पचरी के गोठ
छोटे अ, बड़े आ, थारी धर के पढ़े जा... छोटे अ, बड़े आ, थारी धर के पढ़े जा ... रटत लइका मन के झुंड हर एक हाथ म थारी धरे तलाव पार ले होवत गांव के सरकारी स्कूल डहर जात दिखिस त तरिया पार म असनांदत बैशाखू हर पूछे लागिस, ठाकुर आज इस्कूल खुले हे अइसे म ए लइका मन हर इस्कूल जाए ल छोड़ भीख मांगे काहे जात हे ? अभी तो छेरछेरा घलो नइ आय हे। कोनो मेर तमाशा होवत हे का अउ गांव भर के लइका मन हर ओमा भाग लेहे हावय का ?
बैशाखू के सवाल ल सुन मय हर ओला बताएंव के न ही लइका मन हर भीख मांगे जावत हे अउ न ही गांव म कोनो तमाशा होवत हे। ए मन तो ए बच्छर इस्कूल म नवा भरती होवइया लइका ए, अभी ए मन ल सरकार कति ले बस्ता अउ कापी-किताब नइ मिले हे त लइका मन हर थारी भर ल ले के इस्कूल जावत हे।
फेर ठाकुर, हमन हर इस्कूल जावन त तो सफा-सफा डरेस पहिर के, मस्त तइयार हो के इस्कूल जावन, फेर ए लइका मन हर बिन डरेस पहिरे कइसे जावत हे? बैशाखू हर एक बखत पूछे ल चालू होथे त फेर कहां रूकथे।
बैशाखू, तय हर गांव के गरीबहा पारा म रहइया, गरीब के लइका मन हर तो कालो अइसनहे इस्कूल जात रहिस हे अउ आजो अइसनहे जात हे। तय हर शहर के लइका मन ल जा के देख तो, ओ मन हर एक से एक डरेस पहिर के, सम्हर ओढ़ के, इस्नो पाउडर लगा के, जूता मोजा पहिर के, मोबाइल धर के, चमचमात गाड़ी म इस्कूल जाथे। फेर सरकारी इस्कूल के लइका मन हर पहिली दिन अइसनहे जूच्छा गोड़, थारी धर के इस्कूल जाथे। इस्कूल ले ए मन ल कापी किताब मिलही त चिरहा-फटहा झोला असन एको ठन पन्नी ल लटका के एमन हर इस्कूल जाही उहें डरेस मिलही त जेन सिलवाए सकही तेन डरेस पहिर के अउ जेन नइ सिलवाए सकही तेन अइसनहे बिन डरेस पहिरे इस्कूल जाही। फेर कइ बखत तो कापी-किताब अउ डरेस बंटात लइका मन हर एक कच्छा ले दूसर कच्छा हबर जाथे।
ठाकुर ए लइका मन हर जेन कहत रहिस हे के छोटे अ, बड़े आ, थारी धर के पढ़े जा ... तेन हर सुने-सुने लागथे, फेर कब सुने हावंव तेन हर सुरता नइ आवत हे? तहूं हर बैशाखू बड़ भुलक्कड़ अस, तय अतका जल्दी भुलागे, तहूं तो इस्कूल जास त रटत जात के छोड़े अ, बड़े आ, बासी खा के पढ़े जा, आजकाल के लइका मन ल इस्कूल म सरकार हर गरम-गरम दार-भात खवाथे त लइका मन हर बासी खाय ल छोड़ इस्कूल म खाए बर थारी धर के इस्कूल जाथे, तभे तो ओ मन हर रटत जाथे के छोटे अ, बड़े आ, थारी धर के पढ़े जा ...।
बने सुरता देवाय ठाकुर, कहां हमर जमाना के इस्कूल अउ कहां अब के इस्कूल, पुराना मेटरिक पढ़इया मेर एमए, बीए वाला ल बइठार दे तभो ले ओ हर नइ सकय? बैशाखू हर लंबा सांस लेत कहिस त महूं हर कहेंव ठीक कहे बैशाखू, कहां हमर जमाना के इस्कूल अउ कहां आज काल के इस्कूल, हमर जमाना के इस्कूल के गुरूजी मन हर बइला गाड़ी बरोबर चलय धीरे .... धीरे ...., ओ मन ल क कबूतर के ल पढ़ाना रहय त कहय, कुकरी के अंडा, पुलिस के डंडा, राम जी के मुंछ, बेंदरा के पूछ अतका मेहनत के बाद हमर क कबूतर का बन पावत रहिस हे अउ आजकाल के गुरूजी मन हर एके सांस म अ से ज्ञ तक ल लइका मन ल पढ़ा डारथे। लइका मन हर इस्कूल म सीख गे त तो ठीक नही त टीवसन तो हावय न। गुरूजी मन ल टीवसन म जादा फीस मिलथे। हमर जून्ना गुरूजी थोर-थोर तोतरावय त क कलम का ल च चलम का कहय अउ हमर जहूंरिया बने लइका मन हर च चलम के ही सीख गे रहिस हे। बड़े गुरूजी हर इमला बोल के क कलम का लिखवाइस त एको झन लिखे नइ सकिस, गुरू जी जब मुंहअखरा बोल के लिखवाइस त जम्मो लइका गोजी म मार खाए रहेन फेर आजकाल के सरकारी इस्कूल के गुरूजी मन हर कइसे पढ़ाथे लइका मन हर जानेच नइ पाय फेर पराइवेट इस्कूल म च चलम के पढ़वइया मनखे ल दू सौ रूपिया महिना म घलो नउकरी म कोना नइ रखय। हमर जमाना म जेन दिन पास फेल सुनाना रहय तेन दिन गुरूजी मन बर तिहार रहय, गुरूजी मन ल भेंट करे बर लइका मन अपन घर ले नरियर ले के आय रहय फेर नवा टेक्नालाजी के जमाना म आजकाल तो पराइवेट स्कूल म गुरूजी मन हर भूतिहार ले घलो गवार हो गे हे। दिन भर मेहनत के पाछू गुरूजी मन बीस-तीस रूपिया रोजी पाथे अउ गुरूजी मन ल रोजी म रखइया स्कूल मालिक मन हर साल एक ठन नवा कोठी बनाथे। सरकार कहिथे लइका मन ल कम से कम खरचा म पढ़ाना हे, फेर सरकार के गोठ ल कोन सुनथे इहां तो हमर इस्कूल चलवइया मन ल कापी-किताब अउ डरेस के दुकान तक ले कमाना हे। अब के लइका मन ल फेल नइ करना हे मतलब गुरूजी मन के नरियर तो छिना गे लेकिन उपर कच्छा म हबरे के फीस सुनके लइका के दाई-ददा के आंखी ह चोंधिया गे।