तहसीलदार ने किया दरहा गोसाईन मां के प्राचीन मंदिर की खोज
जांजगीर-चांपा/छत्तीसगढ़ एक्सप्रेस
जांजगीर-चांपा जिले के मालखरौदा ब्लाक में दरहा गोसाइन मां का अद्वितीय मंदिर है जहां पर बरहा अर्थात सुअर की बली चढ़ाई जाती है। भारत में किसी और मंदिर में इस तरह सूअर की बली चढ़ाकर उसका प्रसाद वितरण किए जाने के उदाहरण देखने को नहीं मिलते हैं।
मालखरौदा के तहसीलदार एवं शोधकर्ता डॉ. राम विजय शर्मा ने ग्राम परसी में एक शोध-कैम्प का आयोजन कर दरहा गोसाईन मां के प्राचीन मंदिर की खोज किया उल्लेखनीय है कि डॉ. राम विजय शर्मा मालखरौदा के तहसीलदार पद पर पदस्थ हैं तथा ढाका विश्व विद्यालय से इतिहास विषय में डी.लिट कर रहे हैं। परसी ग्राम मालखरौदा तहसील मुख्यालय से 10 कि.मी. की दूरी पर मालखरौदा भांटा मार्ग पर स्थित है जो जांजगीर चाम्पा जिला के अंतर्गत है। डॉ. राम विजय शर्मा ने बताया कि दरहा गोसाईन मां का मंदिर हजारों वर्ष पुराना है तथा उस समय मूर्ति कला का विकास नही हुआ था। यहां मां की कृपा से स्त्री को पुत्र की प्राप्ति, चोरी सामान की प्राप्ति, परीक्षा पास होना, नौकरी मिलना, बिमारी से छुटकारा मिलना तथा विधायक बनने के लिये भी मन्नत मांगते हैं। और मन्नत की पूर्ति होती है। सच्चे मन से बदना बदने पर बदना की पूर्ति होती है। एक बार बगल के बगान नाला में एक महिला की नांक की नथनी गिर गई थी बहुत खोजने पर भी नहीं मिल रहा था तो बदना बदने पर नथनी मिल गई थी। इसी तरह मनोहर को कोई बच्चा नही हो रहा था लेकिन बदना बदने पर उसे पुत्र की प्राप्ति हुई और वह दरहा गोसाईन मां को काला मादा बरहा और महुआ दारू चढ़ाया था। इस तरह दरहा गोसाईन मां का मंदिर भारत में इकलौता और अद्वितीय ऐतिहासिक मंदिर है जहां बरहा की बलि चढ़ाई जाती है । शोधकर्ता डॉ. राम विजय शर्मा ने बताया कि इस मंदिर का संरक्षण करने के लिए जिला कलेक्टर महोदय डॉ. एस. भारती दासन के माध्यम से संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग छत्तीसगढ़ शासन को प्रस्ताव भेजा जायेगा । इस शोध - कैम्प में भूतपूर्व विधायक पूरन लाल जांगड़े, परसा सरपंच उत्तरा गबेल, परसी के सरपंच पति जगजीवन राम, कोटवार आनंदराम, मेला अध्यक्ष भगतराम, आदिवासी मंदिर मां दरहा गोसाईन का बैगा करम सिंह, नरेन्द्र, कन्हैया साहू, बिहारी तथा अन्य ग्रामीण जन उपस्थित रहकर शोध कैम्प को सफल बनाए।
चबुतरानुमा पत्थर पर बना है मां का चेहरा
