता की रफ्तार इतनी धीमी होती है कि हमें लगने लगता है कि बाजी तो हमारे हाथ से गई और इस खेल में हमारी हार निश्चित है, ऐसे समय में आपको अपने आस-पास नजर दौड़ानी चाहिए।
इसे भी पढ़े: पैसे तो बहुत होंगे पत्रकार जो है
अगर आपका अहसास हो कि आपके चाहने वाले आपको देखते हुए मुंह फेर रहे हैं अथवा जल रहे हैं मतलब साफ है आप सफल हो रहे हैं ऐसी स्थिति में आप अन्यथा नही लेते हुए अपना काम और भी मनोयोग से करो क्योंकि लोगों को आप को देखते हुए मुंह फेर लेना ही इस बात की ओर इशारा कर रही है कि आप कुछ हटकर कार्य कर रहे हो जिसमें आप सफल हो रहे हो।
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पहली पारी खेलने वाली टीम के द्वारा कम स्कोर बनाए जाने पर हम उम्मीद तो करते हैं कि दूसरी टीम जीत जाएगी लेकिन दावे के साथ नहीं कह सकते वहीं पहली पारी खेलने वाली टीम के चार सौ के स्कोर बनाने के बाद भी यही बात लागू होती है क्योंकि दोनों स्थिति में कई मौको पर विरोधी टीम को जीतते देखा गया है वहीं अगर कम स्कोर बनाने पर पहली टीम प्रारंभ से ही हार मान जाए अथवा ज्यादा स्कोर खड़ा करने पर दूसरी टीम के लोगों को जीत नामुमकीन लगे तो उनका सफल होना मुश्किल है।
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यही बात जीवन में भी लागू होता है। कई स्थानों पर जीवन में सफलता की रफ्तार इतनी धीमी होती है कि हमें लगने लगता है कि बाजी तो हमारे हाथ से गई और इस खेल में हमारी हार निश्चित है, ऐसे समय में आपको अपने आस-पास नजर दौड़ानी चाहिए।
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अगर आपका अहसास हो कि आपके चाहने वाले आपको देखते हुए मुंह फेर रहे हैं अथवा जल रहे हैं मतलब साफ है आप सफल हो रहे हैं ऐसी स्थिति में आप अन्यथा नही लेते हुए अपना काम और भी मनोयोग से करो क्योंकि लोगों को आप को देखते हुए मुंह फेर लेना ही इस बात की ओर इशारा कर रही है कि आप कुछ हटकर कार्य कर रहे हो जिसमें आप सफल हो रहे हो।
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अनजाने कर्म का फल
एक व्यक्ति ने अपने गुरु से पूछा मेरे कर्मचारी मेरे प्रति ईमानदार नहीं है, मेरी पत्नी मेरे बच्चे और सभी दुनिया के लोग सेल्फिश हैं, कोई भी सही नहीं हैं.
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गुरु थोडा मुस्कुराये और उसे एक स्टोरी सुनाई, एक गाँव में एक अलग सा कमरा था जिसमे 1000 शीशे लगे थे.. एक छोटी लड़की उस कमरे में गई और खेलने लगी. उसने देखा 1000 बच्चे उसके साथ खेल रहे है और वो इंजॉय करने लगी, जेसे ही वो अपने हाथ से ताली बजाती सभी बच्चे उसके साथ ताली बजाते. उसने सोचा यह दुनिया की सबसे अच्छी जगह है यहां वह् सबसे ज्यादा खुश रहती है वो यहां बार बार आना चाहेगी.
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इसी जगह पर एक उदास आदमी ने विजिट की. उसने अपने चारो तरफ हजारो दुखी और रोष से भरे चेहरे देखे, वह बहुत दुखी हुवा और उसने हाथ उठा कर सभी को धक्का लगाना चाहा.. उसने देखा हजारों हाथ उसे धक्का मार रहे है.. उसने कहा यह दुनिया की सबसे खराब जगह है वह् यहां दुबारा नहीं आना चाहता और उसने वो जगह छोड़ दी.
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इसी तरह यह दुनिया एक कमरा है जिसमे हजारों मिरर यानी शीशे लगे है, जो कुछ भी हमारे अंदर भरा होता है वही यह सोसाइटी हमे लोटा देती है. अपने मन और दिल को बच्चों की तरह साफ़ रखें, तब यह दुनिया आपके लिए स्वर्ग की तरह ही है.
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