दरहा गोसाईन मां एक चबुतरानुमा पत्थर के रूप में हैं जिस पर मां का चेहरा बना है जो एक ही पत्थर में है। ऐसी मान्यता है कि पत्थर की यह प्रतिमा पहले 21 फीट नीचे एक दरहा (पानी का गड्ढ़ा) में था। दरहा गोसाईन मां के मंदिर का बैगा (पूजारी) करम सिंह बताते हैं कि पुराने जमाने में पितर बुढ़वा दरहा गोसाईन मां का बैगा था । वह दरहा में नीेचे उतर कर मां की सेवा पूजा करता था। एक दिन उसका तांबे का लोटा दरहा के नीचे भूल से छुट गया। घर जाने पर उसे याद आया और व सोचा कि उसका लोटा कोई वहां से ले न जाये इस लिए वह तुरंत घर से लौटकर दरहा में गया ओर लोटा लेकर आने लगा। तभी देवी दरहा गोसाईन प्रकट हुई और बोली कि तुम्हे मेरे ऊपर विश्वास नही था और यह सोचकर ताम्बे का लोटा लेने आ गये कि कोई चुराकर ले न जाये। देवी बोली कि तुम अब दरहा में आ कर पूजा मत करना, ऊपर से ही पूजा करना। कुछ दिनों बाद देवी ऊपर आ गई और तभी से ऊपर विराजमान हैं।
बैगा ही देता है बरहा की बलि
ऐसी मान्यता है कि मां के समक्ष सच्चे मन से मन्नत मांगने पर मन्नत पूरी होती है। मन्नत पूरी होने पर भक्त लोग काला मादा बरहा को बलि चढ़ाते है । नर बरहा को तथा किसी अन्य रंग के बरहा को नही चढ़ाया जाता है। मंदिर परिसर में मां के सामने बैगा काला मादा बरहा को ले जाता है तथा उसे चांवल खिलाकर मां के पीछे पत्थर पर रखकर बैगा ही कटिंग करता है। बरहा के कटिंग के बाद भक्त लोग मंदिर के आस - पास ही उसे बनाते हैं और प्रसाद के रूप में ग्रहण करते हैं। कोई - कोई घर ले जाकर भी प्रसाद बनाते हैं। बलि केवल शनिवार को चढ़ाते हैं शनिवार को शुभ माना जाता है और विशेष फल की प्राप्ति होती है। कोई - कोई मंगलवार को भी चढ़ाते हैं।
धर्मग्रंथों में पवित्र माना गया है वरहा
उल्लेखनीय है कि भारत के किसी मंदिर में बरहा को प्रसाद के रूप में बलि नही चढ़ाया जाता है। इस दृष्टि से दरहा गोसाईन मां का यह मंदिर भारत में अकेला एवं अद्वितीय है। भारत के धर्म ग्रंथों में वरहा (सुअर) को बड़ा पवित्र माना गया है । विष्णु के 10 अवतारों में एक वराह अवतार भी है। जैन धर्म के 13वें तीर्थंकर विमलनाथ का प्रतीक भी वराह (सुअर) है।
बरहा के साथ महुआ दारू का चढ़ता है प्रसाद
उल्लेखनीय बात यह भी है कि दरहा गोसाईन मां के मंदिर में आदिवासी समाज, अनुसूचित जाति समाज, गबेल समाज, डनसेना समाज, यादव समाज, बरेठ समाज, चौहान समाज, गांड़ा समाज, राजपूत समाज तथा यहां तक कि ब्राह्मन समाज की लोग भी मन्नत पूरी होने पर काला मादा बरहा और महुआ दारू चढ़ाते हैं और उसे प्रसाद के रूप में ग्रहण करते हैं। इस तरह यह मंदिर सामाजिक समरसता एवं भाई चारा का भी प्रतीक है। यह परंपरा हजारों साल से चली आ रही है।
बसंत पंचमी को लगता है मेला
दरहा गोसाईन मां के सम्मान में मंदिर परिसर में पांच दिवसीय मेला का भी आयोजन किया जाता है। यह मेला बसंत पंचमी के दिन प्रारंभ होता है और पांच दिनों तक चलता है। उल्लेखनीय है कि मेला के दौरान दरहा गोसाईन मां के सामने बरहा नहीं चढ़ाया जाता है। केवल पांच दिन बंद रहता है।